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हरिद्वार महाकुंभ: श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने रखी थी नागा परंपरा की नींव

हरिद्वार महाकुंभ में अखाड़ों की पेशवाई से कुंभ का आगाज़ हो चुका है. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी देश का तीसरा सबसे बड़ा अखाड़ा है. ऐसा माना जाता है कि अखाड़े के इष्टदेव गुरु कपिल मुनि महाराज ने नागा परंपरा की शुरुआत की थी. यही नहीं मुगल शासकों से देश को आजाद कराने के लिए अखाड़े के संन्यासियों ने जंग भी लड़ी और राजाओं की मदद की.



पहली महिला महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ही पहला अखाड़ा था जिसने महिला सशक्तीकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए पहली महिला महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक किया था.
सनातन धर्म के प्रचार और प्रसार में आदिशंकराचार्य ने ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम, शृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और पुरी गोवर्धन पीठ की स्थापना की थी.
इन पीठों की रक्षा के लिए वैदिक हिन्दू पंरपरा के 13 अखाड़ों का गठन किया गया था. इन अखाड़ों में सबसे पुराना अखाड़ा श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी है. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने बताया विक्रम संवत 805 में महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना की गई थी.

महानिर्वाणी अखाड़े का गठन

हरिद्वार महाकुंभ: श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने रखी थी नागा परंपरा की नींवबिहार के हजारीबाग जिले में गडकुंडा में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में महानिर्वाणी अखाड़े का गठन हुआ. जब मुगल काल में हिन्दुओं पर अत्याचार बढ़ा तो अखाड़े के संन्यासियों को भी हथियार उठाने पड़े. अखाड़े के संन्यासियों ने युद्धों में कई बार मुगल सेना को हराया. हिन्दू धर्म के संरक्षण के लिए अखाड़ों ने राजाओं की मदद भी की थी.

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महाकालेश्वर की पूजा

महाकालेश्वर की पूजा की जिम्मेदारी श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के पास ही है. पहले प्रयागराज और वाराणसी अखाड़े के प्रमुख केंद्र रहे. इसके बाद हरिद्वार को अखाड़े ने अपना केंद्र बनाया. नासिक में भी अखाड़े के केंद्र हैं.

अखाड़े के महामंडलेश्वर आजीवन पद पर बने रहते हैं. आचार्य महामंडलेश्वर का चुनाव प्रमुख संत और महामंडलेश्वर करते हैं. अखाड़े में सचिव, श्रीमहंत, महंत, कोठारी और धनपति पांच पद प्रमुख होते हैं। ये पंचेश्वर कहलाते हैं. अखाड़े में किसी भी पद लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुनाव किया जाता है.

शक्ति स्वरूप भाले

अखाड़े के पास शक्ति स्वरूप कहे जाने वाले दो भाले हैं. इन भालों का नाम भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश है. भालों को मंदिर के अंदर इष्ट देव के पास रखा जाता है. पेशवाई और शाही स्नान में दो संत भालों को इष्टदेव के साथ चलते हैं.



प्रकृति प्रेमी अखाड़ा

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी प्रकृति प्रेमी अखाड़ा है. अखाड़े में आज भी संतों का भोजन बनाने के लिए लकड़ी और गोबर के कंडों का प्रयोग होता है.

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Post By Shweta