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वृंदावन के रंगनाथ मंदिर में ब्रह्मोत्सव शुरू, भक्तों को दर्शन देने निकले भगवान  

वृंदावन के रंगनाथ मंदिर में ब्रह्मोत्सव शुरू, भक्तों को दर्शन देने निकले भगवान

7 मार्च, वृन्दावन; श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन में रंगनाथ मंदिर में हर साल होने वाले ब्रह्मोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। उत्सव के पहले दिन भगवान गोदारंगमन्नार भक्तों को दर्शन देने के लिए निकले। सुबह पूर्वकोठी और शाम को स्वर्ण निर्मित सिंह शार्दुल पर सवार होकर भगवान ने भक्तों को दर्शन दिए।

कौन हैं भगवान गोदारंगमन्नार ?

भगवान गोदारंगमन्नार स्वंय भगवान विष्णु हैं। आंध्रप्रदेश के तिरुपति में श्री वैंक्टेश भगवान के स्वरूप में विराजमान हैं जिनके अगल-बगल श्रीदेवी और भूदेवी के रूप में क्रमश: लक्ष्मी माता और धरती माता विराजमान हैं। ब्रम्होत्सव जैसा आयोजन तिरुपति बालाजी में भी होता है जिसका स्वरूप वृंदावन के रंगनाथ मंदिर में आयोजित होने वाले ब्रम्होत्सव के दौरान देखने को मिलता है।

कौन है सिंह शार्दुल ?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वर्ण निर्मित नंदन वन में सिंह शार्दुल नामक बलशाली पशु वनराज के नाम से पुकारा जाता है। इसकी आकृति सिंह के समान, सूंडयुक्त एवं विशाल पंख वाली होती है। माना जाता है कि यह अपनी सूंड से हाथी को पकड़कर आकाश में भी उड़ सकता है। इसकी यह शक्ति भगवान की ही देन है। अत: स्वर्ण रजित इस वाहन पर भगवान के दर्शन मात्र होने से समस्य भय दूर हो जाते हैं और शक्ति एवं पराक्रम की प्राप्ति होती है।

15 मार्च तक चलेगा ब्रम्होत्सव

यह आयोजन 10 दिन तक चलेगा। इस दौरान भगवान हर रोज इसी तरह सुबह-शाम अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर निकलेंगे और भक्तों पर कृपा बरसाने के लिए पधारेंगे। भगवान की सवारी के दौरान दक्षिण भारत से पधारे विद्वानों द्वारा कृष्ण यजुर्वेद से भगवान की स्तुति, अर्चन-वंदन किया जाता है। इस दौरान हर रोज सुबह-शाम भगवान की सवारी रंगनाथ मंदिर से शुरू होकर मंदिर के ही दूसरे स्थान बड़े बगीचे तक पहुंचती है जहां भगवान का अर्चन-वंदन किया जाता है और प्रसादी भी लगाया जाता है। इसके बाद सवारी पुन: रंगनाथ मंदिर पहुंचती है।

169 सालों से हो रहा है आयोजन

श्रीधाम वृंदावन निवासी भागवताचार्य श्री वैंक्टेश आचार्य ने बताया “169 सालों से प्रति वर्ष यह आयोजन हो रहा है। ब्रह्मोत्सव के इस आयोजन में देशभर से साधु-संत और जगतगुरू वृंदावन धाम में जुटते हैं। इसके साथ ही विदेशों से भी श्रद्धालु और सैलानी भी श्रद्धा भाव से हिस्सा लेते हैं। भगवान की सवारी जिस मार्ग से गुजरती है वहां स्थानीय लोग अपने-अपने घरों के आगे रंगोली सजाकर भगवान का स्वागत करते हैं और प्रसादी लगाते हैं।”

रंगनाथ मंदिर को सोने के खंभे वाले मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। जानकारों के मुताबिक भगवान की सेवा में 84 मन सोने का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर के गौपुरम पर लगे स्वर्ण कलश, स्वर्ण स्तंभ, भगवान की सोने की सवारियां और आभूषण मंदिर की भव्यता दर्शाते हैं।

उत्सव से पहले भगवान के सेनापति ने लिया जायजा

आयोजन शुरू होने से पहले सोमवार को व्यवस्थाओं का जायजा लेने के लिए भगवान के सेनापति विश्वक्सेन जी की सवारी निकली। इस दौरान भगवान की यात्रा के मार्ग और दूसरे इंतजामों का जायजा लिया गया। खास बात यह है कि भगवान विश्वक्सेन इस सवारी के जरिए खुद यात्रा मार्ग का जायजा लेने पालकी में सवार होकर निकलते हैं। इसे सड़क साफ के नाम से भी जाना जाता है।

आखिरी दिन जुटेंगे करीब 25 हजार श्रद्धालु

यात्रा के दौरान हर रोज हजारों श्रद्धालु भगवान के दर्शनों के लिए जुटते हैं। आखिरी दिन 25 हजार से भी ज्यादा भक्तों की भीड़ जुटने की संभावना रहती है। 10 दिन तक चलने वाले इस आयोजन के दौरान मेला भी लगता है जिसमें मनोरंजन और खान-पान के इंतजाम होते हैं। मेले में स्थानीय और बाहरी श्रद्धालु जमकर खरीदारी भी करते हैं।

रिपोर्ट- डॉ. देवेन्द्र शर्मा

Email: sharmadev09@gmail.com    

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Post By Shweta