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भगवान शिव की शिक्षाएं

भगवान शिव की शिक्षाएं

शिव ओंकारा हैं, शिव निराकार हैं, शिव आदि हैं, शिव अनंत है। अपने विभिन्न रुपों में शिव ने हमें जीवन के कई संदेश दिये हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती के माध्यम से मृत्यु लोक में रहने वाले मनुष्यों के लिए परम ज्ञान की शिक्षा दी है, जो की कलयुग में भी पालन करने योग्य है। जब पार्वती ने शिव जी से सबसे बड़े पुण्य और पाप के बारे में पूछा, तो भगवान शिव ने उत्तर दिया…

सबसे बड़ा सदाचार और सबसे बड़ा पाप 

श्लोक- नास्ति सत्यात् परो नानृतात् पातकं परम्।।

अर्थात- मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या उसका साथ देना।

अपने कर्मों के खुद गवाह बनें 

श्लोक – आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे।

शिव की दूसरी सबसे बड़ी शिक्षा है कर्म….अर्थात- मनुष्य को अपने हर काम का साक्षी यानी गवाह खुद ही बनना चाहिए, चाहे फिर वह अच्छा काम करे या बुरा। उसे कभी भी ये नहीं सोचना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है।

तीन कार्यों में कभी स्वयं को शामिल न करें 

श्लोक- मनसा कर्मणा वाचा न च काड्क्षेत पातकम्।

अर्थात- आगे भगवान शिव कहते है कि- किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्मों से पाप करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जैसा काम करता है,उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है।

सफलता का सबसे बड़ा मंत्र 

श्लोक – दोषदर्शी भवेत्तत्र यत्र स्नेहः प्रवर्तते। अनिष्टेनान्वितं पश्चेद् यथा क्षिप्रं विरज्यते।।

अर्थात- भगवान शिव कहते हैं कि- मनुष्य को जिस किसी व्यक्ति या परिस्थितियों से लगाव हो रहा हो, और वो उसकी सफलता में रुकावट बन रही हो, तो मनुष्य को उसमें दोष ढूंढ़ना शुरू कर देना चाहिए। जो लगाव उसकी सफलता में बाधक बन रहा हो, उसे त्याग देना चाहिए

इस एक बात को अपना लिया तो मिल जाएगी दुखों से मुक्ति 

श्लोक – नास्ति तृष्णासमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।
सर्वान् कामान् परित्यज्य ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

अर्थात- आगे भगवान शिव कहते हैं कि- मनुष्य की तृष्णा यानि इच्छाओं से बड़ा कोई दुःख नहीं होता और इन्हें छोड़ देने से बड़ा कोई सुख नहीं है। हर किसी के मन में कई अनावश्यक इच्छाएं होती हैं और यही इच्छाएं मनुष्य के दुःखों का कारण बनती हैं। व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण नहीं होता। इसलिए जरुरी है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझे और फिर अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करके शांत और संतुलित जीवन बिताए

शिव, शम्भु और शंकर–इन तीनों का अर्थ है–कल्याण करने वाला, मंगलमय और परम शांत। उनके जीवन और चरित्र से भी हमें यही शिक्षा मिलती है कि, जिसका मन शांत है, उसका जीवन संतुलित है और ऐसा मनुष्य ही स्वयं का ,परिवार का और विश्व का कल्याण करने में सक्षम है।

रिलिजन वर्ल्ड ब्यूरो

 

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