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नव संवत्सर और चैत्र नवरात्रि : क्या करें आज के शुभ दिन

नव संवत्सर और चैत्र नवरात्रि : क्या करें आज के शुभ दिन

जानिए क्या करें नव-संवत्सर के दिन

  • आज के दिन घर की छत पर ध्वजा, पताका फहराना चाहिए जिससे घर में सदा मंगल होता रहे। 
  • माँ भवानी का श्रद्धा विश्वास के साथ सभी परिवार के साथ मंदिर में दर्शन करने जाये और रोजाना मंदिर जाने का आज से नियम बनाये।
  • आज के दिन घर में जागरण , चौकी या माँ भवानी का जाप करे घर के नार्थ ईस्ट दिशा में बैठकर और हवन करे। 
  • प्रकृति की रक्षा का संकल्प ले अपने धर्म जाती और गौमाता की की रक्षा करे 
  • आज के दिन से चिड़ियों के निमित्त सतनाजा (सात प्रकार के अनाज ) रोज चिड़ियों को खिलाये और मिटटी के बर्तन में प्यासे परिंदो को पानी पिलाये। 
  • आज के दिन से श्री दुर्गा सप्तशती या सिद्ध कुञ्चिका स्त्रोत्र का नौ-दिवसीय पाठ आरंभ करें।
  • गऊ , ब्राह्मण, माता -पिता , गुरु का आशीर्वाद ले बड़ो का सम्मान करे

यह उपाय खुद भी करे और लोगों को भी सेयर करे क्यों की पहला सुख निरोगी काया जब आप का शरीर स्वस्थ है तो आप सब कुछ कर सकते है कृपया अधिक से अधिक लोगों तक यह जानकारी पहुंचाए। 

धर्म ग्रंथों, पुराणों के अनुसार चैत्र नवरात्रों का समय बहुत ही भाग्यशाली बताया गया है। इन दिनों प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है। इस शक्ति को ग्रहण करने के लिए इन दिनों में शक्ति पूजा या नवदुर्गा की पूजा का विधान है. इसमें मां की नौ शक्तियों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है.   ऐसे समय में मां भगवती की पूजा कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करना बहुत शुभ माना गया है। क्योंकि बसंत ऋतु अपने चरम पर होती है इसलिये इन्हें वासंती नवरात्र भी कहा जाता है। नवरात्र के दौरान जहां मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है वहीं चैत्र नवरात्रों के दौरान मां की पूजा के साथ-साथ अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का विधान भी है जिससे ये नवरात्र विशेष हो जाते हैं।

मां दुर्गा के तीन स्वरूप हैं, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती इसलिए इसे त्रिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रों में विशेष रूप से देवी की पूजा, पाठ, उपवास, भक्ति की जाती है। 

नवरात्री का अर्थ नौ रातें होती है. इन नौ रातों में माँ दुर्गा के नौ रुपों की पूजा होती है ,माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं – 

पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।

माँ दुर्गा देवी के नौ रुपों की पूजा की जाय तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.माता की कृपा पाने के लिए नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ का पाठ करना चाहिये. दुर्गा सप्तशती में बताये मंत्रों और श्लोकों का पाठ करने मात्र से माँ की कृपा बनी रहती है , 

इन नौ दिनों के दौरान देवी की आराधना करने वाले भक्तों को ब्रह्माचर्य पालन का पालन करना चाहिए. ब्रह्मचर्य का पालन कर मां भगवती की भक्ति करने वालों से मां जल्द खुश होती हैं और उनकी सारी मनोकामनाओं को पूरा करती है.

नव संवत्सर और चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 18 मार्च 2018 से हो रहा है। नौ दिनों तक चलने वाली इस पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों आराधना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करने से लोगों को हर मुश्किल से छुटकारा मिल जाता है। इस वर्ष नवरात्रि नौ दिन की ना हो कर आठ दिन की है ।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

जिन घरों में नवरात्रि पर कलश-स्थापना (घटस्थापना) होती है उनके लिए शुभ मुहूर्त 18 मार्च को प्रातः 09 बजकर 35 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा. इस अवधि में शुभ लाभ के चौघड़िया रहेगा। इस दौरान घटस्थापना करना सबसे अच्छा होगा। इस वसंत नवरात्रि में कई शुभ संयोग बन रहे हैं ।इसके बाद शुभ का चौघड़िया दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से दोपहर 3 बजकर 35 मिनट तक रहेगा।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि इस दिन विशेष घट स्थापना का शुभ मुहूर्त (लग्न अनुसार) 18 तारीख को सुबह 07:55 मिनट से सुबह 09:35 मिनट तक रहेगा । इसकी कुल अवधि लगभग एक घंटे 40 मिनट की है। ये सभी मुहूर्त उज्जैन के अनुसार दिए गए हैं।

नवरात्रि के दिन से हिन्दू नव वर्ष प्रारम्भ होता है। इस दिन रविवार है साथ ही सर्वार्थसिद्ध योग भी बन रहा है। इस दिन जो वार होता उसी का स्वामी वर्ष का राजा होता है, अतः इस वर्ष राजा सूर्य है ।

