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भारत की दो महान संस्कृतियों ने मिलकर परमार्थ निकेतन में धूमधाम से मनाई मकर संक्रान्ति

भारत की दो महान संस्कृतियों ने मिलकर परमार्थ निकेतन में धूमधाम से मनाई मकर संक्रान्ति

  • स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने देशवासियों को दी लोहड़ी, मकर संक्रान्ति एवं पोंगल की शुभकामनायें
  • नदियों को स्वच्छ करने का लिया संकल्प
  • मिलना और भीतर के मैल को मिटा देना ही है मकर संक्रान्ति- स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 14 जनवरी। परमार्थ निकेतन में विदेशी सैलानियों, लद्दाख से आये बौद्ध धर्म गुरू लामा, बौद्ध धर्म की अनुयायी युवा भिक्षुनियों एवं परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज एवं साध्वी भगवती सरस्वती जी के सानिध्य में धूमधाम से मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया। स्नान, दान, ध्यान, यज्ञ एवं गंगा तट की स्वच्छता के साथ आज के पावन पर्व की शुरूआत हुई। भारत की दो महान संस्कृतियाँ, सनातन धर्म और बौद्ध धर्म के अनुयायी जिसमें हिन्दू धर्म के ऋषिकुमारों एवं बौद्ध धर्म की युवा भिक्षुनियों ने मिलकर माँ गंगा के तट पर विश्व शन्ति के लिये प्रार्थना की और स्वामी जी की प्रेरणा से इन नन्ही-नन्ही बौद्ध कन्याओं ने पौधा रोपण कर पर्यावरण को समर्पित हरित मकर संक्रान्ति मनायी।

स्वामी जी ने मकर संक्रान्ति के विषय में जानकारी देते हुये कहा कि ’सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना संक्रान्ति काल होता है और वर्ष में 12 संक्रान्तियां होती है परन्तु पौष माह की संक्रान्ति विशेष होती है इस दिन सूर्य, पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की ओर मुड़ जाता है। परम्परा के अनुसार पौष माह में सूर्य मकर राशी में प्रवेश करता है उस दिन मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है। यह अनेक बदलावों और संकेतों को जन्म देता है। मकर संक्रान्ति अर्थात अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना। हमारे जीवन में भी जो अज्ञान रूपी अन्धकार है; प्रकृति में प्रदूषण रूपी जो अन्धकार है उसे समाप्त कर प्रकाश की ओर; सकारात्मकता की ओर; स्वच्छता की ओर अग्रसर होना ही संक्रान्ति है।

शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इस दिन प्रकृति में विद्यमान हर कलियां और फूल खिलने लगते है; प्रकृति में बहार आने लगती है उसी तरह प्रत्येक मनुष्य का जीवन भी खिल उठे, जीवन में भी बहार आए, प्रसन्नता आये यह तभी सम्भव है जब हम अपनी संस्कृति और संस्कारों को सम्भाल कर रखे।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा ‘मकर संक्रान्ति के दिन स्वयं के स्नान से पूर्व नदियों को करायें महास्नान, जब नदियां स्वच्छ रहेगी तभी हमारा स्नान भी सार्थक होगा और अपने जीवन में प्लास्टिक का उपयोग करना बंद करे यही आज हमारी ओर से प्रकृति के लिये स्वच्छता रूपी महादान होगा। स्वामी जी ने कहा कि आज गंगा के तट पर हम देश की दो महान संस्कृतियों के संगम को देख रहे है यह मिलाप समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। मिलना और भीतर के मैल को मिटा देना ही मकर संक्रान्ति है। उन्होने कहा कि आज हर हृदय में मिलन का सूर्य उदय हो; स्नान, ध्यान, दान और सबका करे सम्मान यही है मकर संक्रान्ति पर आहृवान।’

लद्दाख से आयी बौद्ध युवा भिक्षुनियां जिन्होंने विश्व में शान्ति की प्रतिष्ठा के लिये अपना जीवन समर्पित किया है वे परमार्थ निकेतन में जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी से गीता, भारतीय आध्यात्म एवं जीवन मूल्यों के विषय में मार्गदर्शन प्राप्त कर रही है।


लद्दाख और परमार्थ निकेतन मिलकर स्वच्छता, शिक्षा, योग, ध्यान एवं शान्ति के लिये मिलकर कार्य करेंगे इससे दो संस्कृतियों के आदन-प्रदान के साथ युवा पीढियों में सहयोग एवं समरसता के गुणों का भी उद्भव होगा। आज इस पावन अवसर पर स्वामी जी महाराज एवं साध्वी जी के सानिध्य में माँ गंगा के तट पर नदियों की स्वच्छता के संकल्प के साथ बौद्ध धर्मगुरू लामा, युवा बौद्ध भिक्षुनियों एवं ऋषिकुमारों ने मिलकर विश्व ग्लोब (वाटर ब्लेसिंग सेरेमनी) का जलाभिषेक किया।

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