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क्यों पड़ता है चंद्रग्रहण… क्या है चंद्रग्रहण की पौराणिक कथा 

क्यों पड़ता है चंद्रग्रहण… क्या है चंद्रग्रहण की पौराणिक कथा 

शुक्रवार 28 जुलाई को चंद्रग्रहण है.चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन ही होता है.चंद्रग्रहण के दिन देवी-देवताओं के दर्शन करना अशुभ माना जाता है.इस दिन मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे और किसी भी तरह की पूजा का विधान नहीं किया जाता है.भारत में चंद्रग्रहण को लेकर कई धारणाएं प्रचलित है लेकिन विज्ञान के मुताबिक यह पूरी तरह खगोलीय घटना है. आइए जानते हैं क्या होता है चंद्र ग्रहण और यह कैसे होता है.

क्या है पौराणिक मान्यता :

पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों के साथ अमृत पान के लिए विवाद हुआ तो इसको सुलझाने के लिए मोहनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया.जब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बिठा दिया.लेकिन असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया.देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहू को ऐसा करते हुए देख लिया.इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का सर धड़ से अलग कर दिया.लेकिन राहू ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया.इसी कारण राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं.इसलिए चंद्र ग्रहण होता है.

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खगोलशास्त्र के अनुसार चंद्र ग्रहण:

खगोलविज्ञान के अनुसार जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आती है तो चंद्र ग्रहण होता है.जब सूर्य व चंद्रमा के बीच में पृथ्वी इस प्रकार से आ जाए जिससे चंद्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाए और सूर्य की किरणें चंद्रमा तक ना पहुंचे.ऐसी स्थिति में चंद्र ग्रहण होता है.

स्कन्द पुराण के अवन्ति खंड के अनुसार 
उज्जैन राहु और केतु की जन्म भूमि है.सूर्य और चन्द्रमा को ग्रहण का दंश देने वाले ये दोनों छाया ग्रह उज्जैन में ही जन्मे थे.

अवन्ति खंड की कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत का वितरण महाकाल वन में हुआ था.भगवान विष्णु ने यहीं पर मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान कराया था.इस दौरान एक राक्षस ने देवताओं का रूप धारण कर अमृत पान कर लिया था.तब भगवान विष्णु ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था.अमृत पान के कारण उसके शरीर के दोनों भाग जीवित रहे और राहु और केतु के रूप में पहचाने गए.

राहु और केतु को ज्योतिष में छाया ग्रह कहा जाता है.ये दोनों ग्रह एक ही राक्षस के शरीर से जन्मे हैं.राक्षस के सिर वाला भाग राहु कहलाता है, जबकि धड़ वाला भाग केतु.कुछ ज्योतिष इन्हें रहस्यवादी ग्रह मानते हैं.यदि किसी की कुंडली में राहू और केतु गलत स्थान पर हों तो उसके जीवन में भू-चाल ला देते हैं.ये इतने प्रभावशाली हैं कि सूर्य और चन्द्रमा पर ग्रहण भी इनके कारण ही लगता है.

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राहु-केतु के अस्तित्व की असल कहानी:

दैत्यों की पक्ति में स्वर्भानु नाम का दैत्य भी बैठा हुआ था.उसे आभास हुआ कि मोहिनी रूप को दिखाकर दैत्यों को छला जा रहा है.ऐसे में वह देवताओं का रूप धारण कर चुपके से सूर्य और चंद्र देव के आकर बैठ गया जैसे ही उसे अमृत पान को मिला सूर्य और चंद्र देवता ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रूप धारण किए भगवान विष्णु को अवगत कराया.इससे पहले ही स्वर्भानु अमृत को अपने कंठ से नीचे उतारता भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया.क्योंकि उसके मुख ने अमृत चख लिया था इसलिए उसका सिर अमर हो गया.

कथा बताती है कि ब्रह्मा जी ने सिर को एक सर्प के शरीर से जोड़ दिया यह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के सिर के जोड़ दिया जो केतु कहलाया.पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य और चंद्र देवता द्वारा स्वर्भानु की पोल खोले जाने के कारण राहु इन दोनों देवों का बैरी हो गए.

@religionworldbureau

Post By Shweta