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ब्रह्माण्ड की शक्तियों के संचय का महापर्व ” नवरात्रि “

ब्रह्माण्ड की शक्तियों के संचय का महापर्व ” नवरात्रि “

ऋग्वेद के महावाक्य ‘कस्मै देवाय हविषा विधेमा’ अर्थात किस देवता या देवी की उपासना हम करें, यही शाश्वत प्रश्न सनातन धर्म के मूल में रहा है। नवरात्रि पर्व के नौ दिनों में भी हम अक्सर इसी संशय से जूझते रहते हैं कि आखिर किस देवी की उपासना का यह पर्व है । नवरात्रि

नवरात्रि

आमतौर पर नवरात्रि के पावन मौके पर देश भर में मां दुर्गा और मां काली की पूजा का प्रचलन है। कर्मकांड के लिए नवरात्र के दौरान देश भर के मंदिरों और घरों में श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ का भी प्रचलन रहा है। श्री दुर्गा सप्तशती को ही नवरात्र की पूजा का आधार माना जाता रहा है। लेकिन अगर हम श्री दुर्गा सप्तशती का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो हमें कुछ और ही नज़र आता है। श्री दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों को तीन भागों में बांटा गया है। प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र और उत्तम चरित्र ।

नवरात्रि

प्रथम चरित्र अध्याय प्रथम तक विस्तारित है। मध्यम चरित्र द्वितीय अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक है जबकि शेष अध्याय उत्तम चरित्र के अंतर्गत आते हैं। प्रथम चरित्र में विष्णु के ह्दय और नेत्रों से निकल कर दशभुजा महाकाली या महामाया मधु और कैटभ जैसे दो महादैत्यों के विनाश का माध्यम बनती हैं। मध्यम चरित्र में अम्बिका देवी का प्रादुर्भाव होता है जो महिषासुर दैत्य का विनाश करती हैं। जबकि उत्तम चरित्र में अंबिका और चंडिका देवियां अन्य देवी शक्तियों के साथ मिल कर चंड-मुंड, रक्तबीज, शुम्भ और निशुम्भ का संहार करती हैं।

इन तीनों चरित्रों में कहीं भी मां दुर्गा और मां काली की उन कथाओं का वर्णन नहीं हैं जिन्हें हम पढ़ते आए हैं। मां अंबिका को भविष्य में दुर्ग दैत्य का संहार करने के लिए दुर्गा का अवतार लेना है। मां काली के शिव पर विराजमान होने की कथा का भी सप्तशती में कोई वर्णन नहीं है। सप्तशती में जिन महाकाली के स्वरुप का वर्णन है वो विष्णु के ह्दय से निकलती हैं। इन तीनों चरित्रों में जिन महामाया, अंबिका और चंडिका देवी का उल्लेख है वो ब्रम्हांड की तीन महाशक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आमतौर पर संसार और हमारे शरीर में तीन प्रकार की शक्तियों का होना बताया गया है। सात्विक, राजसिक औऱ तामसिक।

सात्विक शक्ति से निर्माण कार्य होता है, राजसिक से पालन का कार्य और तामसिक से संहार का कार्य।  महामाया या महाकाली(ये शिव के उपर विराजित मां काली से भिन्न नहीं हैं) को ब्रम्हांड की काल निर्णायनी शक्ति के रुप में बताया गया है जिन्होंने सारे संसार को अपनी माया से मोहित कर रखा है। ब्रम्हा इन्ही को जाग्रत कर मायारुपी संसार का निर्माण शुरु करते हैं। इनकी अराधना से ही मनुष्य इस माया रुप संसार से मुक्त हो सकता है। अंबिका देवी सभी देवी देवताओं के भीतर स्थापित नारी शक्ति का संघनीत रुप हैं। कथा के मुताबिक ब्रम्हा, विष्णु, महेश और अन्य सारे देवी देवताओं के शरीर से जो राजसिक शक्ति पुंज निकला उसी से अंबिका देवी का प्रादुर्भाव होता है। इसी लिए वो हमारे शरीर और ब्रंहाड के में व्यापत उस राजसिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जिससे यह संसार चालित होता है।

चंडिका देवी ब्रह्मांड की उस तामसिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जिससे हमारे भीतर की तामसिक शक्तियों का संहार होता है। इन्ही तीनों काल निर्णायनी,सृष्टि का निर्माण करने वाली माध्यमिक शक्ति महामाया, संसार और शरीर की चलायमान राजसिक शक्ति अंबिका और आसुरी तामसिक संहारकारिणी शक्ति चंडिका के जागरण का महापर्व है नवरात्र।

प्रश्न यह भी है कि नवरात्र चैत्र और अश्वीन मास में ही क्यों मनाया जाता है। अगर हम गौर से देखें तो मार्च- अप्रैल और अक्तूबर-नवंबर के महीनों में मौसम का तापमान 30 से 35 डिग्री के आसपास होता है। इस तापमान पर वैज्ञानिक रुप से हमारा शरीर सबसे बेहतर तरीके से काम करने के लिए तैयार होता है। ऐसे वक्त में जब शरीर का तापमान बिल्कुल उपयुक्त हो तो ध्यान के द्वारा इन तीनों शक्तियों का नियमन करना आसान होता है।

सात्विक, राजसिक और तामसिक शक्तियों का उचित मेल हमारे शरीर औऱ संसार के अंदर इन तीनों उर्जाओं का इस प्रकार नियमन करता है जिससे पूरे वर्ष हमारे अंदर और संसार में उर्जा बनी रहती है। श्री दुर्गा सप्तशती में इन्ही तीनों शक्तियों के जागरण के लिए अनुष्ठान बताए गए हैं ताकि हमारे शरीर और संसार के भीतर व्यापत नकारात्मक आसुरी शक्तियों को खत्म कर पॉजीटिव उर्जा का संचार किया जा सके। इस नवरात्र भी महामाया, अंबिका और चंडिका रुपी सात्विक, राजसिक और तामसिक शक्तियों के नियमन का प्रयास करें यही नवरात्र की सच्ची पूजा होगी।

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लेखक – अजीत कुमार मिश्रा 

संपर्क – ajitkumarmishra78@gmail.com

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