वैसे नवरात्र के प्रारंभ से ही अच्छा वक्त शुरू हो जाता है इसलिए अगर जातक शुभ मुहूर्त में घट स्थापना नहीं कर पाता है तो वो पूरे दिन किसी भी वक्त कलश स्थापित कर सकता है, उसका कोई दुष प्रभाव नहीं पड़ता है ।

कलश स्थापना व पूजा विधि

चैत्र नवरात्र से हिंदू नववर्ष भी शुरू होता है इसलिए इनका धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व है। इस बार नवरात्रि 18 मार्च से शुरू होगी जो 25 मार्च तक रहेगी, और नवरात्रि का पारण 26 मार्च को होगा।

नवरात्र मे कलश स्थापना के साथ 18 मार्च से चैत्र नवरात्र का पूजन शुरू होगा और 25 मार्च को रामनवमी मनाई जाएगी. नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना की जाती है और फिर देवी की पूजा शुरू की जाती है। इसके बाद नव रात्रि के 9 दिन मां के लिए व्रत रखा जाता है. जो लोग 9 दिन उपवास नहीं रख सकते वो प्रथम और अंतिम दिन रखें। 9वें दिन कन्या पूजन के बाद व्रत खोला जाता है ।

हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है. माता की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता के अनुसार, कलश को भगवान श्विष्णु का प्रतिरुप माना गया है. इसलिए सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है. कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए. पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है ।

कलश में हल्दी को गांठ, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा रखी जाती है और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है. इस कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर कर जौ बौये जाते है. जौ बोने की इस विधि के द्वारा अन्नपूर्णा देवी का पूजन किया जाता है. जोकि धन-धान्य देने वाली हैं. तथा माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित कर रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से माता का श्रृंगार करना चाहिए।

साथ ही माता जी को प्रातः काल फल एवं मिष्ठान का भोग और रात्रि में दूध का भोग लगाना चाहिए और पूर्ण वाले दिन हलवा पूरी का भोग लगाना चाहिए. इस दिन से ‘दुर्गा सप्तशती’ अथवा ‘दुर्गा चालीसा’ का पाठ प्रारम्भ किया जाता है. पाठ पूजन के समय अखंड दीप जलाया जाता है जोकि व्रत के पारण तक जलता रहना चाहिए ।

कलश स्थापना के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है. कलश स्थापना के दिन ही नवरात्रि की पहली देवी, मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की आराधना की जाती है. इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा मां का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं ।

जानिए क्‍यों करते हैं घटस्‍थापना

पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। धारणा है की कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित होती हैं। साथ ही ये भी मान्‍यता है क‍ि कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं। इसलिए नवरात्र के शुभ द‍िनों में घटस्‍थापना की जाती है। 

जानिए क्या उपाय करें इस दिन

सभी चाहते है की हम निरोग रहे हमारा समय अच्छे से बीत जाये तो सबसे पहले आज के दिन नीम की कोमल पत्तिया और थोड़ी सी अजवाइन मिलाकर इसका प्रातः काल गंगा जल के साथ सेवन करे। 

मां दुर्गा की पूजा के दौरान भक्तों को कभी भी दूर्वा, तुलसी और आंवला का प्रयोग नहीं करना चाहिये. 

मां दुर्गा की पूजा में लाल रंग के पुष्पों का बहुत महत्व है. गुलहड़ के फूल तो मां को अति प्रिय हैं. इसके अलावा बेला, कनेल, केवड़ा, चमेली, पलाश, तगर, अशोक, केसर, कदंब के पुष्पों से भी पूजा की जा सकती है

मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा अनुसार 9 दिन तक जप करें

”ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥“

कुन्जिका स्तोत्रं 

श्री दुर्गा सप्तसती में वर्णित अत्यंत प्रभावशली सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ इस सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने से संपूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का फल मिलता है।

यह महामंत्र देवताओं को भी दुर्लभ नहीं है , इस मंत्र का नित्य पाठ करने से माँ भगवती जगदम्बा की कृपा बनी रहती है…

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्‌॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌॥2॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।

पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥4॥

अथ मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा

॥ इति मंत्रः॥

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥

धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्‌।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

। इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ।

|| ॐ तत्सत ||

नवरात्र में देवी पूजा करने से अधिक शुभत्व की प्राप्ति होती है। देवी की भक्ति से कामना अनुसार भोग, मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। 

चैत्र मास के नवरात्रि में 9 दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन के साथ यह पर्व सम्पन्न होता है. देवी भावगत के अनुसार नवमी में व्रत खोलना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री की तरफ से आपको और आपके परिवार को भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2075  की हार्दिक शुभकामनाएं ।

यह वर्ष भारतीयों के लिये ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये भी सुख, शांति एवं मंगलमय हो।

” माँ दुर्गा ” आपको शांति , शक्ति , संपत्ति , संयम , सादगी ,सफलता ,समृद्धि , सम्मान, स्नेह और स्वास्थ्य जीवन प्रदान करे ।

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
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