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गणेश चतुर्थी: भगवान गणेश जी और उनके प्रतीक चिन्हों का महत्व

गणेश चतुर्थी से गणेशोत्सव आरम्भ हो चुका है। गणेश जी को विघ्नहर्ता, गणनायक, लंबोदर, विनायक आदि नामो से जाना जाता है। श्रीगणेश अपने भक्तो के हर कष्टों को दूर करने हेतु तत्पर रहते है। क्या आपने कभी सोचा है की गणेश जी का विशालकाय शरीर किन प्रतीकों की जानकारी देता है। चलिए आज हम उनके ही कुछ प्रतीकों के महत्व को जानेंगे…



गणेश जी का सिर

माता पार्वती के कहने पर जब भोलेनाथ ने श्णेरी गणेश को पुनः जीवित किया तब उन्शहें हाथी का सिर प्रदान किया । हाथी ज्ञानशक्ति और कर्म का प्रतीक है । हमारा ज्ञान और कर्म ही हमरे भविष्य का निर्धारण करता है। इसलिए जब इनकी पूजा की जाती है तो हमारे शरीर से अज्ञानता का अंत हो जाता है।

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गणेश जी का उदर

अब बात की जाए गणेश जी के उदर यानि पेट की। वह बहुत ही विशालकाय है जो उदारता और सम्पूर्णता लिए हुए है। जिससे हमे यह ज्ञान मिलता है की हमे भी सदैव ही उदारता रखनी चाहिए।

गणेशजी के हाथ

गणेश जी का एक हाथ उपर उठा हुआ है जो यह बताता है कि वह हमारी सदेव रक्षा करेंगे। दूसरा हाथ नीचे की और झुका हुआ है जो यह बताता है कि समय आने पर हम सभी इस मिटटी में मिल जायेगे। इसलिए किसी भी चीज़ का अभिमान नहीं करना चाहिए।

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एकदंत यानि एकाग्रता

गणेश जी एकदंत है। उनके एक दंत होने का भी अर्थ है एकाग्रता। वह अपने अंदर एकाग्रता लिए हुए है और जब इनको घर में स्थापित कर इनकी पूजा की जाती है जो यही संदेश मिलता है की एकाग्रता हर स्थिति में होनी जरूरी है।

अंकुश और पाश

भगवान् गणेश के हाथ में जो भी वस्तु है उसका भी कुछ न कुछ महत्व है। ऐसे में उनके हाथ में जो अंकुश है उसका अर्थ है जाग्रत रहना है क्योकि जाग्रति के साथ ही ऊर्जा उत्पन्न होती है और पाश का अर्थ है नियंत्रण करना क्योकि नियन्त्रण नहीं होगा तो व्याकुलता हो सकती है।



गणपति का वाहन मूषक

गणेश जी का वाहन मूषक है। मूषक पहले एक असुर था लेकिन श्रीगणेश ने उसे परास्त कर अपना वाहन बना लिया। उनका यह वाहन ज्ञान देता है कि हम अज्ञानता रूपी बंधन में बंधे हैं। जिस प्रकार चूहा एक रस्सी काट कर बंधन मुक्त कर सकता है उसी प्रकार हमें भी अज्ञानता रुपी बंधन से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए ।

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Post By Shweta