लिंगायत कौन हैं? क्या ये हिंदू धर्म से अलग एक पंथ हैं?
लिंगायत (Lingayat) दक्षिण भारत का एक प्रमुख धार्मिक समुदाय है, जो मुख्यतः कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में पाया जाता है। इनकी परंपरा का आरंभ 12वीं शताब्दी में समाज सुधारक और संत बसवेश्वर (Basavanna) द्वारा हुआ था। उन्होंने उस समय प्रचलित कठोर जाति व्यवस्था और अनावश्यक धार्मिक आडंबरों का विरोध करते हुए समानता, भक्ति और सेवा पर आधारित जीवन पद्धति अपनाने का संदेश दिया।
लिंगायत परंपरा की मूल विशेषताएँ
लिंगायत समुदाय की धार्मिक मान्यताएँ उन्हें पारंपरिक हिंदू परंपराओं से कुछ अलग बनाती हैं। उनकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
निराकार शिव की पूजा (इष्टलिंग):
हर लिंगायत अपने गले में एक छोटा लिंग (इष्टलिंग) धारण करता है और उसे रोज़ पूजा करता है। यह शिव के निराकार रूप का प्रतीक है।जाति व्यवस्था का विरोध:
बसवेश्वर ने सभी मनुष्यों को समान माना। उन्होंने कहा कि किसी का जन्म नहीं, बल्कि कर्म ही व्यक्ति का मूल्य तय करता है।मूर्ति पूजा और वेदों का त्याग:
लिंगायत परंपरा में मूर्ति पूजा नहीं होती और वेद-पुराणों को धार्मिक अधिकार का स्रोत नहीं माना जाता।सादगीपूर्ण जीवन और सेवा भाव:
अनुयायी सादगी, नैतिकता, परिश्रम और समाज सेवा को जीवन का मूल उद्देश्य मानते हैं।
वचन साहित्य और संत परंपरा
लिंगायत परंपरा में “वचन साहित्य” बहुत प्रसिद्ध है। ये छोटे-छोटे भक्ति वचन होते हैं जो बसवेश्वर, अक्का महादेवी, अल्लमा प्रभु, चन्न बसवन्ना जैसे संतों द्वारा रचे गए। इन वचनों में ईश्वर भक्ति, समानता, करुणा और सामाजिक सुधार का संदेश निहित होता है।
क्या लिंगायत हिंदू धर्म से अलग हैं?
कई लोग लिंगायतों को हिंदू धर्म का ही एक पंथ मानते हैं, क्योंकि वे शिव में आस्था रखते हैं।
वहीं, लिंगायत परंपरा स्वयं को एक अलग सुधारवादी धार्मिक परंपरा मानती है, जो जाति और शास्त्रों के बंधनों को नहीं मानती।
वर्तमान में सरकारी रिकॉर्ड में लिंगायतों को हिंदू धर्म के अंतर्गत ही सूचीबद्ध किया जाता है, हालांकि समय-समय पर कुछ संगठनों ने इन्हें अलग धर्म का दर्जा देने की मांग भी की है।
इस तरह लिंगायत समुदाय धार्मिक रूप से विशिष्ट है, लेकिन प्रशासनिक रूप से फिलहाल हिंदू धर्म का ही हिस्सा माना जाता है।
लिंगायत समुदाय भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का महत्वपूर्ण अंग है। यह समुदाय हमें सिखाता है कि सच्चा धर्म आडंबर में नहीं, बल्कि भक्ति, सेवा और समानता में निहित होता है।
चाहे इन्हें हिंदू धर्म का पंथ माना जाए या एक अलग परंपरा, उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज को प्रेरित कर रही हैं।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो