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कई विशेषताओं के परिचायक हैं ‘गणेशजी’ के अंग

कई विशेषताओं के परिचायक हैं ‘गणेशजी’ के अंग

‘गणेश’ गणतंत्र के समर्थक। बड़े कान अधिक सुनने, जानने की जिज्ञासा, बड़ा पेट,आंतरिक गम्भीरता, लम्बी नाक-यथार्थता को सूंघ कर जान लेने की क्षमता, सुविस्तृत आत्म-गौरव एवं असंदिग्धा प्रामाणिकता। एक हाथ में मोदक-मोद अर्थात् प्रसन्न, कुछ छूट गया अर्थात् करने वाला। एक हाथ में प्रसन्न कर सकने वाला मधुर प्रसाद। दूसरे हाथ में अंकुश। अंकुश अर्थात् अनुशासन। विवेक का अनुशासन रहने से अनायास ही ऋषि-सिद्धियां मिलती है। भौतिक सिद्धियां और आत्मिक सिद्धियां-सम्पदाएं और विभूतियां गणेश पत्नी कही गयी है। विवेकवानों को दुहरे लाभों का मिलन स्पष्ट है। गणेश को सद्बुद्धि का देवता माना गया है। स्वस्तिक, ओम की आकृति से भी गणेश आकृति की तुलना की जाती है।
एक बार सभी देवता एक गोष्ठी में बैठे विचार-विमर्श कर रहे थे कि सर्वप्रथम किस देवता की पूजा की जाये। अन्त में निश्चय हुआ कि जो देवता तीनों लोकों की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा, उसे ही यह सम्मानित पद दिया जायेगा। अतः सभी देवता अपने वाहनों पर चढ़कर चल दिये, परंतु गणेशजी ने अपनी विवशता को विचारा कि उनका भारी शरीर एवं नन्हा-सा मूषक वाहन है। इससे यह महान कार्य कैसे सम्भव हो सकता? तभी उनकी बुद्धि में स्पुफरणा हुई। अपने माता-पिता की परिक्रमा करके निर्णय स्थल पर जा पहुंचे और इस प्रकार प्रथम पूजे जाने का सम्मान प्राप्त किया।

लम्बोदर का नाम एक गणेश गणपति भी है, जिसका अर्थ है-गणों का स्वामी। पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और एक मन यह ग्यारह गुण मनुष्य के भी हैं। यह सब गुण साथ ही मौन के जप में वाणी संयम की शक्ति होने के कारण ही वे महाभारत जैसा महान ग्रन्थ लिख सके। इतनी असीम प्राण शक्ति किसी में नहीं होती।



‘गणपति’’ शब्द ईश्वर का एक विश्ेाषण है। शिव और पार्वती पुरुष और प्रकृति के दूसरे रूप हैं। प्रकृति के दो भेद हैं परा और अपरा। इसी वास्ते ‘शंकर’ के भी दो पत्नियां है सती और पार्वती। सती तो परा विद्या की द्योतक हैं और पार्वती ‘अपरा’ विद्या की द्योतक है। पार्वती के दो पुत्र हैं स्कन्द और गणेशस्कन्द को ‘कार्तिकेय’ सेनापति भी कहते हैं। अपरा प्रकृति पार्वती अर्थात् राज हिमालय की पुत्राी कही गई हैं। क्योंकि प्रकृति जड़ है और पुरुष चेतनहै। जड़ प्रकृति का विकास गजराज और चेतना अंश का अंतिम परिणाम बुद्धिजीवी मानव है।

गणपति में मनुष्य और हाथी दोनों का ही सामंजस्य व्यक्ति है। वह गजवदन है, परन्तु उसका शरीर मानव जैसा है। चेतन जीव और जड़ प्रकृति के सम्मेलन से तीसरा पदार्थ मन उत्पन्न हुआ। इस वास्ते गणपति को मन का अवतार बताया गया है।

उनका एक ही दांत है, क्योंकि दूसरे की लेखनी बनायी थीमहाभारत ग्रन्थ की रचना का समय आया, तो प्रश्न उठा कि उसे लिखे कौन? व्यास जी ने इसके लिए गणेश जी को उपयुक्त समझा और उनसे लिखने का आग्रह किया। इसके हेतु एक सुदृढ़ लेखनी की आवश्यकता थी। गणेश जी ने अपना दांत उत्तम समझा और उसका प्रयोग किया। विद्योपार्जन के लिए, धर्म और न्याय के लिए, श्रेष्ठ कार्यों के लिए प्रिय-से-प्रिय वस्तु का भी त्याग करना पड़े, तेा पीछे नहीं हटना चािहए। यही इसके पीछे भाव है। उनके अपने सिर की जगह हाथी सिर का होना अहंकार नाश का द्योतक है। उनके मस्तक पर चन्द्रमा की-सी शोभा उनके शांत, संतुलित, उज्जवल ज्ञान का प्रतीक है।

