रावण ने कांवड़ यात्रा क्यों की और उसे क्या मिला?
रावण, लंका का राजा, केवल एक राक्षस नहीं बल्कि भगवान शिव का परम भक्त भी था। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक बार कठिन तपस्याएँ कीं। रावण का उद्देश्य केवल भक्ति नहीं था — वह शिव से अमरता, अजेयता और ब्रह्मांडीय शक्ति प्राप्त करना चाहता था। इसी लालसा में उसने एक विशेष निर्णय लिया — हिमालय से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना, ताकि वह शिव को अत्यंत पवित्र जल से स्नान कराकर उन्हें प्रसन्न कर सके।
इस उद्देश्य से रावण ने एक बाँस के सहारे दो मटके बाँधकर, उन्हें कंधों पर उठाकर जो जल यात्रा की — उसे ही पहली “कांवड़ यात्रा” माना जाता है। यह परंपरा आज भी करोड़ों शिव भक्तों द्वारा सावन में निभाई जाती है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, रावण चाहता था कि शिवजी स्थायी रूप से लंका में विराजमान हों, ताकि उसका साम्राज्य अजेय हो जाए। इसी लालच में उसने कैलाश पर्वत तक उठाने का प्रयास किया। जब शिवजी क्रोधित हुए, तो रावण ने अपनी उंगलियाँ काटकर क्षमा मांगी और शिव को समर्पित कर दीं।
रावण को क्या मिला इस कांवड़ यात्रा से?
इस अभूतपूर्व भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को कई वरदान दिए —
उसे असीम बल, गूढ़ ज्ञान, संगीत और तंत्र की सिद्धियाँ, और एक विशेष अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ। शिव ने उसे यह भी कहा कि वह तब तक नहीं मरेगा, जब तक उससे भी अधिक तपस्वी, ज्ञानी और धर्मपरायण कोई न हो। रावण ने इस दिव्यता की अवस्था में ‘शिव तांडव स्तोत्र’ की रचना की, जिसे आज भी अत्यंत प्रभावशाली और जागृत स्तोत्र माना जाता है।
लेकिन शिव ने उसे एक चेतावनी भी दी — यदि वह अहंकार करेगा, तो उसका विनाश निश्चित होगा। दुर्भाग्यवश रावण ने अपनी शक्तियों का घमंड किया, जिसका परिणाम अंततः राम के हाथों उसका पतन बना। फिर भी, उसकी कांवड़ यात्रा और शिव के प्रति भक्ति उसे आज भी एक अद्वितीय भक्त के रूप में स्थापित करती है।
शिव का आशीर्वाद
अमरत्व का सीमित वरदान
अपार ज्ञान, सिद्धियाँ और तंत्र विद्या
संगीत और मंत्रों की गहराई
ब्रह्मांड में “अद्वितीय भक्त” का दर्जा
❌ लेकिन वह इसका अहंकार कर बैठा — जिससे उसका पतन हुआ।
शिव तांडव स्तोत्र का वरदान — आज भी अमर रावण ने जो स्तोत्र शिव को अर्पित किया, वह उसकी आत्मा का अमर संगीत बन गया।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो