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वास्तु सम्मत अंडरवॉटर टैंक दिलाता है सुख, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य

वास्तु सम्मत अंडरवॉटर टैंक दिलाता है सुख,समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य
आपके घर में (भवन में) जलस्रोत का भी विशेष महत्व होता है। जल संग्रह के लिए ओवरहेड वॉटर टैंक अथवा अंडर वॉटर टैंक का निर्माण किया जाता है। उज्जैन के वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वॉटर टैंक का निर्माण भी वास्तु के अनुरूप करना समृद्धि की अनिवार्य शर्त है।
वास्तु (शास्त्र ) हमेशा से ही प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। वर्तमान में जब से लोगों ने वास्तु शास्त्र के बारे में जाना है, तब से वास्तु शास्त्र के अनुरूप भवन बनाने का प्रयत्न करने लगे है। इस बारे में कोई दो राय नहीं है कि यदि भवन निर्माता वास्तुशास्त्र का अध्धयन कर के या किसी वास्तुशास्त्र के मूर्धन्य विद्धवान से परामर्श कर के अपने भूखंड पर भवन का निर्माण कराये, तो वह व्यक्ति अपने जीवन में कहीं अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है। वर्ना अशास्त्रीय ढंग से भवन का निर्माण जीवन में संघर्षों का निमंत्रण देता है। उज्जैन के वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की हालाकिं कर्म और भाग्य महत्वपूर्ण हैं परन्तु वास्तुशास्त्र की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार पानी का टैंक वास्तु को बहुत अधिक प्रभावित करता है। उपयुक्त दिशा में टैंक नहीं होने पर व्यक्ति को आर्थिक परेशानियों का सामाना करना पड़ सकता है। इससे उन्नति में भी बाधा आती और स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। इसलिए पानी का टैंक लगवाते समय वास्तु का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
वास्तुविज्ञान के अनुसार उत्तर एवं पूर्व दिशा जल के लिए उत्तम दिशा हैइस दिशा में घर के अंदर वॉटर प्यूरिफायर, घड़ा अथवा दूसरे जल पात्र का होना शुभ होता है जबकि इस दिशा में पानी का टैंक होने पर वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है। इससे व्यापार में नुकसान, घर में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव अथवा आकस्मिक दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है।
उत्तर पूर्व दिशा भी पानी का टैंक रखने के लिए उचित नहीं है इससे तनाव बढ़ता है और पढ़ने-लिखने में बच्चों का मन नहीं लगता है। दक्षिण पूर्व दिशा को भी पानी का टैंक लगाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है क्योंकि इस दिशा को अग्नि की दिशा कहा गया है। अग्नि और पानी का मेल होने से गंभीर वास्तु दोष उत्पन्न होता है।
पानी को ईशान से लाते समय जमीनी सतह से नीचे लाकर एक टंकी पानी की अण्डर ग्राउंड बनवानी चाहिए , फ़िर पानी को घर के प्रयोग के लिये लाना चाहिये।।
बरसात के पानी को निकालने के लिये जहां तक हो उत्तर दिशा से ही निकालें, फ़िर देखें घर के अन्दर धन की आवक में कितना इजाफ़ा होता है, लेकिन उत्तर से पानी निकालने के बाद आपका मनमुटाव सामने वालेपडौसी से हो सकता है इसके लिये उससे भी मधुर सम्बन्ध बनाने की कोशिश करते रहे।
वास्तुशास्त्र में भवन का निर्माणकरते समय जल का भंडारण किस दिशा में हो यह एक महत्वपूर्ण विषय है शास्त्रों के अनुसार भवन में जल का स्थान ईशान कोण (नॉर्थ ईस्ट) में होना चाहिए परन्तु उतर दिशा, पूर्व दिशा और पश्चिम दिशा में भी जल का स्थान हो सकता है परन्तु आग्नेय कोण में यदि जल का स्थान होगा तो पुत्र नाश,शत्रु भय और बाधा का सामना होता है दक्षिण पश्चिम दिशा में जल का स्थान पुत्र कीहानि,दक्षिण दिशा में पत्नी की हानि, वायव्य दिशा में शत्रु पीड़ा और घर का मध्य में धन का नाश होता है।