गणेशजी के कान तथा पेट दोनों बड़े अर्थात् हमें उनके समान सबकी बातें श्रवण करके अपने आप में, अपने बड़े पेट में सुरक्षित रख लेना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर समय आने पर ही उसका उद्घाटन करना चाहिये। छोटी आंखें हमें बुरी बातों को देखने से रोकती है। उनके आयुधों में पाश और अंकुश प्रमुख है। पाश व्यामोह और बंधन का प्रतीक है। यह हमें भवबंधनों से उबरने का स्मरण दिलाता है जबकि अंकुश दुष्प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने की चेतावनी देता है। विशाल शरीर में महानता का, विशाल व्यक्तित्व का ‘संदेश’ है।

उनके विशाल शरीर का वाहन छोटा मूषक है, इसमें अन्तर्विरोध जैसी कोई बात नहीं है। वस्तुतः मूषक, मूषक-प्रवृत्ति का द्योतक है, इसकी प्रवृत्ति है-चोरी करना। मनुष्य में जो पाप की वृत्ति है, यह उसी का बोधक है। गणेश जी उस पर सवारी करते हैं, उस पर चरण प्रहार करके उसे दबाये रहते हैं, ताकि ऐसी वृत्ति किसी में पनपे नहीं। चूहे का एक और गुण है-संचय-वृत्ति। वह आगे की बात सोचता है। अनुकूल समय में ही प्रतिकूल स्थिति का भी भोजन इकट्ठा समय में ही प्रतिकूल स्थिति का भी भोजन इकट्ठा कर लेता है, ताकि अगले समय में अन्न संकट की स्थिति न देखनी पड़े। यह इसकी दूरदर्शिता है। मनुष्य को हर कार्य में ऐसी ही ‘दूरदर्शिता-विवेकशलता का परिचय देना चाहिए। तभी वह सफल जीवन जी सकता है।

हाथी की आंखें छोटी होती हैं, इससे हमें यह शिक्षा लेनी चाहिये कि हमें हर एक चीज सूक्ष्म दृष्टि से देखनी चाहिए। गज के नेत्रों में यह विलक्षणता है कि वह अपने सामने दिखने वाली प्रत्येक वस्तु के उसके मूल आकार से बड़ी दिखती है, इससे यह भी यह शिक्षा लेनी चाहिये कि यदि हमें सिद्धि प्राप्त करनी है तो हमें दूसरे व्यक्ति को नीच और हीन समझकर उसका तिरस्कार अथवा अपमान नहीं करना चाहिये।

हाथी के बड़े-बड़े कान होते हैं और मुख के आगे लटकता हुआ सूंड होता है, इससे हमें यह शिक्षा लेनी चाहिये कि हमें सब कुछ बुरी-भली सुनने की क्षमता होनी चाहिये और अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिये। हाथी की जीभ दांतों से कण्ठ की ओर लपलपाती रहती है, इससे यह शिक्षा लेनी चाहिये कि यदि सि(ि चाहते हो, तो साधक को दूसरों का आलोचक न बनकर अपना ही समीक्षक बनना चाहिये।

इसमें ऋषि मुनियों ने अद्भुत कल्पना शक्ति और सूझ-बूझ का परिचय देकर मूर्ति बनाई है। उनको एक दंत इसीलिए कहते हैं कि परमात्मा का किसी से द्वेष नहीं और लम्बोदर इसलिए कहा है कि सारा ब्रह्माण्ड भगवान के उदर में माना जाता है। उन्हें विनायक इसलिए कहते हैं कि वह नेतृत्व कर सकते हैं। सब सुनना, कम बोलना यह एक नेता के गुण हैं। इसी वास्ते उसके बड़े कान और लम्बी सूंड़ है और मोटा पेट है, क्योंकि रहस्य की सुनकर उसको पेट में रखे रहना चाहिए। इसलिए गणेशजी के सभी अंगों की अलग-अलग विशेषता है।

Post By Shweta