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भारतीय सनातन संस्कृति में गंगा के महत्व पर धार्मिक अनुष्ठान एवं संगोष्ठी

भारतीय सनातन संस्कृति में गंगा के महत्व पर धार्मिक अनुष्ठान एवं संगोष्ठी

  • गंगा में बहती है सनातन धर्म प्रेमियों की आत्मा गंगा पर हुए धार्मिक अनुष्ठान एवं संगोष्ठी

वृन्दावन 2 जून, भागवत सेवा संस्था द्वारा गंगा दशहरा के पावन पर्व पर आयोजित संत-विद्वान-कथाकारों की एक संगोष्ठी चतु:संप्रदाय के महंत फूलडोल बिहारी दास जी महाराज की अध्यक्षता में आयोजित की गयी, जिसमें ‘भारतीय सनातन संस्कृति में गंगा के महत्व’ का विषय रखा गया तथा गंगा जी का अभिषेक, पूजन, महाआरती एवं महाप्रसाद का आयोजन सम्पन्न हुआ ।

इस अवसर पर स्वामी महेशानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गंगा और यमुना हमारी भारतीय संस्कृति की संवाहक एवं सनातन धर्म-प्रेमियों की आस्था का प्रतीक है, यह साक्षात माँ है, क्योंकि; यह हमें जीवन प्रदान करती है ।

भागवत भास्कर कृष्णचंद्र शास्त्री ‘ठाकुरजी’ एवं डॉ. श्याम सुंदर पाराशर ने कहा कि गंगा को जल का भंडार कहना या मात्र केवल नदी कहना अनुचित है, क्योंकि; यह विष्णु लोक से गोलोक धाम में प्राणियों को मोक्ष प्रदान करने एवं लोगों के पाप को क्षय करने के लिए अवतरित हुई है ।

पुराणाचार्य डॉ. मनोज मोहन शास्त्री एवं भागवताचार्य पीयूष जी महाराज ने कहा कि माँ गंगा में तीनों प्रकार के ताप हरने की सामर्थ्य है । इसके जल में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ।

कथा प्रवक्ता संजीव कृष्ण ठाकुर एवं काशी विद्वत्परिषद के कार्ष्णि नागेन्द्र दत्त गौड़ ने कहा कि गंगाजल में कभी भी कीड़े नहीं पड़ते। इसका जल इतना पवित्र होता है कि जब कभी भी कोई सात्विक पूजा-अनुष्ठान, यज्ञ आदि धार्मिक आयोजन भी होते हैं, वे इसके बिना सम्पन्न नहीं होते ।

इस संगोष्ठी के परम-प्रवर्तक वैदिक-पथिक भागवतकिंकर श्री अनुराग कृष्ण शास्त्री ‘श्रीकन्हैयाजी’ ने कहा कि राजा भगीरथ ने संकल्प लेकर अपने 60,000 पूर्वजों का उद्धार करने के लिए कठोर तप के द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न किया, तब ब्रह्मा के कहने पर उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न किया । तब विष्णुपदी गंगा शिवजी की जटाओं से बँधकर ‘जटाशंकरी’ नाम से प्रवाहित हुई तथा जह्नु मुनि के उदर में समाहित होकर कान के द्वार से निकलकर ‘जाह्नवी’ नाम पड़ा तथा भगीरथ की तपस्या के फलस्वरूप भागीरथी कहलायी और उनके पूर्वजों का उद्धार किया। आज वही गंगा, भारत की धरती को पवित्र करती, हम सभी के पूर्वजों का उद्धार करती तथा मानवों के संताप को हरती हुई, जीवनदायिनी के रूप में कलकल निनाद करते हुए बह रही है । उन्होंने कहा कि कोरोना-वायरस तो एक बहाना है। वास्तविकता में तो यह प्रकृति का शुद्धीकरण प्रयोग है। आज माँ गंगा, यमुना, नर्मदा आदि पवित्र नीराकार ब्रह्मस्वरूप नदियाँ स्वच्छ व प्रदूषण रहित होकर अपने पूर्ण सौंदर्य के साथ दर्शन दे रही हैं। राजा भगीरथ की संकल्प शक्ति व पुरुषार्थ के द्वारा भगवद् कृपा का साक्षात् दर्शन भगवती गंगा के रूप में हम सभी को प्राप्त हो रहा है ।

श्रीकन्हैयाजी ने कहा कि हम सभी सनातन धर्म प्रेमियों का यह कर्तव्य होना चाहिए कि हम माँ भागीरथी की रक्षा के लिए हर समय हर संभव सहयोग करने को तत्पर रहें ।

राम कथा प्रवक्ता श्रीअशोक व्यास एवं मुकेश मोहन शास्त्री, विपिन बापू, सेवानंद ब्रह्मचारी, महंत भगवान दास, बिहारीजी मंदिर के सेवायत श्रीकेडी गोस्वामी ने भी गंगा जी के महत्व पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का शुभारंभ गंगा जी के चित्र पर पूजन माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ । इस अवसर पर हरि बल्लभ शर्मा, देवेंद्र शर्मा, विश्वास शर्मा, डॉ खेमराज बराल, लाल बाबू झा, विष्णु दत्त शर्मा, संजय शर्मा, केके मिश्रा, रसिक किशोर शर्मा, विजय रणवा, जगदीश गोला, रामजीवन शर्मा आदि उपस्थित थे ।

अन्त में महाप्रसाद भंडारे का आयोजन आयोजित हुआ तथा सायंकाल गंगाजी की महाआरती हुई। कार्यक्रम का संयोजन देवेंद्र शर्मा ने किया तथा अन्त में संस्था के सचिव डॉ कृष्ण कुमार शर्मा ‘लड्डूजी’ ने सभी आगन्तुकों का आभार व्यक्त किया।

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