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राम की नगरी में, कृष्ण की पुकार, ठाकुरजी ने गाया कथासार

Devkinandan Thakurji
Devkinandan Thakurji

परम पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में चित्रकूट, उत्तर प्रदेश से श्री राम कथा के प्रथम दिवस का रसपान भक्तों को कराया गया। महाराज श्री ने कहा की यहाँ आये सभी भक्त गण सौभाग्यशाली हैं की उन्हें इस पवित्र धरा पर श्री राम कथा श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। महाराज श्री ने कहा की सभी को श्री राम भगवान, श्री हनुमान जी और माँ अनसुईया का धन्यवाद करना चाहिए जो उन्होंने हम सभी को चित्रकूट में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह धरा वो धरा है जहां माँ अनसुईया ने तीनों देव को अपना पुत्र बना लिया था और ऋषि- मुनियों की सेवा में लगा दिया था। चित्रकूट के विषय में कहा जाता है की कूट अनेक है जगत में लेकिन चित्रकूट जैसा पर्वत नहीं। संस्कृत के अनुसार चित्रकूट का अर्थ है जो पर्वत अशोक के वृक्ष से सुशोभित हो वही चित्रकूट है। चित्रकूट का अर्थ है की सुन्दर-सुन्दर पर्वतों की श्रृंखला। और आध्यात्मिक अर्थ देखें तो चित्रकूट का अर्थ है की जहां आकर आपके चित की चंचलता समाप्त हो जाए। जहां आकर आपके मन की चंचलता समाप्त हो जाए वही चित्रकूट है।

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इसके बाद महाराज श्री ने कहा की अगर जीवन में शांति चाहिए तो सबसे पहले अपने मन की चंचलता को अपने वश में करे।

आराम की तलब है, तो एक काम कर !
आ राम की शरण में और राम-राम कर !!

जो राम का हो गया उसके जीवन में आराम हो गया और जो राम का नहीं हुआ वो नीलाम हो गया।
इसे बाद महाराज श्री ने हरे रामा-रामा राम, सीता सीता राम राम भजन श्रवण करा सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तुलसीदास जी ने जब श्री राम कथा प्रारम्भ की तो सभी को प्रणाम किया

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस लिखने से पहले माँ सरस्वती को प्रणाम किया फिर भोले नाथ को गुरु के रूप में प्रणाम किया। महाराज जी ने कहा की चन्द्रमा में अनेकों अवगुण है उसके बाद भी वह सर्वशक्तिमान भोले नाथ में सर पर विराजमान है क्योंकि चन्द्रमा स्वयं श्री राम और श्री कृष्ण की शरण में है। इसलिए हम आज भी श्री रामचंद्र के नाम से भगवान श्री राम को जानते है। जो कोई भी व्यक्ति कितना भी बुरा क्यों ना हो उसका आचरण कितना भी बुरा क्यों ना हो यदि वह श्री राम का गुणगान करता है और उसकी शरण में रहता है तो ऐसे व्यक्ति का साथ नहीं छिड़ना चाहिए क्यूंकि आप यदि ऐसे व्यक्ति का साथ छोड़ेंगे तो किस्मत आपका साथ छोड़ देगी।

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जब तक हम अपनी मैं से नहीं उठेंगे तब तक हम राम और श्याम से नहीं मिल सकते है। मैं या अहंकार है वो हमारे दिमाग पर धुल की तरह जमी हुई है अगर हमे अपने आपको जानना है या भगवान् से मिलना है तो हमे अपने दिमाग से इस मैं या अहंकार रुपी धुल को साफ़ करना जरुरी है

ये संसार एक गुफा के समान है जैसे बाली को गुफा के अंदर नहीं पता चलता की कितने दिन हो गए वैसे ही यह संसार भी गुफा समान है। हनुमान जी ने इतने बड़े समुन्द्र को इसलिए पार कर दिया था क्यूंकि उनके पास राम नाम का विश्वास था। आज का इंसान इसीलिए ये भव सागर को पार नहीं कर पा रहा है क्यूंकि उसे राम नाम पर विश्वास नहीं है। हमे हनुमान जी से सीखना चाहिए की किसी भी काम में सफल कैसे होना है।
राम को पाने के लिए तीन शिखर को पार करना ही पड़ेगा। पहला कृपा, दूसरा विशवास और तीसरा शिखर वैराग्य है। ये तीनों शिखर को श्री हनुमान जी ने पार किया था।

Post By Religion World