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शिकागो में आचार्य लोकेश एवं भद्रबाहू  के सान्निध्य में पर्युषण पर्व का अभूतपूर्व आयोजन

शिकागो में आचार्य लोकेश एवं भद्रबाहू  के सान्निध्य में पर्युषण पर्व का अभूतपूर्व आयोजन

  • 4 मासखमण 9 वर्षीतप व सौ अठाई का तप जारी
  • पर्युषण पर्व आत्म शुद्धि और विश्व मैत्री का महापर्व है – आचार्य लोकेश

अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक एवं प्रख्यात जैन आचार्य डा. लोकेश मुनि एवं जैन समाज के प्रख्यात विद्वान श्री भद्रबाहु जी के सान्निध्य में अमेरिका के प्रख्यात शिकागो शहर में पर्युषण पर्व धूम धाम से मनाया जा रहा है। आचार्य जी का ओजस्वी प्रवचन सुनने के लिए प्रतिदिन प्रात: व सायं दोनों समय हजारों की संख्या में श्रद्धालु होते है जिसमे युवाओं की संख्या सर्वाधिक होती है। प्रवचन के साथ साथ तपस्या करने वाले भाई बहनों का ताँता लगा हुआ है। अब अनेकों भक्त अथाई तप का संकल्प स्वीकार कर चुके है। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व लन्दन, सिंगापूर, मलेशिया, अमेरिका में अनेकों बार आचार्य लोकेश के सान्निध्य में पर्युषण पर्व का आयोजन हुआ है।

शिकागो जैन सेंटर में 4 मासखमण, 9 वर्षीतप, सौ अठाई व प्रवचन में उपस्थित हज़ारों श्रद्धालुओं का उत्साह वर्धन पूज्य आचार्य लोकेशमुनिजी एवं बधरे बाउजी ने किया। पर्नल बेन शाह, सुर्य बेन मेहता, हिमेश भाई जावेरी एवं जयेश भाई ने मासखमण किया।

अमेरिका की भौतिक चकाचौंध के बीच पर्युषण पर्व में रिकार्ड तपस्या, दर्शन-पूजा, जप-तप स्वाध्याय का अभूतपूर्व नज़ारा जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल महसूस किया जा सकता हैं। तप, जप, मौन, ध्यान, स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक विषयों पर आचार्य लोकेश के ओजस्वी प्रभावी प्रवचन सुनने के लिए जैन सेंटर शिकागो के विशाल सभागार में अबाल वृद्ध सभी का उत्साह देखने लायक है।

भौतिक सुविधाओं की चरम सीमा पर पहुँच चुके शिकागो शहर में युवाओं में ध्यान, योग, आध्यात्मिक प्रवचन औत तपस्या के प्रति होड़ को देखकर आचार्य लोकेश ने कहा कि त्याग और संयम आधारित भारतीय संस्कृति के प्रति लोगों का आकर्षण इस बात को सिद्ध करता है कि भौतिक विकास सुख के साधन उपलब्ध करा सकता है किन्तु मन की शांति नहीं| मन की आतंरिक शांति के लिए आध्यात्म ही एकमात्र मार्ग है।

आचार्य लोकेश मुनिजी ने कहा धर्म, भौतिक विकास से विरोधी नहीं है किन्तु जो भौतिक विकास अध्यात्म की नींव आधारित होता है, वह जीवन में वरदान बनता है। अध्यात्म के अभाव में भौतिक विकास वरदान कि बजाय कभी कभी अभिशाप बन जाता है। उन्होंने जीवन में संतुलित नजरिया अपनाने कि सलाह देते हुए कहा अध्यात्म और भौतिकता के बीच संतुलन होने से  स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। आचार्य लोकेश ने कहा वर्तमान समय में धर्म और मोक्ष को भुलाकर केवल अर्थ और काम के पीछे अंधी दौड़ से विकृतियाँ पनप रही है।

श्री भद्रबाहु जी ने कहा कि पर्युषण महापर्व आत्मा- आराधना का विशिष्ठ पर्व है। इस पावन अवसर पर ध्यान, जप, स्वाध्याय, तप आदि के द्वारा आत्मा को कर्म बंधनों से मुक्त कर आध्यात्मिक विकास का प्रयास किया जाता है| भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित संयम आधारित जीवन शैली को अपनाकर व्यक्ति स्वस्थ, सुखी और आनंदमय जीवन जी सकता है।

श्रद्धानत हैं पूज्य आचार्य सुशीलमुनिजी व गुरूदेव चित्रभानुजी के प्रति जिन्होंने आज से 44 वर्ष पूर्व सर्व प्रथम जैन संत के रूप में विदेश यात्रा का साहसिक निर्णय लिया व विदेश में जैनधर्म को न केवल लुप्त होने से बचाया बल्कि जैन एकता की ऐसी नींव रखी कि यहाँ दिगम्बर श्वेताम्बर मूर्तिपूजक स्थानकवासी तेरापंथी सब एक छत के नीचे धर्म की आराधना करते है और इस यूनिटी के कारण यहाँ जैनों की आवाज़ युनाइटेड नेशन्स व व्हाइट हाउस में भी सुनाई देती है। काश भारत में भी ऐसा हो।

जैन सोसायटी शिकागो के चेयरमेन अतुल शाह व अध्यक्ष विपुल शाह ने अपने विचार व्यक्त किये ।

Post By Religion World