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जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जीवन परिचय 

जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जीवन परिचय 

नारायण समारम्भाम शंकराचार्य मध्यमाम अस्मादचार्यपर्यान्ताम वन्दे गुरूपरम्पराम

भगवान आद्य शंकराचार्य जो आज से पचीस सौ वर्ष पूर्व इस भारत भूमि पर अवतरित हुए जो अद्वैत परंपरा के महान प्रवर्तक हुए जिस से ये भारत जगद्गुरु कहा जाने लगा। आज से लगभग 93 वर्ष पूर्व परम पूज्य प्रातःस्मरणीय जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का अवीर्भाव हुआ पूज्य महाराज श्री का जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिला के अंतर्गत बेन गंगा के सुरम्य तट पर स्थित ग्राम दिघोरी में पंडित धनपति उपाध्याय एवं गिरिजा देवी के घर मे भाद्रशुक्ल तृतीया मंगलवार सम्वत 1982 वर्ष 2 सितंबर 1924 रात्रि के समय हुआ 

माता पिता ने विद्वानों के मत अनुसार बालक का नाम पोथीराम रखा 

बालक पोथीराम को ग्राम के पाठशाला में अध्ययन हेतु भेजा गया जहाँ अल्पायु में ही रामायण गीता एवं पुराण का ज्ञान अर्जित कर लिया था संत महात्माओं के प्रति आस्था भक्ति एवं शास्त्र अभ्यास करने लगे।बालक पोथीराम की उम्र अभी मात्र सात वर्ष  की हुई थी की पिता का देहावसान हो गया पिता की मृत्यु से व्यथित बालक ने अध्ययन हेतु बहार जाने के आज्ञा माता से मांगी दो वर्ष तक जंगलों से भी में एकांत वास करते हुए नर्मदा तट पर विचरण करते करते नरसिंहपुर आये 1940 में काशी आये काशी में संस्कृत का आध्ययन किया अगस्त 1942 में स्वामी जी ने देश की रक्षार्थ योजना बनाकर काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के सत्याग्रही छात्रो के साथ तार काटने के आभियोग में बनारस के जेल में 9 माह की सज़ा भोगनी पड़ी उस समय के शासन के दृष्टि में आप स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे अधिक खतरनाक आंदोलन कारी माने गये थे स्वतंत्रता संग्राम के लड़ाई में पुनः राज नैतिक बंदी के रूप में दो माह तक नरसिंहपुर जेल में रहे और भारत की आज़ादी के बाद स्वत्रंतता संग्राम सेनानी बने।

ज्योतिर्मठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रम्हानंद सरस्वतीजी से कलकत्ता में पौष सुदी एकादशी 1950 में दंड सन्यास ग्रहण कर दंडी सन्यासी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से विख्यात हुए आध्यात्मिक उत्थान की भावना से 14 मई 1964 को आध्यात्मिक उत्थान मंडल के स्थापना की।

पूज्य महाराज श्री ने अपनी तपस्या स्थली परमहंसी गंगा में भगवती राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का विशाल मंदिर बनवाया जिस की प्रतिष्ठा 26 दिसम्बर 1982 को   श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री अभिनव विद्या तीर्थ जी महाराज के करकमलों के द्वारा सम्पन हुई जिस में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ लगभग दस लाख श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

7 दिसम्बर 1973 को ज्योतिर्मठ के  शंकराचार्य के रूप में आपका पट्ट अभिषेक  दिल्ली में समारोह पूर्वक संपन्न हुआ स्वामी करपात्री जी महाराज एवं गोवर्धन मठ पुरी के शंकराचार्य स्वामी श्री निरंजन देव तीर्थ द्वारका पीठ के शंकराचार्य श्री अभिनव सच्चिदानंद तीर्थ जी महाराज ने स्वयं उपस्थित होकर अभिषेक संपन्न किया  इस अवसर पर श्रृंगेरी मठ के प्रतिनिधि ने पट वस्त्र उड़ाया 

पूज्य श्री ने आदिवासियों के कल्याण के लिए  झारखंड के सिंहभूम जिला के अंतर्गत  काली कोकिला नदी के संगम में विश्व कल्याण आश्रम की स्थापना की तथा विदेशी मिशनरियों द्वारा भोले-भाले आदिवासियों को गिरजाघरों के माध्यम से ईसाई बनाया गया था उन्हें सनातन धर्म एवं स्वधर्म में वापस लिया । अबतक लगभग लाखो ईसाइयो को हिंदू धर्म में वापस लिया गया है 

27 मई 1982 को  गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर प्रांगण में ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी अविनव सच्चिदानंद तीर्थ महाराज की इच्छा पत्र के अनुसार स्वामी अभिनव विद्या तीर्थ जी महाराज के द्वारा

पश्चिममाम्नाय द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य के पद पर आप का अभिषेक किया गया  तब से अब तक आप दो दो  पीठो के शंकराचार्य के पद को सुशोभित कर रहे हैं

गुजरात के शिवलिंगाकार मंदिर कलकत्ता में  राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का मंदिर तथा विश्व कल्याण आश्रम में आदिवासियों के उपचार हेतु 70 बिस्तरों का एक अस्पताल बनवाया जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी ने किया

भारत के विभिन्न शहरों में आपने कई गौशालाएं चिकित्सालय एवं आश्रम बनवाएं

आपने अपनी माता की जन्म स्थली कातल बोड़ी (मात्र धाम) मेंराजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का  विशाल मंदिर बनवाया इसी तरह अपनी जन्म  स्थली  दिघोरी (गुरुधाम) में स्फटिक का विशाल शिवलिंग की स्थापना की उत्तर एवं दक्षिण शैली के इस विशाल शिव मंदिर में प्रतिष्ठा के समय चारों पीठों के शंकराचार्य ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई

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