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वास्तु के अनुसार जल/पानी का घर में उचित स्थान

वास्तु के अनुसार जल/पानी का घर में उचित स्थान

वास्तु शास्त्र में सही दिशा में जल रखने से वह जल की ऊर्जा जीवन में ऐश्वर्य प्रदान किए बिना नहीं रहती और जिनको अपना नाम करना हो तो पूर्व दिशा में गणित करने के बाद उसे स्थापित करने से जीवन में नेम और फेम दोनों ही सहज से प्राप्त हो जाते हैं। परंतु इसका ठीक से ज्ञान न हो तो यह जल जीवन को डुबो भी देता है।

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की पानी या जल सिर्फ हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका ही नहीं निभाता है। वास्तु परंपरा के अनुसार, जल Tatva (पानी पदार्थ) को सबसे मजबूत तत्वों में से एक माना जाता है। हमारे जीवन में पानी के महत्व को ध्यान में रखते हुए, हमारे घरों में पानी के टैंक रखने के लिए अनिवार्य है। 

घर छोटा हो या बड़ा उसमें जल की निकासी की व्यवस्था करना आवश्यक होता है। दैनिक दिनचर्या जैसे नहाने, कपड़े धोने, बर्तन साफ करने इत्यादि कार्यों में पानी के उपयोग के उपरांत निकले व्यर्थ जल की निकासी के लिए नाली अर्थात् ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था की जाती है। वास्तुविद पंडित दयानन्द के अनुसार जब आप भूखण्ड में मकान का निर्माण कर रहे हैं, तो पहले से ही यह निर्धारित कर लें कि भवन का समस्त जल बहाव वायव्य, पूर्व, उत्तर और ईशान कोण में निर्दिष्ट हो सके। यह वास्तु सम्मत है व श्रेष्ठ है। बरसाती पानी के निकासी के लिए भी यह आवश्यक है। जल निकासी की व्यवस्था सामान्यतः घर के फर्श के अनुरूप या सार्वजनिक नाली के अनुरूप की जाती है। घर का व्यर्थ जल बाहर न जाकर अपने ही वास्तु में रूक जाना एवं कीचड़ हो जाना भी अशुभ होता है। 

घर में, नलकूप (हैंड पंप), होटल में स्वीमिंग पूल (तरण ताल), खेत-खलिहान में कुआं, कमर्शियल कांपलेक्स में जल संग्रह स्थल कहां होने चाहिएं, इस विषय पर निम्न श्लोक दृष्टव्य है:

कूपे वास्तोर्यध्यदेशेऽर्थनाशस्त्वैशान्यादौ पुष्टिरैश्वर्य वृद्धिः।

सूनोर्नाशः स्त्री विनाशो मृतिश्च सम्पतीड़ा शत्रुतः स्याच्च सौरव्यम।।

उत्तर दिशा तथा पूर्व दिशा के जल के स्वभाव व गुण-धर्म भिन्न-भिन्न हैं। इसी प्रकार पश्चिम व दक्षिण में रखे हुए जल के स्वभाव में गुणधर्म भिन्न हैं। 70 प्रतिशत पानी हमारे शरीर में है और भूलोक पर भी 70 प्रतिशत पानी ही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो शरीर के भीतर है वैसा ही बाहर है। वास्तुविद पंडित दयानन्द के अनुसार पूरा जीवन पांच तत्व के लय में बंधा हुआ है। जब किसी भी तत्व की लय टूटती है तो हमारे भीतर की लय भी सूक्ष्म में टूटती ही है और जो लय के गुणधर्म हैं उस तत्व के परिणाम हमें भोगने पड़ते हैं।

इस जल को सही दिशा में लाकर हम जीवन में बहुत कुछ पा सकते हैं, इसलिए ये जल तत्व अपने आप में सारी प्रकृित को समाए हुए हैं। इस जल तत्व को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमारे जीवन में जल का दृष्टि होना ही काफी है। यह तत्व बिगड़ते ही मानो जीवन में ग्रहण लगना प्रारंभ हो जाता है।

वास्तु के अनुरूप पानी की टंकी नहीं रखें जाने पर मकान में रहने वाले लोग अव्यवस्थित रह सकते हैं। पानी की टंकी को छत पर वायव्य व दक्षिण दिशा के मध्य या वायव्य व पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान पर रखा जाना चाहिए, जबकि भूमिगत पानी की टंकी के लिए ईशान कोण उत्तम स्थान है।

वास्तुशास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों में दी गई उपरोक्त जानकारी का आधार घर के फर्श का ढाल है। जिस तरफ घर के फर्श का ढाल होता है, घर के पानी की निकासी उसी तरफ होती है। अतः घर बनाते समय घर के फर्श के ढाल पर विशेष ध्यान दें। वास्तुविद पंडित दयानन्द के अनुसार मुझे ऐसे सैकड़ों घर देखने में आए जिनके यहां पश्चिम नैऋत्य या दक्षिण नैऋत्य में मुख्यद्वार थे और घर के फर्श का ढाल भी नैऋत्य कोण की ओर  ही थे। उनमें से एक भी घर ऐसा नहीं था जो सुखी था। ध्यान रहे दुनिया में जितने भी घरों के फर्श का ढाल दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण की ओर है वहां रहने वाले कभी भी सुखी नहीं रहते वहां रहने वाले परिवार के सदस्यों को आर्थिक, मानसिक, शारीरिक, विवाद इत्यादि समस्याओं के अलावा कभी-कभी अनहोनी का भी सामना करना पड़ जाता है।

