Post Image

जन्मदिन विशेष : सदगुरु जग्गी वासुदेव : आत्मानुभूति ने बदला जिनका जीवन

योगी, दिव्य पुरुष, सदगुरु जग्गी वासुदेव अध्यात्म की दुनिया में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं. इनका जीवन गंभीरता और व्यवहारिकता एक आकर्षक मेल है, अपने कार्यों के जरिए इन्होंने योगा को एक गूढ़ विद्या नहीं बल्कि समकालीन विद्या के तौर पर दर्शाया. सदगुरु जग्गी वासुदेव को मानवाधिकार, व्यापारिक मूल्य, सामाजिक-पर्यावरणीय मसलों पर अपने विचार रखने के लिए वैश्विक स्तर पर आमंत्रित किया जाता है.

प्रारंभिक जीवन

सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्‍म 3 सितंबर 1957 को कर्नाटक राज्‍य के मैसूर शहर में हुआ. उनके पिता एक डॉक्टर थे. बालक जग्‍गी को कुदरत से खूब लगाव था. अक्‍सर ऐसा होता था वे कुछ दिनों के लिये जंगल में गायब हो जाते थे, जहां वे पेड़ की ऊँची डाल पर बैठकर हवाओं का आनंद लेते और अनायास ही गहरे ध्‍यान में चले जाते थे. जब वे घर लौटते तो उनकी झोली सांपों से भरी होती थी जिनको पकड़ने में उन्‍हें महारत हासिल है. 11  वर्ष की उम्र में जग्गी वासुदेव ने योग का अभ्यास करना शुरु किया. इनके योग शिक्षक थे श्री राघवेन्द्र राव, जिन्‍हें मल्‍लाडिहल्‍लि स्वामी के नाम से जाना जाता है. मैसूर विश्‍वविद्यालय से उन्‍होंने अंग्रजी भाषा में स्‍नातक की उपाधि प्राप्‍त की.

उनके परिवार में एक पत्नी और बेटी थी. उनकी पत्नी विजयाकुमारी का 1996 में निधन हो गया. जबकि उनकी बेटी राधेजग्गी एक प्रख्यात भरतनाट्यम डांसर हैं.

उन्हें जहां आधुनिक कपड़ों से कोई परहेज नहीं है वहीं वे इंटरनेट, लैपटॉप, स्मार्टफोन और आधुनिकतम तकनीकों का भी इस्तेमाल करते हैं.

यह भी पढ़ें – जीवित गुरु का क्या महत्व है? Significance of a Live Guru : By Sadhguru

आध्यात्म की ओर रुझान

25 वर्ष की उम्र में अनायास ही बड़े विचित्र रूप से, इनको गहन आत्‍म अनुभूति हुई, जिसने इनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया. एक दोपहर, जग्गी वासुदेव मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़े और एक चट्टान पर बैठ गए. तब उनकी आंखे पूरी खुली हुई थीं. अचानक, उन्‍हें शरीर से परे का अनुभव हुआ. उन्हें लगा कि वह अपने शरीर में नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैल गए हैं, चट्टानों में, पेड़ों में, पृथ्वी में. अगले कुछ दिनों में, उन्‍हें यह अनुभव कई बार हुआ और हर बार यह उन्‍हें परमानंद की स्थिति में छोड़ जाता. इस घटना ने उनकी जीवन शौली को पूरी तरह से बदल दिया. जग्गी वासुदेव ने उन अनुभवों को बाँटने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने का फैसला किया. ईशा फाउंडेशन की स्‍थापना और ईशा योग कार्यक्रमों की शुरुआत इसी उद्देश्‍य को लेकर की गई तकि यह संभावना विश्‍व को अर्पित की जा सके.

यह भी पढ़ें – ईशा फाउंडेशन ने रैली फॉर रिवर्स कैंपेन किया लांच

क्या है ईशा फाउंडेशन

सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक लाभ-रहित मानव सेवा संस्थान है, जो लोगों की शारीरिक, मानसिक और आतंरिक कुशलता के लिए समर्पित है. यह दो लाख पचास हजार से भी अधिक स्वयंसेवियों द्वारा चलाया जाता है. इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र कोयंबटूर में है. ग्रीन हैंड्स परियोजना जिसे Project GreenHands भी कहते हैं, ईशा फाउंडेशन की पर्यावरण संबंधी प्रस्ताव है. पूरे तमिलनाडु में लगभग 16 करोड़ पेड़ रोपित करना, परियोजना का घोषित लक्ष्य है. अब तक ग्रीन हैंड्स परियोजना के अंतर्गत तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में 1800 से अधिक समुदायों में, 20  लाख से अधिक लोगों द्वारा 82 लाख पौधे के रोपण का आयोजन किया है. इस संगठन ने 17 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख पौधे रोपकर गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाया था. पर्यावरण सुरक्षा के लिए किए गए इसके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसे वर्ष 2008 का इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार दिया गया.

