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कथा क्रम : ऋषिकेश में गंगा किनारे बह रही है भागवतकथा की धारा

  • परमार्थ निकेतन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में मनाया भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य दिवस
  • महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज एवं पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा में किया सहभाग
  • ऋषिकेश की पावन धरती, गंगा के साथ पूज्य संतों की गरिमामय उपस्थिति के कारण दिव्य है – सलिल जी महाराज
  • जीवन प्रभु की शरण में हो तो सभी ग्रहण समाप्त हो जाते है- स्वामी चिदानन्द  सरस्वती


ऋषिकेश, 22 अगस्त। गंगा के पावन तट एवं परमार्थ निकेतन की पावन भूमि पर निरन्तर प्रवाहित हो रही श्रीमद् भागवत कथा की अमृत धारा में आज भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य दिवस मनाया गया। प्राकट्य उत्सव में महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज एवं पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज का पावन सानिध्य प्राप्त हुआ।

कथा व्यास श्री कृष्ण सलिल जी महाराज ने कथा में दोंनो पूज्य संतों का स्वागत करते हुये कहा कि ’ऋषिकेश की पावन धरती, गंगा के साथ पूज्य संतों की गरिमामय उपस्थिति के कारण दिव्य है। उन्होने संत की महिमा बताते हुये कहा कि जिनकी प्रत्येक श्वास मेें परहित समाहित हो ऐसे पूज्य संतों को नमन करता हूँ। आज मुझे परमार्थ निकेतन आकर ऐसे संतों का सानिध्य प्राप्त हुआ जिनका चिंतन एवं मनन, चारों पहर केवल पर्यावरण एवं जल संरक्षण एवं पीड़ित मानवता के लिये हैैैै।’

श्रीमद् भागवत कथा में श्रद्धालुओं को पूर्ण सूूर्य ग्रहण के विषय में व्याख्या बताते हुये पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि 100 वर्षों बाद घटी इस सूर्यग्रहण की घटना को नासा की मदद से पूरे विश्व ने देखा। उन्होने कहा कि व्यक्ति का जीवन प्रभु की शरण में हो जाता है तो जीवन के सभी ग्रहण समाप्त हो जाते है; प्रभु के चरण जीवन में सभी ग्रहों से मुक्ति पाने के उपाय है। जब-जब हम प्रकाशपुंज परमात्मा को भूल जाते है तब जीवन में ग्रहण लगते है। हमें स्वीकार करना चाहिये कि कोई तो है जिसकी वजह से सब प्रकाशित हो रहा है। प्रकाश कभी छिपता नहीं है; सूर्य को कभी छिपाया नहीं जा सकता केवल हमारे और प्रकाश के मध्य पर्दा पड़ जाता है। जीवन में भी अज्ञान के, अन्धकार के, अहंकार की परतों के पर्दे पड़े हुये है, जिसके कारण हम उस सर्वशक्तिमान नियंता को देख ही नहीं पाते परन्तु उन अज्ञानरूपी पर्दों को श्रीमद् भागवत कथा को आत्मसात कर हटाया जा सकता है और तब उस प्रकाशपुंज के दर्शन भी होने लगते है। प्रकाश के दर्शन में अगर कोई बाधक है तो हमारा मन। मन उस चन्द्रमा की तरह है जो प्रकाश को अवरूद्ध कर लेता है। अब हमें यह निश्चिय करना है कि हम कौन सा चन्द्रमा बनें ताकि हमारा जीवन किसी के ग्रहण का कारण न बने, किसी की पीड़ा का कारण न बने। श्री कृष्ण के प्राकट्य दिवस पर संकल्प लें कि हम किसी के लिये ग्रहण न बने और प्रभु की शरण में रमे, प्रभु का ऐसा ध्यान करे कि जीवन में समर्पण घटित हो जाये।  प्रभु की शरण में समर्पित हो जाना ही जीवन का सार है; अर्जुन की तरह प्रभु को जीवन रथ का सारथी बना लें और भाव करे कि श्री कृष्ण का प्राकृट्य कहीं और नहीं मेरे जीवन के दर्पण में हो।’

भगवान श्री कृष्ण के प्राकट्य अवसर पर कथा यजमान रायरंगा परिवार के साथ परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार एवं परमार्थ परिवार के विदेशी सेवक उपस्थित थे।

Post By Religion World