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बौद्ध साहित्य: जानिए बौद्ध ग्रन्थ विनयपिटक के बारे में

विनय पिटक एक बौद्ध ग्रंथ है. यह तीन पिटकों में से एक है, जो त्रिपिटक बनाते हैं. इस ग्रंथ का प्रमुख विषय विहार के भिक्षु- भिक्षुणियों आदि हैं, इसमें संघ संबंधी नियमों, दैनिक आचार-विचारों व विधि-निषेधों का संग्रह है,अर्थात् इस ग्रंथ में बौद्ध संघ के नियम तथा विधान मिलते हैं.



विनय पिटक का अर्थ

विनय पिटक का शाब्दिक अर्थ है- अनुशासन की टोकरी.अतः हम कह सकते हैं कि विनय पिटक विनय से संबंधित नियमों का व्यवस्थित संग्रह है.

विनय पिटक के भाग

इसके 4 भाग हैं –

सुत्त विभंग

खन्धक

परिवार / परिवार पाठ

पत्तिमोक्ख (प्रतिमोक्ष)संहिता

सुत्त विभंग

बौद्ध धर्म के विनय पिटक के सुत्तविभंग ग्रंथ में सुत्तविभंग का शाब्दिक अर्थ है- ‘सुत्रों (पातिभोक्ख के सूत्र) पर टीका.’

इसके दो भाग ‘महाविभंग’ एवं ‘भिक्खुनी विभंग’ हैं.

महाविभंग में बौद्ध भिक्षुओं के लिए एवं भिक्खुनी विभंग में बौद्ध भिक्षुणियों हेतु नियमों का उल्लेख है.

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खन्धक

यह दो भागों में विभाजित है- महावग्ग तथा चुल्लवग

महावग्ग में संघ के अत्यधिक महत्त्वपूर्ण विषयों का उल्लेख है.

इसमें कुल 10 अध्याय हैं.

चुल्लवग्ग में 12 अध्याय हैं.

इसमें वर्णित विषय कम महत्त्वपूर्ण हैं.

खन्धक में महात्मा बुद्ध के सारनाथ में दिये गये उपदेश के समय उपस्थित 5 ब्राह्मणों का उल्लेख मिलता है.

5 ब्राह्मणों को पंचवर्गीय ब्राह्मण कहा गया है, इनके नाम निम्नलिखित हैं-

कौण्डिन्य

भद्दीय

महानाम

अस्सणि

वज्र

परिवार

इसमें विनयपिटक के दूसरे भागों का सारांश प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत किया गया है.

पत्तिमोक्ख(प्रतिमोक्ष)

बौद्ध धर्म के विनय पिटक के पातिमोक्ख (प्रतिमोक्ष) ग्रंथ में अनुशासन संबंधी नियमों तथा उसके उल्लंघनों पर किये जाने वाले प्रायश्चित्तों का संकलन है.

पातिमोक्ख (पालि शब्द, अर्थात् जो बाध्यकारी है) संस्कृत प्रतिमोक्ष है.

पातिमोक्ख बौद्ध भिक्षुक संहिता है.

पातिमोक्ख 227 नियमों का एक संग्रह है जो भिक्षुओं व साध्वियों के दौरान जीवन की गतिविधियों पर नियंत्रण रखता है.

पालि धर्मविधान में पतिमोक्ख के निषेध अपराध की गंभीरता के अनुसार व्यवस्थित हैं – वे अपराध, जिनमें संप्रदाय से तुरंत व आजीवन निष्कासन आवश्यक है, अस्थायी निलंबन या विभिन्न अंशों में क्षतिपूर्ति अथवा प्रायश्चित्त से लेकर वह अपराध, जिनमें केवल स्वीकारोक्ति की आवश्यकता होती है. इसमें भिक्षुक समुदाय के आपसी मतभेदों के समाधान के लिए नियम भी दिए गए हैं.

संपूर्ण पातिमोक्ख का पाठ उपोसथ अथवा थेरवाद भिक्षुओं की पाक्षिक सभा के दौरान किया जाता है.



सर्वास्तिवाद (सभी सत्य हैं का सिद्धांत) परंपरा के संस्कृत धर्मविधान में भिक्षुक जीवन के 250 नियमों के एक तुलनीय समूह का वर्णन है, जो उत्तरी बौद्ध देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है.

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Post By Shweta