क्या है ईशा योग केंद्र

ईशा योग केंद्र, ईशा-फाउन्डेशन के संरक्षण तले स्थापित है. यह वेलिंगिरि पर्वतों की तराई में 150 एकड़ की हरी-भरी भूमि पर स्थित है. घने वनों से घिरा ईशा योग केंद्र नीलगिरि जीवमंडल का एक हिस्सा है, जहाँ भरपूर वन्य जीवन मौजूद है. आंतरिक विकास के लिए बनाया गया यह शक्तिशाली स्थान योग के चार मुख्य मार्ग – ज्ञान, कर्म, क्रिया और भक्ति को लोगों तक पहुंचाने के प्रति समर्पित है. इसके परिसर में ध्यानलिंग योग मंदिर की प्राण प्रतिष्‍ठा की गई है.

ध्यानलिंग योगमंदिर

1999 में सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित ध्‍यान लिंग अपनी तरह का पहला लिंग है जिसकी प्रतिष्ठता पूरी हुई है. योग विज्ञान का सार ध्यानलिंग, ऊर्जा का एक शाश्वत और अनूठा आकार है. 13 फीट 9 इंच की ऊँचाई वाला यह ध्यानलिंग विश्व का सबसे बड़ा पारा-आधारित जीवित लिंग है. यह किसी खास संप्रदाय या मत से संबंध नहीं रखता, ना ही यहां  पर किसी विधि-विधान, प्रार्थना या पूजा की जरूरत होती है. जो लोग ध्यान के अनुभव से वंचित रहे हैं, वे भी ध्यानलिंग मंदिर में सिर्फ कुछ मिनट तक मौन बैठकर ध्यान की गहरी अवस्था का अनुभव कर सकते हैं. इसके प्रवेश द्वार पर सर्व-धर्म स्तंभ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौध, सि‍ख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक अंकित हैं, यह धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर पूरी मानवता को आमंत्रित करता है.

रैली फॉर रिवर्स

  • सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी द्वारा नदियों को बचाने के लिए एक नदी अभियान की शुरुआत करी है. यह नदी अभियान जन जागरूकता कार्यक्रम 1 सितंबर को पूरे भारत में 60 से अधिक शहरों में आयोजित किया जा रहा है.लाखों लोग, नदी अभियान टी-शर्ट, प्लेकार्ड, हेडगीयर और स्टिकर के साथ अपने शहरों के लोकप्रिय स्थानों पर इकठ्ठा होकर इस अभियान को सपोर्ट कर रहे हैं.

इस अभियान का लक्ष्य है:

  • हमारी नदियों जिस संकट से जूझ रही हैं, उसके बारे में हर किसी को जागरूक करना
  • नदियों के लिए अभियान की जरुरत के बारे में समाज के सभी वर्गों में जागरूकता पैदा करना
  • सरकार द्वारा एक सकारात्मक नदी नीति को लागू करने के लिए सार्वजनिक समर्थन जुटाना

इसमें भाग कैसे ले सकते हैं?

आपको बस 8 बजे से 11 बजे के बीच किसी भी समय अपने शहर में अपनी पसंद के स्थान पर नदी अभियान का बैनर या अभियान से जुड़ी कोई वस्तु पहनकर या हाथ में पकड़कर एक घंटा बिताना है. अगर आप ज्यादा समय बिता पाएं तो बहुत अच्छा होगा. यह समर्थन जरुरी गति पैदा करने में मदद करेगा ताकि सरकार एक सकारात्मक नदी नीति को लागू कर सके.

———————

रिलीजन वर्ल्ड देश की एकमात्र सभी धर्मों की पूरी जानकारी देने वाली वेबसाइट है। रिलीजन वर्ल्ड सदैव सभी धर्मों की सूचनाओं को निष्पक्षता से पेश करेगा। आप सभी तरह की सूचना, खबर, जानकारी, राय, सुझाव हमें इस ईमेल पर भेज सकते हैं – religionworldin@gmail.com – या इस नंबर पर वाट्सएप कर सकते हैं – 9717000666 – आप हमें ट्विटर , फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो कर सकते हैं।
Twitter, Facebook and Youtube.

 

Post By Shweta