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अग्नि अखाड़ा: जहाँ सिर्फ ब्राह्मणों को ही दी जाती है मान्यता

अग्नि अखाड़ा: जहाँ सिर्फ ब्राह्मणों को ही दी जाती है मान्यता

कुम्भ मेले में इस साल अनोखे अखाड़े देखने को मिले.जहाँ एक तरफ मेले में किन्नर अखाड़े को मायता दी गयी वहीँ दूसरी तरफ एक ऐसा अखाडा भी है जहाँ सिर्फ ब्राह्मणों को ही मान्यता दी जाती है . हम बात कर रहे हैं अग्नि अखाड़े की.इस अखाड़े में सिर्फ ब्राह्माणों को ही दीक्षा मिलती है. साधु वेश में दीक्षित होने वाले यहां संन्यासी नहीं ब्रह्माचारी कहलाते हैं. वेदों का ज्ञान और गायत्री की उपासना इनका ध्येय है. यज्ञ करना और कराना इन्हें आना चाहिए.

क्या है इनकी पहचान

इनकी पहचान जनेऊ और सिर पर शिखा है. इन्हें नैष्ठिक ब्रह्माचारी भी कहा जाता है. इस अखाड़े से दीक्षित ब्रह्माचारी आचार्य और शंकराचार्य की पदवी धारण करते हैं. शंकराचार्य का उत्तराधिकारी बनने के लिए ब्रह्माचारी होना अनिवार्य है. सात शैव अखाड़ों की परंपरा से अग्नि अखाड़ा भी जुड़ा है. शाही स्नान में जूना के साथ अग्नि अखाड़ा भी शामिल रहता है लेकिन, यहां दीक्षा पाने की अनिवार्यता ब्राह्माण होना है.

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कठिन संस्कार से गुज़ारना होता है

अन्य शैव अखाड़ों में जाति भेद नहीं है. यहां दीक्षित संन्यासी ब्रह्माचारी कहलाता है. अग्नि अखाड़े की दुनिया और नियम बिल्कुल अलग है. यहां एक हजार ब्रह्माचारी हैं. चतुष्नाम ब्रह्माचारी आनंद, चेतन, प्रकाश एवं स्वरूप चार भागों में बंटकर काम करते हैं. ब्रह्माचारी बनने के लिए एक कठिन संस्कार से गुजरना पड़ता है. पंचद्रव्य से स्नान, पंच भूत संस्कार से गुजरना होता है. संस्कार में शिखा, नए तरीके से उपनयन, लंगोठी, एक रुद्राक्ष और एक केश काटना शामिल है.

ब्रह्माचारी बनने के बाद अखाड़े का विद्वान एक केश काटकर उसे ब्रह्माविद्या से गांठ देकर गंगा में विसर्जित करता है. फिर पांच गुरु मिलकर उसे रुद्राक्ष के एक दाने की जो पंचमुखी या 11 मुखी होगी पहनाएंगे. इसके बाद उसके गले से यह कंठी नहीं उतरेगी. अखाड़े के महामंडलेश्वर महंत कैलाशानंद बताते हैं कि यह जनेऊ, शिखा एवं कंठी ब्रह्मचारी की पहचान है. जो ब्रह्माचारी इनका परित्याग करता है तो उसे नरक में जाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि यदि किसी को जन्मजात कोई बीमारी होगी तो उसे ब्रह्माचारी नहीं बनाया जा सकता है. गायत्री साधना और उपासना अनिवार्य है.

 अखाड़े में पद पाने लिए कठिन रास्ता

अखाड़े में आगे बढ़ने का रास्ता कठिन है. निष्ठा एवं कार्य देखकर महंत, श्री महंत की उपाधि मिलती है. श्री महंत बनने के बाद थानापति, सचिव और महासचिव का प्रभार सौंपा जाता है. कुंभ का प्रभार भी सचिव या महासचिव को ही हासिल होता है. अखाड़े में 60 महंत, चार सचिव के पद हैं. यह सब मिलकर सभापति का चुनाव करते हैं.अखाड़े में अध्यक्ष एवं महामंत्री का कार्यकाल छह वर्ष का होता है. कुंभ में ही अखाड़े के पदाधिकारी का चुनाव होता है.

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कुंभ में चुना जाएगा महासचिव

अग्नि अखाड़े में महासचिव का पद रिक्त है. महंत गोविदानंद के ब्रहमलीन होने के बाद से यह पद खाली है. महंत कैलाशानंद ने बताया कि 4 फरवरी मौनी अमावस्या के बाद महासचिव के पद का चुनाव होगा.

30 ब्रह्माचारी होंगे दीक्षित

अग्नि अखाड़ा मौनी अमावस्या के पहले 30 ब्रह्माचारी को दीक्षित करेगा. इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है. गंगा तट पर इन्हें दीक्षा दी जाएगी.

Post By Religion World