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धर्म और आध्यात्मिकता : समान या अलग

धर्म और आध्यात्मिकता : समान या अलग

दुनिया में हर कोई आध्यात्मिक पथ पर है। कोई मतलब हर किसी से, तथापि, सभी में एक रास्ते पर जा रहा है के बारे में पता है। अधिकांश लोग अपने दु: ख से बचने के लिए खुशी और प्रासंगिक के रूप में सब कुछ वे करते पीछे अपरिवर्तनीय प्रेरणा के रूप में नहीं मिल के प्रयासों को देखते हैं।

इस सृष्टि के मूलभूत प्रश्न, ‘मैं कौन हूँ?’ का उत्तर पाकर जब कोई व्यक्ति बुद्ध हो जाता है या आत्मज्ञानी हो जाता है तो उसके हृदय में सहज करुणा उत्पन्न होने लगती है उन ज्ञान पिपासुओं के लिए जो अपनी ज्ञान पिपासा लिए दर दर भटक रहे होते हैं।

ऐसे में करुणावश वह व्यक्ति उन लोगों के समूह को अपने ज्ञान प्राप्ति के मार्ग, उसमें आने वाली कठिनाईयां एवं अपने अनुभवों से परिचित करवाना आरंभ कर देता है।

जैसे ही वह व्यक्ति इस संसार से विदा होता है तो उसके अनुयायी उसकी धरोहर को सँभाल कर रखने के लिए एक समूह बना लेते हैं जो कि किसी विशिष्ट पहनावे, खानपान, ध्यान या पूजा पद्धति को अपना लेते हैं. इसे धर्म का नाम दे देते हैं और इसे अनुकरण करने वाले व्यक्ति धार्मिक कहलाते हैं. बुद्ध के बाद और महावीर के बाद यही हुआ था।

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आध्यात्मिकता और धार्मिकता के बीच अंतर

धर्म और आध्यात्मिकता के मध्य अन्तर का पता लगाने से पहले, हमें इन दो शब्दों की परिभाषा पहले करनी चाहिए। धर्म को “परमेश्‍वर या देवतागणों की आराधना में विश्‍वास करने में परिभाषित किया जा सकता है, जो सामान्य रूप से आचरण और अनुष्ठान या “किसी भी विशिष्ट विश्‍वास पद्धति, आराधना इत्यादि., जिसमें अक्सर आचार संहिता सम्मिलित होती है, में व्यक्त किए जाते हैं. आध्यात्मिकता को “आध्यात्मिक होने की सच्चाई या गुण के साथ” या आत्मिक चरित्र की बहुतायत के साथ जैसा कि जीवन, विचार इत्यादि में दिखाई जाता है; आध्यात्मिक प्रवृत्ति या सुर” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है.” संक्षिप्त में कहना, धर्म ऐसी मान्यताओं और अनुष्ठानों की एक सूची है, जो यह दावा करती हैं कि वे एक व्यक्ति को परमेश्‍वर के साथ सही सम्बन्ध में ला सकती हैं, और आध्यात्मिकता भौतिक/सांसारिक बातों की अपेक्षा आध्यात्मिक बातों और आध्यात्मिक संसार के ऊपर ध्यान केन्द्रित करना होता है.

