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कौन थे हुसैनी ब्राह्मण….क्या है उनकी वीरगाथा

कौन थे हुसैनी ब्राह्मण….क्या है उनकी वीरगाथा

आप सबने अश्वत्थामा का नाम अवश्य सुना होगा. गुरू द्रोणाचार्य के एकमात्र पुत्र अश्वत्थामा महाभारत के युद्ध के बाद जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक थे. अश्वत्थामा को सम्पूर्ण महाभारत युद्ध के दौरान कोई परास्त नहीं कर पाया था.

ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा महाभारत से बच निकल कर घायल अवस्था में इराक पहुँच कर, वहीं बस गए. अश्वत्थामा वंश के दत्त ब्राह्मणों ने इराक में अपनी बहादुरी का परचम लहराया. उन्होंने अरब, मध्य एशिया और इराक में अपना साम्राज्य स्थापित किया. अश्वत्थामा के ये वंशज आगे चलकर मोहियाल ब्राह्मण कहलाये और इन मोहियाल ब्राह्मणों नें एक मुस्लिम शासक के लिए अपनी संतानों की कुर्बानी तक दे दी. द्रोणाचार्य दत्त शाखा के मोहियाली ब्राहमण थे. ब्राहमण का यह ऐसा वर्ग है जो अपने को मोहियाल ब्राह्मण कहलाने में गर्व महसूस करता है. ब्राह्मण का यह वर्ग शिव भक्त कहलाता है और यह बहुत ज़बरदस्त लड़ाकू माने जाते हैं.  हिन्दू धर्म की रक्षा और सम्मान के लिए ये अपनी जान देते रहे हैं. इन्होंने इमाम हुसैन के लिए भी जानें दी हैं, इन्हें हुसैनी ब्राह्मण भी कहा जाता है.

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क्या है इनका इतिहास

मोहम्मद साहब के काल में दत्त ब्राह्मण का राजा राहिब सिद्ध दत्त हुआ करते थे. राजा सिद्ध निःसन्तान थे और वे मोहम्मद साहब से सन्तान का आशीर्वाद मांगने गये . लेकिन जब उसे पता चला कि उसके भाग्य में संतान नहीं है और वो मायूस हो कर लौटने लगा. तभी मोहम्मद साहब के छोटे नाती इमाम हुसैन ने राजा सिद्ध दत्त को सात औलादों का आशीर्वाद दिया. हुसैन के आशीष स्वरुप सिद्ध दत्त को के यहाँ सात बेटों का जन्म हुआ और इस तरह वह मोहम्मद साहब के खानदान के संपर्क में आये.

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क्यूँ कहलाये हुसैनी ब्राह्मण  

अपने पिता हजरत अली के लिए लड़ाई लड़ते हुए 10 अक्टूबर 680 में कर्बला की घटना में इमाम हुसैन की मौत हो गई और इसके बारे में जब राजा सिद्ध दत्त को पता चला तो वो बदला लेने के लिए आतुर हो उठा. यजीदी फ़ौज इमाम का सर कलम कर उसे साथ ले जा रहे थे. तब उसने यजीदी फ़ौज का पीछा करते हुए हुसैन का सर छीना और दमिश्क की ओर बढ़ा. लेकिन रास्ते में एक जगह पड़ाव पर रात में, यजीदी सैनिकों ने उन्हें घेर लिया और हुसैन के सिर की मांग की. सिद्ध दत्त ने इमाम का सर नहीं सौंपा, मगर उसकी जगह एक एक कर अपने सातों बेटे का सर काट कर उन्हें दे दिए. लेकिन फिर भी सैनिकों ने उन्हें हुसैन का सिर मानने से इंकार कर दिया. दत्त ब्राह्मण के दिल में इमाम हुसैन के कत्ल का बदला लेने की आग भड़क रही थी. अपना बदला पूरा करने के लिए वे अमीर मुख्तार के साथ मिल गए. बहादुरी से लड़ते हुए चुन-चुन कर उन्होंने हुसैन के कातिलों से बदला लिया. इमाम हुसैन की मौत और अपने सात बेटों की कुर्बानी को याद रखने के लिए दत्त ब्राह्मण ने दर्जनों दोहे पढ़े, जो मोहर्रम में उनके घरों में पढ़े जाने लगे. यही से ही दत्त ब्राह्मण हुसैनी ब्राह्मण कहलाए.

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Post By Shweta