Post Image

जगन्नाथ रथयात्रा: जानिये क्या है रथयात्रा की कथा और इसका धार्मिक महत्व

जगन्नाथ रथयात्रा हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को शुरू होती है, जो एकादशी को खत्म होती है। इस साल 23 जून को रथ यात्रा शुरू होगी, जो देवशयनी एकादशी के दिन यानी 12 जुलाई को समाप्त होगी।



इस पवित्र त्योहार का आयोजन ओड़िशा राज्य स्थित पुरी में होता है, जिसे भगवान जगन्नाथ का निवास स्थान कहा जाता है।

रथयात्रा की परंपरा 800 वर्ष पुरानी है। कालांतर से इस उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है। आइए, रथयात्रा की कथा जानते हैं कि क्यों इसका आयोजन किया जाता है और इसका महत्व क्या है-

यह भी पढ़ें-जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव 2020 : कैसे निकलेगी यात्रा ?

रथयात्रा की कथा

राजा ने उस काष्ठ से भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाने की सोची। उसी समय विश्वकर्मा वृद्ध बढ़ई के रूप में प्रकट होकर राजा से मूर्ति बनाने की इच्छा जताई, जिसे राजा ने स्वीकार कर लिया।

हालांकि, बढ़ई ने इसके लिए एक शर्त रखी कि जिस जगह पर वह मूर्ति का निर्माण करेगा। उस जगह पर कोई नहीं आएगा। राजा ने शर्त मान ली।

इसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने दरवाजा बंद कर मूर्ति निर्माण कार्य शुरू कर दिया। इस क्रम में तीन दिन बीत गये। तब महारानी ने राजा से बढ़ई की सुध लेने की बात कही। जब उस कमरे को खोला गया तो वहां कोई नहीं था।

जबकि काष्ठ की अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम प्रतिमा निर्मित थी। जब राजा ने प्रतिमा को छूने की कोशिश की तो आकाशवाणी हुई कि हे राजन ! आप चिंतित न हो, बल्कि इस रूप में ही हमारी पूजा करें। कालांतर से ही अर्द्धनिर्मित प्रतिमा की पूजा की जाती है।



ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने चिरकाल में नगर भ्रमण की इच्छा जताई तो भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी ने रथयात्रा निकाल सुभद्रा को नगर भ्रमण करवाया था। उस समय से रथयात्रा का विधान है।

[video_ads]

You can send your stories/happenings here:info@religionworld.in

Post By Shweta