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राधाष्टमी का महत्व, कथा और पूजन विधि

राधाष्टमी का महत्व, कथा और पूजन विधि

श्रीकृष्ण के नाम को राधा के बिना अधूरा माना जाता है। ब्रज यानि मथुरा-वृंदावन के बरसाना में जन्मी राधा का जन्म भाद्रपद महीने की शुक्‍ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इसे राधाष्टमीं के तौर पर मनाया जाता है। 2018 की राधाष्टमीं 17 सितंबर को है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्रती को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

राधारानी के भक्तों के लिए ये दिन खास होता है। ब्रज में बरसाना की ऊँची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा श्रद्धालु करते है।

राधाष्टमी कथा

मान्यताओं के अनुसार राधाजी के पिता राजा वृषभानु और माता का नाम कीर्ति था। ऐसा पद्म पुराण में भी जिक्र आता है। एक बार जब राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि की साफ-सफाई कर रहे थे तब उनको भूमि पर कन्या के रूप में राधा जी मिलीं थीं।

इस के बाद राजा वृषभानु कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। राधा जी जब बड़ी हुई तो उनका जीवन सर्वप्रथम कृष्ण जी के सानिध्य में बीता। पुराणों के अनुसार राधा जी माँ लक्ष्मी की अवतार थी। जब कृष्ण जी द्वापर युग में जन्म लिया तो माँ लक्ष्मी जी भी राधा रूप में प्रकट हुई थी।

राधाष्टमी महत्व

वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में राधा जी को कृष्ण वल्लभा कहकर गुणगान किया गया है। राधाष्टमी के कथा श्रवण से व्रती एवम भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसम्पन्न बनता है। श्री राधा जी के जाप एवम स्मरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

मान्यता है कि यदि राधा जी का पूजा अथवा स्मरण नही किया जाता है तो भगवान श्री कृष्ण जी भी उस भक्त के द्वारा किये गए पूजा, जप-तप को स्वीकार नही करते है। श्री राधा रानी भगवान श्री कृष्ण जी के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। अतः कृष्ण जी के साथ श्री राधा रानी जी का भी पूजा विधि-पूर्वक करना चाहिए।

राधाष्टमी पूजन

राधाष्टमी के दिन प्रातः काल उठकर घर की साफ़-सफाई करना चाहिए। स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध मन से व्रत का संकल्प करना चाहिए। तत्पश्चात सर्वप्रथम श्री राधा रानी को पंचामृत से स्नान कराएं, स्नान करने के पश्चात उनका श्रृंगार करें। श्री राधा रानी की प्रतिमूर्ति को स्थापित करें। तदोपरांत श्री राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण जी की पूजा धुप-दीप, फल, फूल आदि से करना चाहिए।

आरती-अर्चना करने के पश्चात अंत में भोग लगाना चाहिए। इस दिन निराहार रहकर उपवास करना चाहिए। संध्या-आरती करने के पश्चात फलाहार करना चाहिए। इस प्रकार राधा अष्टमी की कथा सम्पन्न हुई।

Post By Religion World