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वृन्दावन कुंभ बैठक : जानिए आखिर क्यों मनाया जाता है वृंदावन कुंभ ?

अब तक आप सबने चार कुम्भ के बारे में सुना होगा लेकिन आप सबको जानकर यह आश्चर्य होगा कि भारत में होने वाले चार प्रमुख कुंभों के अलावा भी एक कुम्भ बैठक की परंपरा भी है। हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक कुंभों के अलावा ये कुम्भ बैठक वृंदावन में हर बारह साल पर आयोजित होता है।



इस साल वृन्दावन कुंभ बैठक का आरंभ 16 फरवरी यानि बसंत पंचमी से होगा तथा इसका समापन रंग भरनी एकादशी के साथ ही 25 मार्च को होगा। कुम्भ बैठक मेले का समापन रंगभरनी एकादशी को पंचकोसीय वृंदावन की परिक्रमा से होगा।

इसका फैसला महंत राजेंद्रदास महाराज, महंत रामजीदास महाराज, महंत फूलडोलबिहारी दास महाराज, महंत धर्मदास महाराज, महंत मोहनदास, गौरीशंकर दास, रामकिशोरदास, महंत हरशिंकर दास महाराज के द्वारा लिया गया है।

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वृंदावन कुंभ का इतिहास

इस पावन कुंभ बैठक को वैष्णव कुंभ के नाम से भी जाना जाता है। यदि धर्म गुरुओं की माने तो इस कुंभ का इतिहास बहुत पुराना है। साधु समाज इस मेले की ऐतिहासिकता पाँच हज़ार साल पुरानी बताते हैं, जिसका नाता समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश से जुड़ा है।

कृष्ण भक्तों के लिए लिए यह वृंदावन की पवित्र भूमि है. यमुना जल को यहाँ चरणामृत की तरह पूजा जाता है. इसलिए यमुना स्नान को यहां कुंभ स्नान की तरह माना जाता है.

संतों की मानें तो उनके अनुसार भागवत पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि जब समुद्र मंथन किया जा रहा था तो उसमें से जो अमृत कलश प्रकट हुआ वह वरुण जी सबसे पहले लेकर के वृंदावन ही आए थे. इसके बाद में वह एक वृक्ष पर जा बैठे और वहां बैठने के दौरान कलश में से कुछ बूंदे उस वृक्ष के पास गिरीं जिसके बाद यह भूमि पवित्र मानी गई.

इससे जुड़ी एक और कथा है कि वृंदावन में एक कुंड था. जिसमें कालिया नाम का एक नाग रहता था. उसके विष के कारण आसपास के सभी जीव-जंतु, पेड़, पौधे नष्ट हो गए थे. सबको बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण इस नदी में कूद गए थे. ऐसा माना जाता है कि इससे अमृतत्व इस नदी में जा मिला और तब से इस कुंभ का शुभारंभ हुआ.

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देवलोक का कुंभ

वैष्णवों के लिए यमुना नदी गंगा की ही तरह एक पवित्र नदी है. गंगा नदी तो हरि के चरणों से निकलकर विष्णुपदी के नाम से जानी जाती है. वहीं यमुना नदी खुद श्रीकृष्ण की कई पत्नियों में एक मानी जाती हैं.



ऐसा माना भी जाता है कि यमुना की प्राचीनता गंगा से अधिक है. इसलिए साधु समाज में वृंदावन के कुंभ को देवलोक के कुंभ के नाम से भी जाना जाता है.

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Post By Shweta