धर्म के बारे में एक सबसे बड़ी सामान्य गलत धारणा यह है कि ईश्वर पर विश्वास किसी भी अन्य धर्म जैसे इस्लाम, यहूदी, हिन्दू इत्यादि, के जैसे एक धर्म है. दुर्भाग्य से, बहुत से जो ईश्वर पर विश्वास का पालन करने का दावा करते हैं, इसका पालन ऐसे करते हैं, कि मानो यह एक धर्म है. बहुतों के लिए, मसीही विश्‍वास नियमों और अनुष्ठानों की सूची से बढ़कर और कुछ नहीं है, जिसका पालन एक व्यक्ति को मृत्यु उपरान्त स्वर्ग जाने के लिए करना है. यह सच्ची मसीहियत नहीं है. सच्ची मसीहियत एक धर्म नहीं है, इसकी अपेक्षा, यह परमेश्‍वर के साथ यीशु मसीह को विश्‍वास के द्वारा अनुग्रह से अपने उद्धारकर्ता-मसीह के रूप में स्वीकार करते हुए, सही सम्बन्ध में आना है. हाँ, मसीहियत में पालन करने के लिए अनुष्ठान (उदाहरण के लिए, बपतिस्मा और प्रभु भोज) पाए जाते हैं. हाँ, मसीहियत में अनुसरण करने के लिए “व्यवस्था” (उदाहरण के लिए, तू हत्या न करना, एक दूसरे से प्रेम करो इत्यादि) पाई जाती है. तथापि,. ये अनुष्ठान और प्रथाएँ मसीहियत का सार नहीं हैं. मसीहियत के अनुष्ठान और प्रथाएँ उद्धार का परिणाम है. जब हम यीशु मसीह के द्वारा उद्धार को प्राप्त करते हैं, तब हम उस विश्‍वास की घोषणा के लिए बपतिस्मा लेते हैं. हम मसीह के बलिदान के स्मरणार्थ प्रभु भोज का पालन करते हैं. हम करने और न करने की एक सूची का अनुसरण जो कुछ परमेश्‍वर ने हमारे लिए किया और परमेश्‍वर के प्रति अपने प्रेम की व्यक्त करने के लिए पालन करते हैं.

आध्यात्मिकता के बारे में सबसे सामान्य एक गतल धारणा यह है, कि कई तरह की आध्यात्मिकता पाई जाती है और सभी एक समान वैध हैं. असामान्य शारीरिक मुद्राओं में ध्यान लगाना, प्रकृति से संचार स्थापित करना, आत्माओं के संसार से सम्पर्क स्थापित करना इत्यादि, हो सकता है, कि आध्यात्मिक आभासित हो, परन्तु ये वास्तव में झूठी आध्यात्मिकता है. सच्ची आध्यात्मिकता यीशु मसीह के द्वारा उद्धार को प्राप्त करने के परिणाम स्वरूप परमेश्‍वर के पवित्र आत्मा को प्राप्त करना है. सच्ची आध्यात्मिकता अर्थात् आत्मिकता वह फल है, जिसे पवित्र आत्मा एक व्यक्ति के जीवन में उत्पन्न करता है: अर्थात् प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता और संयम (गलातियों 5:22-23). आध्यात्मिकता परमेश्‍वर के जैसे बनते चले जाना, जो आत्मा है (यूहन्ना 4:24) और हमारे चरित्र को उसके स्वरूप में ढलते चले जाना है (रोमियों 12:1-2).

जो कुछ धर्म और आध्यात्मिकता में सामान्य है, वह यह है, कि यह दोनों ही परमेश्‍वर के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के झूठे तरीके हो सकते हैं. धर्म परमेश्‍वर के साथ एक वास्तविक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अनुष्ठानों का कठोरता से पालन किए जाने के लिए विकल्प को प्रस्तुत करता है. आध्यात्मिकता परमेश्‍वर के साथ वास्तविक सम्बन्ध स्थापना के लिए आत्मा के संसार के साथ सम्पर्क स्थापित करने का विकल्प प्रस्तुत करता है. दोनों ही परमेश्‍वर की ओर जाने वाले झूठे मार्ग हैं, और हो सकते हैं. ठीक उसी समय, धर्म एक अर्थ में मूल्यवान् हो सकता है, जब यह इस बात की ओर संकेत करता है, कि परमेश्‍वर का अस्तित्व है, और यह कि हम किसी तरह उसके प्रति जवाबदेह हैं. धर्म का केवल एक ही सच्चा मूल्य यह है, कि इसमें इस बात को संकेत करने की क्षमता पाई जाती है, कि हम परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं और हमें एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है. आध्यात्मिकता का एक ही सच्चा मूल्य यह है, कि यह संकेत देता है, कि भौतिक संसार ही सब कुछ नहीं है. मनुष्य केवल एक भौतिक प्राणी नहीं है, अपितु उसमें प्राण-आत्मा का भी वास है. हमारे चारों ओर एक ऐसा आध्यात्मिक संसार जिसके प्रति हमें सचेत होना चाहिए. आध्यात्मिकता का सच्चा मूल्य यह है, कि यह इस तथ्य की ओर संकेत देता है, कि इस भौतिक संसार से परे कुछ और कोई है, जिससे हमें सम्पर्क स्थापित करने की आवश्यकता है।

देखिए इस विषय पर एक खास वीडियो…

Post By Religion World