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हरिद्वार कुंभ: जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की शाही पेशवाई

यदि आपको भारतीय पुरातन सभ्यता की झलक चाहिए तो कुंभ मेले से बेहतर स्थान और कोई नहीं है. कुंभ मेले का समृद्ध इतिहास अपने आप में बेमिसाल है. कुंभ सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है.



धर्मनगरी हरिद्वार में भव्य पेशवाई निकलनी आरम्भ हो चुकी है. चलिए जानते हैं आखिर क्या है शाही पेशवाई की परंपरा

सांस्कृतिक परंपराओं को जोड़ता है कुंभ

कुंभ अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजने और धर्म को समाज से जोड़े रखने का महापर्व है. कुंभ साधु-संतों के प्रति समाज की आस्था को प्रदर्शित करने का पर्व है. यह वो साधु संत हैं जिन्होंने न केवल धर्म संस्कृति को तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद और मजबूत किया, बल्कि समय-समय पर देश की रक्षा के लिए हथियार भी उठाए.

जब भी कुंभ होता है, तो देशभर से तपस्वी साधु-संत कुंभनगरी में पहुंचते हैं. तो इनका राजसी स्वागत किया जाता है. इन साधु संतों को पेशवाई के रूप में शाही ठाट-बाट और शानो-शौकत के साथ कुंभ में प्रवेश कराया जाता है. साधु-संतों कि शाही पेशवाईयों को देखने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु कुंभ नगरी में पहुंचते हैं. एक समय ऐसा भी था जब शाही पेशवाईयों को लेकर ब्रिटेन की संसद भी सनातन परंपरा के आगे झुक गई थी.

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क्यों निकाली जाती है शाही पेशवाई?

हरिद्वार कुंभ: जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की पेशवाई

हरिद्वार में कुंभ में अखाड़ों की पेशवाईयों का सिलसिला शुरू हो गया है. दरअसल, किसी भी अखाड़ें के लिए पेशवाई बहुत खास होती है, पेशवाई यानी राजसी शानो- शौकत के साथ साधु-संतों का कुंभ में प्रवेश कराना है.
पेशवाई का मतलब ऐसी शोभायात्रा से होता है, जिसमें साधु-संत शाही रूप में राजा महाराजों की तरह हाथी, घोड़ों और रथों पर बड़े-बड़े भव्य सिंहासनों पर बैठकर निकलते हैं और जनता रास्ते भर उनका स्वागत व सम्मान करती है.

धर्म और संस्कृति की रक्षा

हरिद्वार कुंभ: जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की पेशवाईआजादी से पहले जब देश अलग-अलग रियासतों में बंटा हुआ था और धर्म संस्कृति पर खतरे मंडरा रहे थे, तब राजा महाराजों ने धर्म, संस्कृति और देश की रक्ष के लिए साधु संतों से आग्रह किया था. संतों ने धर्म प्रचार के साथ-साथ तलवार उठाकर भी धर्म संस्कृति और देश की रक्षा की थी. तभी से जहां भी कुंभ पर्व होता था तो साधु संतों को राजा महाराजा अपने रथ हाथी घोड़ों पर शाही रूप में कुंभ में पेश कराते थे. पहले राजाओं को पेशवा भी कहा जाता था, इसलिए संतों के कुंभ में प्रवेश को पेशवाई कहा जाता है.

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अंग्रेजों ने भी किया शाही पेशवाई का सम्मान

हरिद्वार कुंभ: जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की पेशवाईअंग्रेजों ने भी पेशवाई का सम्मान किया है और ब्रिटेन की संसद में पेशवाई को लेकर बहस की गई और उन्होंने भी माना था कि अगर भारत पर राज करना है तो वहां की जन भावनाओं का ख्याल रखना होगा. क्योंकि भारत की जन भावना संतों के साथ जुड़ी हुई है.

कुंभ पुरातन सभ्यता की झलक

हरिद्वार कुंभ: जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की पेशवाईपेशवाई एक फारसी शब्द है और इसका अर्थ होता है कि अपनी सेना और परंपराओं के साथ नगर में निकलना. उसको पेशवाई कहा जाता है. जब पेशवाई किसी अखाड़े द्वारा निकाली जाती है, तो उसका कोई भी व्यक्ति अखाड़े में मौजूद नहीं होता है. पेशवाई के माध्यम से सभी साधु संतों का दर्शन नगर के लोग करते हैं. भारत में हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में ही कुंभ मेले में पेशवाई निकाली जाती है.



कैसे निकालते हैं शाही पेशवाई

हरिद्वार कुंभ: जानिए महाकुंभ में क्यों होती है अखाड़ों की पेशवाईपेशवाई में अखाड़े अपने सभी हथियार और निशान के साथ पेशवाई निकालते हैं. यह सिर्फ कुंभ के अवसर पर ही निकाली जाती है. क्योंकि कुंभ में सभी अखाड़ों के साधु संत मौजूद होते हैं. इसलिए इस परंपरा को अनोखी परंपरा कहते हैं. उन्होंने कहा कि कुंभ का पहला स्वरूप ही पेशवाई होता है. पेशवाई हाथी, घोड़े, बैंड-बाजे के साथ निकाली जाती है, क्योंकि भारतीय परंपरा में इसको शुभ माना जाता है.

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Post By Shweta