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परमार्थ निकेतन में विजयादशमी के पावन अवसर पर आँखों का निःशुल्क शिविर

परमार्थ निकेतन में विजयादशमी के पावन अवसर पर आँखों का निःशुल्क शिविर

  • परमार्थ निकेतन, महावीर सेवा सदन और डिवाईन शक्ति फाउण्डेशन  के संयुक्त प्रयासों से नेत्र शिविर का आयोजन
  • स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने देशवासियों को दशहरे की शुभकामनायें दी
  • दशहरा बदले का नहीं भीतरी बदलाव का पर्व
  • दशहरा पर रावण का नहीं बल्कि राग, द्वेष और अहंकार का दहन किया जायें – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 8 अक्टूबर। परमार्थ निकेतन में दशहरा के पावन अवसर पर निःशुल्क नेत्र शिविर का आयोजन किया गया। यह शिविर परमार्थ निकेतन महावीर सेवा सदन और डिवाईन शक्ति फाउण्डेशन के संयुक्त प्रयासों से आयोजित किया गया।

उत्तराखण्ड के विभिन्न शहरों यथा श्री विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय, उत्तरकाशी, स्वामी शुकदेवानन्द धर्मार्थ अस्पताल, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश, आर पी पब्लिक स्कूल, बिजनौर, परमार्थ विद्या मन्दिर, प्रकाश भारती, ऋषिकेश में विभिन्न तिथियों में नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जा रहा है।

परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और महावीर सेवा सदन के श्री विनोद बगोडिया जी, साध्वी भगवती सरस्वती जी, सुश्री नन्दिनी त्रिपाठी और सभी नेत्र चिकित्सा टीम ने दीप प्रज्जवलित कर शिविर का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर स्वामी जी ने सभी के आन्तरिक दुगुणों के शमन का संकल्प कराया।

महावीर सेवा सदन के चेयरमैन, श्री विनोद बगोड़िया जी ने बताया कि महावीर सेवा सदन ने यह एम्बुलेंस बनायी है जिसमें नेत्र चिकित्सा की मशीनें लगायी गयी है। इस एम्बुलेंस को गांवों-गावों में ले जा सकते है तथा हम एम्बुलेंस में ही आँखों की जाॅच करते है और जिन रोगियों की आँखे कमजोर है उन्हें चश्मा भी देते है तथा जिन रोगियों को मोतियाबिंद है उन्हें चिन्हित कर उनके आपरेशन की भी व्यवस्था की जाती है। उन्होने बताया कि देेश के विभिन्न प्रसिद्ध आँखों के अस्पताल के साथ हमारे सम्पर्क है वहां के विशेषज्ञ और हमारी संस्था के विशेषज्ञ दल आँखों की जांच करते है। विगत एक वर्ष से हम प्रत्येक सप्ताह और कभी तो पुरे सप्ताह हम शिविर का आयोजन करते हैं। हमारा उद्देश्य है कि हम नेत्र चिकित्सा सुविधाओं को  अधिक से अधिक रोगियों तक पहुंचा सके।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि दशहरा बदले का नहीं बल्कि भीतरी बदलाव का पर्व है। प्रत्येक वर्ष रावण का पुतला बनाकर जलाना कोई बुद्धिमत्ता तो नहीं है बल्कि इससे पर्यावरण प्रदूषण होता हैै। अगर हम प्रतिवर्ष अपने भीतर के आलस्य, प्रमाद, ईर्ष्या, जलन, अहंकार, भष्ट्राचार जैसे दुर्गुण जो वास्तव में रावण के प्रतीक है उन पर विजय प्राप्त करे तो हमारे जीवन में दशहरा घटित होगा, अन्दर के दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करना ही विजया दशमी की पर विजय यात्रा की शुरूआत है। उन्होने कहा कि आज लोग अपने घरों में अपने परिवार के साथ दशहरा मना रहे है दूसरी ओर यह चिकित्सा टीम है जो सेवा के रूप में ही अपनी विजयादशमी मना रही है इनके लिये तो सेवा ही पर्व है; उत्सव है।

स्वामी जी ने कहा कि दशहरा पर्व वीरता और शौर्य के साथ बदलाव की संस्कृति को जन्म देता है। मनुष्य के अन्दर की अच्छाई जब बाहर आती है तो रामराज्य की स्थापना होती है; समाज का उत्थान होता है और जब बुराई बाहर आती है तो रावण की तरह पतन होता है। दुर्गुण एवं अशुद्धि चाहे बाहर की हो या आंतरिक यह पर्व उसके शुद्धिकरण के लिये उपयुक्त अवसर है। भगवान श्री राम और माँ दुर्गा ने असुरत्व को समाप्त किया था; असुर विचारों को, दूर्गुणों को समाप्त कर देवत्व की स्थापना का शुभारम्भ इसी तिथि को हुआ था।

स्वामी जी ने कहा कि दशहरा, उत्सव का भी पर्व है। उत्सव हमें जडों से जोडे़ रखते है और जड़ों से जुड़े रहने के लिये जीवन में उत्सव का होना अति आवश्यक है। जीवन में नई ऊर्जा के संचार के लिये एवं हर क्षण आनन्द के लिये उत्सव आवश्यक है परन्तु इसका समावेश हमारी सकारात्मक सोच एवं सकारात्मक नजरिये से आता है। हमारा नजरिया ’वसुधैव कुटुम्बकम’ एवं ’पूरी कायनात एक परिवार’ है का होना चाहिये जिसमें ’जन, जल, जंगल और जमीन’ सभी का उपयुक्त स्थान हो एवं सभी को संरक्षण मिले।

डाॅ अमित जैन, डाॅ दर्शन जैन, डाॅ हरेश शाह, डाॅ इला शाह, जितेन्द्र गगलानी, शांतनु दास, राम देशमुख, पल्टू मंडल, शिविर समन्यवयक, सुखराम, शिविर समन्वयक, राजेश उत्कृष्ट योगदान दे रहे है।

Post By Religion World