वास्तु शास्त्र में भूखंड के या भवन के दक्षिण और पश्चिम दिशा की और कोई नदी या नाला या कोई नहर भवन या भूखंड के समानंतर नहीं होनी चाहिए परन्तु यदि जल का बहाव पश्चिम से पूर्व की और हो या फिर दक्षिण से उतर की और तो उतम होता है
भवन में जल का भंडारण आग्नेय, दक्षिण पश्चिम, वायव्य कोण, दक्षिण दिशा में ना हो, जल भंडारण की सबसे उतम दिशा पूर्व, उत्तर या ईशान कोण है।
जिनके घर पश्चिम दिशा की तरफ़ अपनी फ़ेसिंग किये होते है और पानी आने का मुख्य स्तोत्र या तो वायव्य से होता है या फ़िर दक्षिण पश्चिम से होता है, उन घरों के लिये पानी को ईशान से कैसी प्राप्त किया जा सकता है, इसके लिये वास्तुशास्त्री अपनीअपनी राय के अनुसार कहते है कि पानी को पहले ईशान में ले जायें।
घर के अन्दर पानी का इन्टरेन्स कहीं से भी हो, लेकिन पानी को ईशान में ले जाने से पानी की घर के अन्दर प्रवेश की क्रिया से तो दूर नही किया जा सकता है, लेकिन इशान में रख कर उसका ख़राब इफ़ेक्ट तो हम कम कर सकते ही है।।
पानी के प्रवेश के लिये अगर घर का फ़ेस साउथ में है तो और भी जटिल समस्या पैदा हो जाती है, यदि नैऋत्य से आता है तो कीटाणुओं और रसायनिक जांच से उसमे किसी न किसी प्रकार की गंदगी जरूर मिलेगी,
और अगर वह अग्नि से प्रवेश करता है तो घर के अन्दर पानी की कमी ही रहेगी और जितना पानी घर के अन्दर प्रवेश करेगा उससे कहीं अधिक महिलाओं सम्बन्धी बीमारियां मिलेंगी।
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जानिए पानी का टैंक लगाने के लिए शुभ दिशा
वास्तु विज्ञान के अनुसार दक्षिण पश्चिम यानी नैऋत्य कोण अन्य दिशा से ऊंचा और भारी होना शुभ फलदायी होता है। छत पर पानी का टैंक इस दिशा में लगाने से अन्य भागों की अपेक्षा यह भाग ऊंचा और भारी हो जाता है। इसलिए उन्नति और समृद्घि के लिए दक्षिण पश्चिक दिशा में पानी का टैंक लगाना चाहिए।
इस दिशा टैंक लगाते समय यह भी ध्यान रखें कि इस दिशा की दीवार टैंक से ऊंची हो इससे आय में वृद्घि होती है और लंबे समय तक मकान का सुख मिलता है। अगर दक्षिण पश्चिम दिशा में टंकी लगाना संभव नहीं हो तक दक्षिण अथवा पश्चिक दिशा में विकल्प के तौर पर टंकी लगाया जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखें कि दक्षिण की दीवार टंकी से ऊंची हो।
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जानिए वास्तु सम्मत अंडरवॉटर टैंक के प्रभाव और लाभ
– जल स्रोत के लिए चाहे आप बोरवेल करवाएं लेकिन उसकी उचित दिशा उत्तर-पूर्व है।
– उत्तर-पूर्व में जलाशय का निर्माण करने से गृह-स्वामियों को समृद्धि मिलती है।
– उत्तर-पूर्व में भूमिगत जलाशय का निर्माण वैज्ञानिक आधार से भी उचित है क्योंकि सूर्य की किरणें जलाशय में उत्पन्ना होने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को समाप्त कर देती हैं।
– घर के दक्षिणी भाग में भूमिगत जलाशय होना घर की स्त्रियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। वहीं पश्चिमी भाग में होने से परिवार के पुरुष सदस्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
– दक्षिण-पूर्व या दक्षिण-पश्चिम में भूमिगत जलाशय का निर्माण करने से महिलाओं को स्वास्थ्य, मान-सम्मान या अन्य किसी प्रकार की हानि हो सकती है।
– भूखंड के एकदम मध्य में जलाशय निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे भवन की संरचना करना दुष्कर होता है।
– संध्या समय जलाशय की खुदाई नहीं करनी चाहिए।
– जलाशय निर्माण के लिए भूमि की खुदाई प्रात:काल में करना चाहिए।
– जलाशय का निर्माण करने से पहले भूमि पूजन अवश्य करें।
पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
Post By Religion World