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क्या रामानुजन के महान गणितज्ञ होने के पीछे था देवी नामागिरि का हाथ ?

क्या रामानुजन के महान गणितज्ञ होने के पीछे देवी नामागिरि का हाथ ?

रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को कोयंबटूर के ईरोड नामक गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम कोमलताम्मल और पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था. रामानुजन को गणित में किसी भी तरह का कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला था, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में एक विशेष योगदान दिया. उन्होंने स्वयं से गणित सीखी तथा अपने जीवन में गणित के करीब 3884 प्रमेयों का भी संकलन किया.

सिर्फ 32 साल की छोटी सी जिंदगी में उन्होंने 3900 नए प्रमेय खोजे. बिना इसकी चिंता किए कि उनके काम का दुनिया के लिए कभी कोई मतलब बनेगा या नहीं. लेकिन उनके जाने के बाद गुजरे 92 सालों में एक भी ऐसा नहीं गया, जब उनके किसी काम को लेकर गणित और भौतिकी में सनसनी न मची हो, या उससे प्रेरणा लेकर कोई नई खोज न हुई हो. पंद्रह साल  की  उम्र  में  मैट्रिक  करने  के  बाद  रामानुजन  भारत में कोई और इम्तहान पास नहीं कर पाए.

उन्होंने 1904 में मैट्रिक किया.  स्कूल प्रिंसिपल की इस टिप्पणी के साथ कि इतने तेज छात्र को इम्तहान के सारे नंबर दे दिए जाएं  तो भी  कम  रहेगा. लेकिन रामानुजन की दिलचस्पी सिर्फ गणित में थी और आगे की पढ़ाई केलिए तीन और विषयों में कुछ न कुछ दखल  जरूरी  था. ग्यारहवीं में फेल होकर स्कॉलरशिप के रूप में पढ़ाई का अकेला जरिया  खो देने और आधे पेट खाकर पढ़ाई  जारी रखने के लिए  बड़ा  कलेजा चाहिए था. वह रामानुजन के पास था. लेकिन फिर बारहवीं में वे तीन बार फेल हुए और तब मात्र नौ साल  की जानकी अम्मल से  उनकी शादी कर दी गई.

अगले साल रामानुजन अपने जिला कलेक्टर वी.रामास्वामी अय्यर द्वारा थोड़ा ही पहले शुरू की गई इंडियन मैथमेटिकल  सोसाइटी  के  संपर्क  में आए . आधुनिक गणित से लगाव रखने वाले देश के गिने-चुने लोगों के बीच उनके  काम की चर्चा शुरू  हो गई.  गणित से  उनका  लगाव स्कूली  दिनों में हाथ लगी एस.एल.लोनी और जी.एस कार की किताबों के जरिए बना था ,  जिनमें इस शास्त्र  की आधुनिक  उपलब्धियों  के बारे में कुछ बातें सूत्रों में कही गई थीं. यहां से आगे की उड़ान उनकी अपनी थी. पश्चिमी या पूर्वी परंपरा का इसमें कोई दखल नहीं था.

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विवाह  हो जाने के बाद इंटर फेल मैथमेटिशियन के लिए रोजी रोटी  की तलाश शुरू हुई,  जो उन्हें मद्रास बंदरगाह की क्लर्की की तरफ ले  गई .  30 रुपये महीने जेब में आने लगे तो  उड़ान और तेज हुई.  लंदन के कुछ प्रोफेसरों को रामानुजन ने  अपने खोजे कुछ प्रमेय  बिना  किसी  व्याख्या के यूं ही  उतारकर भेज दिए ,  जिन पर नजर डालना भी उनको जरूरी नहीं लगा.  लेकिन जी एच हार्डी ने इन्हें पढ़ा और उनका माथा हिल गया. इन प्रमेयों में से कुछ पहले खोजे जा चुके थे  लेकिन कुछ बिल्कुल हवा से  उपजे हुए लग रहे थे.  हार्डी की राय उनके  बारे में यह बनी कि ये सही ही होंगे,  क्योंकि सिर्फ अंदाजे के  सहारे तो किसी को इनकी गंध  भी नहीं मिल सकती. हार्डी ने तुरंत रामानुजन को लंदन बुलाना चाहा, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया.  उनका सनातन धर्म  उन्हें विदेश  यात्रा  की इजाजत नहीं देता था.

कुलदेवी नामागिरी का  रामानुजन से क्या है सम्बन्ध 

ईरोड और कुंबकोनम के बीच नामाकल नामक एक जगह है. वहां नामागिरि लक्ष्मी  नरसिम्हा स्वामी मन्दिर है. इसमें मुख्य मूर्ति भगवान विष्णू के चौथे अवतार नरसिंह भगवान की है. देवी नामागिरी, नरसिंह भगवान की सहचरी हैं. वे देवी लक्ष्मी की अवतार हैं. उनकी मूर्ती भी उक्त मन्दिर में है. वे रामनुजन के माता-पिता के परिवार की कुलदेवी थीं.

रामानुजन के माता पिता को बहुत समय तक कोई सन्तान नहीं थी. वे अक्सर नामाकल में, नामगिरि से पुत्र रत्न की प्रार्थना करते थे. कहते हैं कि एक दिन  नामागिरी ने सपने में रामनुजन की मां को दर्शन दिये कि वह जल्द ही उनके पुत्र के माध्यम से अपनी बात कहेंगी. यह बात रामनुजन को उसके बचपन में  कई बार बतायी गयी और इसका उसके जीवन  में असर पड़ा.

रामानुजन सहजज्ञ (intuitive) थे. उन्हे अक्सर गणित के समीकरण का हल सूझता था. जब लोग उनसे पूछते, कि उनहें यह कैसे मालुम चला, तब वे कहते थे कि नामागिरी ही उन्हें बताती हैं. वे अक्सर कहते थे कि,

‘An equation means nothing to me unless it expresses a thought of God.’
गणित का समीकरण उनके लिये अर्थविहीन है जब तक कि वह ईश्वर के किसी विचार को न बताये.

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Post By Shweta