धर्म और शांति: आज के हालात हमें क्या सिखाते हैं?

धर्म और शांति: आज के हालात हमें क्या सिखाते हैं?

धर्म और शांति: आज के हालात हमें क्या सिखाते हैं?

आज की दुनिया तेज़ी से बदल रही है, लेकिन इसके साथ-साथ अशांति, तनाव और अविश्वास भी बढ़ता जा रहा है। युद्ध, हिंसा, सामाजिक विभाजन और धार्मिक टकराव की खबरें हमें बार-बार यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर धर्म, जिसका उद्देश्य शांति था, आज शांति का आधार क्यों नहीं बन पा रहा? शायद यह समय धर्म को दोष देने का नहीं, बल्कि धर्म से सीखने का है।

धर्म का मूल उद्देश्य क्या है?

धर्म किसी समुदाय को श्रेष्ठ साबित करने का साधन नहीं, बल्कि मानव चेतना को ऊँचा उठाने का मार्ग है।
हर धर्म हमें संयम, करुणा, क्षमा और सह-अस्तित्व का संदेश देता है। धर्म का जन्म ही इसलिए हुआ था कि मनुष्य हिंसा नहीं, विवेक से निर्णय ले।

आज के हालात क्या दिखाते हैं?

आज के हालात यह दिखाते हैं कि समस्या धर्म में नहीं, बल्कि धर्म के प्रयोग और प्रस्तुति में है।
जब धर्म आस्था की बजाय पहचान बन जाता है, तब वह जोड़ने के बजाय बाँटने लगता है।
आज धर्म को जीने की जगह, उसे साबित करने की होड़ चल रही है।

शांति क्यों टूटती है?

शांति तब टूटती है जब—

  • संवाद की जगह आरोप ले लेते हैं

  • सहिष्णुता की जगह अहंकार आ जाता है

  • आस्था में डर और राजनीति मिल जाती है

धर्म हमें डर से मुक्त करना सिखाता है, लेकिन जब डर फैलाया जाता है, तब धर्म का उद्देश्य उलट जाता है।

धर्म और राजनीति का उलझाव

आज के समय में कई बार धर्म को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
भावनाओं को भड़काना आसान होता है, क्योंकि धर्म दिल से जुड़ा होता है।
लेकिन जब धर्म सत्ता का औज़ार बन जाता है, तब शांति सबसे पहले घायल होती है।

आम व्यक्ति की भूमिका

शांति केवल धर्मगुरुओं या नेताओं की ज़िम्मेदारी नहीं।
हर आम व्यक्ति जब अपने दैनिक जीवन में—

  • सहनशील बनता है

  • भिन्न विचारों का सम्मान करता है

  • अफ़वाहों पर प्रतिक्रिया देने से पहले सोचता है

तब शांति समाज में उतरती है।

धर्म हमें क्या सिखाता है?

आज के हालात हमें यह सिखाते हैं कि—

  • धर्म दिखाने की चीज़ नहीं, जीने की चीज़ है

  • शांति बाहर नहीं, भीतर से शुरू होती है

  • दूसरे के धर्म को समझना, अपने धर्म को कमज़ोर नहीं करता

  • मानवता धर्म से पहले आती है

शांति की शुरुआत कहाँ से हो?

शांति की शुरुआत घर से होती है, भाषा से होती है और सोच से होती है।
जब हम अपने शब्दों में संयम लाते हैं, तब टकराव कम होता है।
जब हम अपने बच्चों को घृणा नहीं, संवेदना सिखाते हैं, तब भविष्य सुरक्षित होता है।

आज के हालात हमें धर्म से दूर नहीं, बल्कि धर्म के मूल्यों के पास लौटने का संदेश देते हैं।
यदि धर्म हमें अधिक मानवीय, सहिष्णु और संवेदनशील नहीं बना रहा, तो हमें अपने आचरण पर पुनर्विचार करना चाहिए।
क्योंकि धर्म का अंतिम उद्देश्य केवल ईश्वर तक पहुँचना नहीं, बल्कि शांति के साथ इंसान बनना है।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

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