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मकर संक्रांति – खगोलीय विज्ञान व हिन्दू एकता की महाक्रान्ति 

मकर संक्रांति – खगोलीय विज्ञान व हिन्दू एकता की महाक्रान्ति 

भारतीय सनातन संस्कृति आध्यात्म और विज्ञान परक है। इस संस्कृति की परम्पराएं, रीति और रिवाज जो विज्ञान परक हैं, वो मानव कल्याण हेतु प्रारम्भ की गई। ज्योतिष विज्ञान एक महाविज्ञान है। अतः ज्योतिष को उपवेद भी कहा जाता है। भारतीय तिथि-तालिका, पंचांग अथवा विक्रमी संवत् के नाम से जाना जाता है। इसे पंचांग इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके माध्यम से ज्योतिष के पांच अंगो की दैनिक जानकारी प्राप्त होती है – तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। भारतीय पर्व-त्योहारों की तिथियाँ भी इसी पर आधारित होती हैं। भारतीय पंचांग (कैलेंडर) मात्र सूर्य और चंद्रा की गति पर आधारित नहीं होता। इसकी गणना 9 ग्रह, 12 राशियाँ, और 28 नक्षत्रों की गति से की जाती है। और इन्ही गणनाओं पर आधारित पर्व त्योहारों की तिथियाँ निश्चित की जाती है, और इन्ही त्योहारों में एक त्यौहार है मकर-संक्रांति। पूरे भारत वर्ष में इस पर्व को मनाया जाता है।

मकर संक्रांति का पर्व भी पूर्ण रूपेण ज्योतिष गणना पर ही आधारित है। बारह राशियों में दसवीं राशि मकर-राशि है। सूर्य जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति होती है। इस प्रकार सूर्य एक वर्ष में 12 राशियों से गुजरता है। सभी राशि परिवर्तनों को संक्रांति नहीं कहा जाता है। मकर राशि में सूर्य का प्रवेश के साथ सूर्य उत्तरायण भी हो जाता है। कर्क राशि से धनु राशि तक सूर्य दक्षिणायन रहता है और मकर राशि से मिथुन राशि तक सूर्य उत्तरायण रहता है। उत्तरायण होना देवताओं का दिन कहा गया है और दक्षिणायन होना देवताओं की रात्रि कही गयी है। अतः इस दिन से सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