इस महत्वपूर्ण वास्तुदोष से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि, घर के फर्श का ढाल समतल रखें। यदि ढलान देना है तो केवल उत्तर या पूर्व दिशा या ईशान कोण की ओर दें और यदि उस दिशा में पानी की निकासी नहीं है तो वहां पर चेम्बर बनाकर पाईप से जहां पर गटर है वहां बाहर निकाल दें। यदि गटर दक्षिण दिशा में है तो पूर्व दिशा स्थित चैम्बर से एक पाईप डालकर दक्षिण आग्नेय में बाहर निकाल दें और यदि पश्चिम दिशा में गटर है तो उत्तर दिशा में चेम्बर बनाकर पाईप द्वारा पश्चिम वायव्य में बाहर निकाल दें।

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की मकान का जल बहाव ईशान, उत्तर-पूर्वद्ध या वायव्य, उत्तर-पश्चिम कोण से घर से बाहर जाना चाहिए। नाली को ढँककर रखना अत्यंत शुभ है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, मकान की पूर्व दिशा में जल निकासी व्यवस्था शुभ, उत्तर दिशा में धन लाभ, दक्षिण दिशा में रोग व पीड़ा दायक तथा पश्चिम में धन-हानि कर होता है। 

प्राचीन भारतीय वास्तु विज्ञान जल स्रोतों जैसे कि कुओं, उबाऊ, भूमिगत पानी के टैंक, ऊपरी पानी के टैंक, आदि के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान करता है। अधिकांश घरों में ऊपर के पानी के टैंक सामान्य होते हैं लेकिन एक भारी संरचना होने पर, वे उस क्षेत्र पर लोड डालते हैं जहां वे स्थित हैं। इसलिए, उन्हें अनुमति वाले वास्तु स्थानों पर ही रखा जाना चाहिए। संरचना का गलत स्थान स्वास्थ्य समस्याओं या अवसाद का कारण बन जाएगा।

वास्तुविद पंडित दयानन्द के अनुसार  नहाने का कमरा (बाथरूम)पूर्व दिशा में शुभ होता है।

ध्यान रखें, घर के किसी नल से पानी नहीं रिसना चाहिए अन्यथा भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। 

वास्तुविद पंडित दयानन्द के अनुसार घर में या बाहर कुआं, या पानी की टंकी बनाने का स्थान

1. घर या घर के बाहर हैंड पंप, पानी की टंकी हमेशा ईशान्य कोण में ही शुभ रहता है। इससे गृहस्वामी का परिवार पुष्ट होता है।

2. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी, या जलसंग्रह घर के पश्चिम भाग में उत्तम रहता है। इससे घर के सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है।

3. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी, घर के ठीक पूर्व भाग में हो, तो ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।

4. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी घर के ठीक उत्तर की तरफ हो, तो शुभ है। इससे घर में सुख-शांति की वृद्धि होती है।

5. पानी का स्थान, कुआं, हैंड पंप या टंकी नैर्ऋत्य दिशा में हो, तो गृहस्वामी एवं उसके परिजनों की मृत्यु होती है।

6. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी दक्षिण दिशा में हो, तो गृहस्वामी की स्त्री मरती है, यदि बीचों-बीच (मध्य) हो, तो भारी धन हानि होती है।

विभिन्न दिशाओं में घर के पानी की निकासी का प्रभाव इस प्रकार पड़ता है..

1. जिस घर का व्यर्थ पानी ईशान की ओर से बहकर बाहर की ओर जाता तो यह स्थिति वैभव एवं संतान वृद्धि कराती है। 

2. जिस घर का पानी पूर्व की ओर से बाहर बह जाता है तो वह स्वास्थ्यवर्धक एवं घर के पुरुषों के लिए शुभ होता है।

3. जिस घर का पानी आग्नेय से बाहर की ओर से बहकर बाहर जाता तो यह पुत्र संतान के लिए अशुभ होता है।

4. जिस घर का पानी दक्षिण की ओर से बहकर बाहर जाता है तो वह घर की स्त्रियों के लिए अशुभ होता है।

5.जिस घर का पानी नैऋत्य की ओर से बाहर बह जाता है तो यह परिवार के सदस्यों को मृत्युतुल्य कष्ट देता है।

6. जिस घर का पानी पश्चिम की ओर से बाहर बह जाता है तो वह परिवार के ऐश्वर्य को नष्ट करता है।

7.जिस घर से पानी वायव्य की ओर से बाहर बह जाता है तो वह शत्रुता बढ़ाता है एवं शत्रुओं से भय होगा।

8. जिस घर से पानी उत्तर की ओर से बाहर बह जाता है तो मान-प्रतिष्ठता के साथ-साथ सुख की भी प्राप्ति होती है।

9. वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की जिस घर की चारदीवारी के खुले भाग का पानी एक ओर नैऋत्य से दक्षिण एवं आग्नेय से होते हुए पूर्व से होता हुआ तथा दूसरी ओर नैऋत्य से पश्चिम एवं वायव्य से होते हुए उत्तर दिशा से होता हुआ ईशान कोण से बहकर बाहर निकल जाता हो वह घर सब प्रकार से अच्छे फल देता है।

वास्तु अनुसार गृह निर्माण में जल प्रवाह का परिणाम/फलाफल इस प्रकार है

पूर्व शुभ पूर्व प्रवाह अर्थ लाभ। 

पश्चिम संतति-नाश, पुत्र नाश। उत्तर राज्य से लाभ, सर्व मनोकामना की प्राप्ति। 

दक्षिण दारिद्रय, रोग, भय। 

ईशान धन आगमन, सुख-सम्पत्ति। 

आग्नेय मृत्यु, अर्थहानि। 

वायव्य सुख, हर्ष, बंधु-बांधवों से निकटता। 

नैऋत्य हानि और विवाद।

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पंडित दयानन्द शास्त्री,

(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)

Post By Religion World