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कोरोना महामारी के विरुद्ध आध्यात्मिकजनों की सेवा

महामारी के विरुद्ध आध्यात्मिकजनों की सेवा

  • कोटि चण्डीपाठ से कोरोना महामारी को भगाने का उपक्रम आरम्भ – स्वामिश्रीःअविमुक्तेश्वरानन्दःसरस्वती

भगवान् आदि शंकराचार्य जी से जब पूछा गया कि आपत्ति के समय मनुष्य को क्या करना चाहिए तो उन्होंने कहा कि आपत्ति के समय देवी के चरणों का ध्यान करना चाहिए।

भगवत्पाद की इसी वाणी का स्मरण करते हुए हमलोग जहाँ एक ओर श्रीमद्देवीभगगवत की कथा पर चर्चा कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर कोटि चण्डी सत्रयज्ञ का अनुष्ठान प्रारम्भ भी चला रहे हैं ।

उक्त उद्गार परमधर्मसंसद् 1008 के प्रवर धर्माधीश स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज ने कही।

उन्होंने कहा कि जब प्रकृति से बहुत अधिक छेडछाड की जाती है तब इस तरह का प्रकोप आता है। यह कोई नयी बात नहीं है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने सार्वकालिक दृष्टि रखते हुए ही सब समस्याओं का समाधान ग्रन्थों में पहले से ही निबद्ध कर दिया है। देवी भागवत का यह वाक्य तिष्ठध्वं स्वनिकेतेषु इसी बात की ओर संकेत करता है।

काशी के केदार क्षेत्र में स्थित श्रीविद्यामठ में इस चैत्र नवरात्रि से पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज की प्रेरणा से स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज की अध्यक्षता में कोटि चण्डी पाठ प्रारम्भ हुआ।

ज्ञातव्य है कि इस पाठ का अनुष्ठान किसी छोटी समय-सीमा में न होकर पुराणों में वर्णित सत्र-याग की तरह से हो रहा है । अनेक वर्ष पर्यन्त चलने वाले अनुष्ठान को सत्र याग की संज्ञा दी जाती है ।

वर्तमान में भारतबन्दी के कारण आवागमन आदि बाधित होने के कारण अधिक पण्डित एक जगह एकत्र नहीं हो सकते अतः उपलब्ध पण्डितों से यह आरम्भ कर दिया गया है। क्षमता, परिस्थिति और समयानुसार इसमें वृद्धि की जा सकेगी। काशी में प्रारम्भ हुआ यह अनुष्ठान मिथिला के आचार्य पं अरुणेश्वर झा जी के नेतृत्व में कुल नौ पण्डितों ने प्रारम्भ किया है ।

स्वामिश्रीः ने आगे कहा कि बड़ी विपत्तियों का निराकरण करने के लिये बड़े अनुष्ठान की आवश्यकता होती है । विश्वव्यापी महामारी से रक्षा हेतु कोटिचण्डीसत्रयाग को ही उचित मानकर संकल्प लिया गया है ।

स्वामिश्रीः ने आगे कहा कि इस विकट परिस्थिति में जो जिस विधा का जानकार है वह उसी विधा से समाज का सहयोग कर रहा है । सरकारें व्यवस्था बना रही हैं, पुलिस सहयोग कर रही है, डाक्टर चिकित्सा कर रहे हैं, व्यापारी सामान पहुंचा रहे हैं , सामाजिक संस्थायें भोजनादि आवश्यकता की चीजें बाँट रही हैं। ऐसे में हम अध्यात्म से जुड़े लोग अपने आध्यात्मिक अनुष्ठानों से ही समाज की रक्षा कर सकते हैं। इसी भावना से यह महान् कोटि चण्डी सत्रयाग आरम्भ किया गया है। ज्ञातव्य है कि इसके तहत मार्कण्डेय पुराणोक्त दुर्गासप्तशती के सवा करोड़ पाठ किये जायेंगे। इसे ही चण्डी पाठ भी कहा जाता है । एक कुशल पण्डित को एक चण्डी पाठ पूरा करने में लगभग डेढ़ घण्टे का समय लगता है इस हिसाब से इस अनुष्ठान के लिए लगभग एक करोड़ सत्तासी लाख पचास हजार घण्टे लगेंगे ।

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