मकर-संक्रांति का महापर्व स्नान और दान का भी महा पर्व है. यह योगियों के लिए साधना का पर्व है. मकर संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष महत्त्व है.लेकिन इस स्नान और दान कर्म के पीछे भी ग्रहों का महा विज्ञान है.मकर राशि शनि की राशी है, शनि उसका स्वामी ग्रह है.सूर्य व् शनि दोनों विपरीत प्रकृति के ग्रह हैं.अगर मेष राशी में सूर्य ऊंचा होता है तो उसी मेष राशि में शनि निचा हो जाता है.शनि तुला राशि में ऊंचा होता है तो सूर्य तुला राशी में नीचा हो जाता है.सूर्य देवता और पूण्य ग्रह कहा जाता है लेकिन शनि असुर और पाप-न्याय ग्रह कहा गया है.लेकिन दोनों ही क्रूर ग्रह की श्रेणी में आते हैं.सूर्य शनि के बीच पिता-पुत्र का सम्बन्ध भी है.सूर्य अग्नि का ध्योतक है तो शनि ज्वलनशील तेल का.अगर सूर्य प्रचंड अग्नि- स्वरुप है तो शनि ज्वलनशील तेल के सामान है, जो अग्नि को भड़काने वाला है.जब मकर संक्रांति आती है तो एक क्रूर ग्रह जो अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है वो दुसरे विपरीत प्रकृति वाले क्रूर ग्रह जो कि ज्वलनशील तेल का परिचायक है उसकी राशि में प्रवेश करता है.मकर संक्रांति के दिन दोनों ग्रह अपनी क्रूरता को प्राप्त होते हैं, और प्रभावित लोगों के लिए कष्ट और व्याधियाँ भी लाते हैं.लेकिन सूर्य देव की क्रूरता सृष्टि के कल्याण के लिए ही होती है.धनु राशी का अंतिम चरण और मकर राशी का प्रथम तीन चरण उत्तर-आशाढ नक्षत्र के होते हैं, और इस नक्षत्र के देवता स्वयं सूर्य देव हैं.इस नक्षत्र में सूर्य का प्रवेश अत्यंत ही मंगलकारी होता है |  अतः इसी लिए यह दिन स्नान और दान का दिन है.शनि-देव को शांत रखने के लिए दान करना चाहिए अन्न का दान, काले कम्बल का दान, ऊनी वस्त्रों का दान, मछली को दाना डालना चाहिए, गाय को गुड़ खिलाना चाहिए, दरिद्रों को भोजन कराना चाहिए.प्रातः उठ कर ठीक सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए और सूर्य देव को जल से अर्घ्य अर्पित करना चाहिए, और सूर्य देव से कृपा बनाए रखने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए.आज के दिन अरुणोदय के साथ जल में स्नान करने से औषधीय लाभ प्राप्त होता है.मकर संक्रांति के दिन सात्विक भोजन ही करना चाहिए जिसमे तेल का प्रयोग ना हो और मिर्च मशाले का प्रयोग ना हो अथवा न्यूनतम हो.क्योंकि तेल-मशाले वाले राजसी और तामसी भोजन शरीर में अग्नि बढाते हैं और वैसे ही यह दिन अग्नि का दिन है सूर्य की प्रचंडता का दिन है तो शनि के उबाल का दिन है.सूर्य के उत्तरायण होने और मकर राशि में प्रवेश के साथ इस दिन जाड़े की जड़ता भी ख़त्म होने लगती है.एक नवीन प्रारम्भ होता है खलिहानों से फसल घरो में आने लगते हैं.खुशियों का दिन है तो साथ ही साथ पुण्य-दया-धर्म अर्जित करने का दिन है.यह बूढ़े बुजुर्गों के सम्मान का दिन है, क्योंकि सूर्य-देव शनि-देव के पिता हैं और पिता अपने पुत्र के घर आये हैं.और पिता का सम्मान पुत्र के द्वारा होना चाहिए.यह पर्व पुरे भारत वर्ष और अन्य देशों में भी किसी न किसी रूप में मनाया जाता है |

मकर-संक्रांति का पर्व पुरे भारत-वर्ष और नेपाल, थाईलैंड, लाओस, म्यांमार, कम्बोडिया, और श्रीलंका में भी मनाया जाता है यह भारतीय संस्कृति और पुरे भारत-वर्ष की एकता का भी प्रमाण देता है.यह पर्व तमिलनाडु में ‘पोंगल’ और ‘उझवर तिरुनल’ के नाम से, गुजरात और उत्तरखंड में ‘उत्तरायण’, पंजाब में लोहड़ी, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में ‘माघी’, असम में ‘भोगाली बिहू’ (माघ बिहू), उत्तर प्रदेश और बिहार में ‘खिचड़ी’ और ‘सकरात’ के नाम से, पश्चिम बंगाल में ‘पौष-संक्रांति’, कर्नाटक केरल व् आन्ध्र प्रदेश में ‘संक्रांति’, महाराष्ट्र और अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में मकर-संक्रांति के नाम से जाना जाता है .विदेशों में बांग्लादेश में ‘पौष-संक्रांति’, नेपाल में ‘माघे-संक्रांति’ और खिचड़ी, थाईलैंड में ‘सोंकरण’, लाओस में – ‘पि मा लाओ’, मयन्मार में ‘थिद्यान’, कम्बोडिया में ‘मोहा संगक्रान’ और श्रीलंका में ‘उझवर तिरुनल’ व् ‘पोंगल’ के नाम से मनाया जाता है.यह भारतीय संस्कृति का परचम ही है जो पुरे विश्व में मकर संक्रांति के दिन लहराता है.यह इस बात का प्रमाण है कि विश्व के आध्यात्मिक व् सांस्कृतिक धरातल पर सनातन धर्म की जड़े बहुत गहरी पहुंची हुई हैं .

(श्री मनीष देव)

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