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कथा क्रम: परमार्थ निकेतन में आयोजित योग एवं श्रीमद् भागवत कथा को योग साधक एवं भक्तगण कर रहे आत्मसात

जैसी हमारी भीतर की दृष्टि वैसी ही हमारी बाहर की सृष्टि-साध्वी भगवती सरस्वती

ऋषिकेश, 24 अगस्त; परमार्थ निकेतन आश्रम में दो सप्ताह से संचालित योग शिविर का समापन हुआ. पश्चिम की धरती से परमार्थ निकेतन पहुँचे योग जिज्ञासुओं ने दो सप्ताह तक यहां पर योग क्रियाओं के साथ ध्यान, आयुर्वेद, प्राणायाम एवं भारतीय संस्कृति, दर्शन, गीता व आध्यात्म पर होने वाले सत्संग का लाभ लिया.सभी योग साधकों ने स्वामी डॉ संजय कृष्ण सलिल जी महाराज के पावन मुख से उच्चारित श्रीमद् भागवत कथा श्रवण का भी लाभ लिया.

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इस शिविर में भारत सहित विश्व के लगभग 17 से भी अधिक देश यथा आस्टेªलिया, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, चीली, जापान, यूके, रोमानिया, ब्राजील, वर्मा एवं नार्वे से आये योग जिज्ञासुओं ने सहभाग किया.योग जिज्ञासु साध्वी आभा सरस्वती जी एवं योगाचार्य डॉ इन्दू शर्मा जी के निर्देशन में योग की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे.

योग शिविर के समापन अवसर पर योग जिज्ञासुओं को परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष, ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस के सह-संस्थापक एवं गंगा एक्शन परिवार के प्रणेता पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज एवं जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महसचिव साध्वी भगवती जी ने  योग प्रशिक्षण प्रमाणपत्र दिये.

योग जिज्ञासुओं ने परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष, पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया. साथ ही योग, भारतीय संस्कृति, दर्शन एवं आध्यात्म से सम्बधित अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त किया.

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पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने उपस्थित सभी साधकों का अभिनन्दन करते हुये कहा कि ’आप सभी पांच दिनों से आस्था, श्रद्धा एवं भावपूर्ण रूप से श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान धारा का श्रवण कर रहे है निश्चित ही आप साधुवाद के पात्र है. उन्होने कहा कि हमारा अपने कन्हैया के श्रीचरणों में समर्पण ही शरणागति का मार्ग प्रशस्त करता है जिससे जीवन धन्य हो जाता है. प्रभु ने; नियंता ने इतनी सुन्दर सृष्टि हमें भेंट की है उस सृष्टि की; पावन नदियों की, यमुना जी की पवित्रता एवं दिव्यता को बनाये रखने के लिये हमारे अन्दर निष्ठा विकसित करनी होगी.भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं से अनेक संदेश दिये है तथा भगवान श्री कृष्ण का संकल्प भी अद्भुत है उन्होने भक्ति की महिमा के लिये प्रण किये; प्रण करवाये एवं प्रण तोड़े भी.भारत की संस्कृति में दधिचि जैसे दानवीरों का दिव्य इतिहास समाया है जिन्होने समाज के कल्याण के लिये अपनी हड्डियों का भी दान कर दिया.हम सभी उसी भारत माता की संतानें है हमें अपनी गंगा, यमुना एवं पर्यावरण संरक्षण के लिये संकल्पित होना होगा.

जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव एवं परमार्थ निकेतन अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव की निदेशक साध्वी भगवती सरस्वती जी ने सभी योग जिज्ञासुओं एवं कथा श्रवण करने वाले भक्तों को सम्बोधित करते हुये कहा कि ’श्रीमद् भागवत कथा और योग के माध्यम से आन्तिरिक शान्ति प्राप्त होती है.भौतिक वस्तुओं से हमें भीतरी शान्ति प्राप्त नहीं होती. भारत और भारतीय संस्कृति से जो ज्ञान मिलता है उसी से हमें पूरे जीवन का मार्गदर्शन प्राप्त होता है. हम जैसा सोचते है वैसे ही हमारी दुनिया बन जाती है.हमारे विचार, मन एवं भक्ति पर ही हमारा सम्पूर्ण जीवन निर्भर है.जैसी हमारी भीतर की दृष्टि वैसी ही हमारी बाहर की सृष्टि निर्मित होती है. मीरा बाई ने विष के प्याले में भगवान श्री कृष्ण के अमृत के दर्शन किये थे और विष वास्तव मे अपना प्रभाव नहीं  दिखा सका. भारत की इस देन को आज वैज्ञानिक भी मानते है कि जैसे हमारे विचार है वैसे ही हमारा बाहर का वातावरण निर्मित होता है.उन्होने कहा कि प्रार्थना, विचार, सोच और भक्ति की शक्ति से हम अपनी पूरी जिन्दगी बदल सकते है.


विश्व के सभी लोंगो को स्वच्छ जल की उपलब्धता हो इसी भाव से पूज्य स्वामी जी एवं साध्वी भगवती सरस्वती जी के साथ सभी योग जिज्ञासुओं ने वाटर ब्लेसिंग सेरेमनी में सहभाग किया.पूज्य स्वामी जी ने सभी को पर्यावरण एवं जल स्रोतों को संरक्षित एवं स्वच्छ रखने का संकल्प कराया.

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Post By Shweta