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जानिए करवाचौथ की कथा, पूजा विधि और चंद्रमा उदय होने का समय

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस दिन, भारत के उत्तरी राज्यों की विवाहित महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करने के लिए सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास रखती हैं।



महिलाएं सुबह जल्दी उठती हैं और अपना पहला भोजन करती हैं जिसे ‘सरगी’ के नाम से जाना जाता है। सरगी आमतौर पर महिलाओं की सास द्वारा दी जाती है।

शाम को, सब महिलाएं इकट्ठा होकर गायन और नृत्य करके दिन मनाती हैं। खासतौर पर इस दिन महिलाएं हाथों पर मेंहदी लगवाती हैं। अपना उपवास तोड़ने से पहले, वे एक- दूसरे को करवा चौथ की कहानी सुनाते हैं।

करवा चौथ मुहूर्त 2020

करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 5:29 से 6:48 बजे

चंद्रोदय- 8:16 बजे

चतुर्थी तिथि आरंभ- 03:24 (4 नवंबर)

चतुर्थी तिथि समाप्त- 05:14 (5 नवंबर)

करवा चौथ व्रत कथा

पुराने समय की बात है एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम वीरवती था वीरवती सबकी लाड़ली थी। जब वीरवती बड़ी हुई तो उसका विवाह एक राजा से हुआ, वीरवती और उसका पति दोनों अपना जीवन अच्छे से जी रहे थे।

वीरवती अपने मायके आई हुई थी और कुछ ही दिनों में करवा चौथ का का व्रत था। वीरवती का यह पहला व्रत था उसने अपनी मां और भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रख लिया।

रात्रि के समय जब वीरवती के सभी भाई भोजन करने बैठे तो उन्होंने वीरवती से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर वीरवती ने कहा:- भाई अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।

वीरवती के भाई अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। वीरवती के भाई नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी।

घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा:- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो।

वीरवती ने अपनी भाभियों से कहा:- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो।

ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा:- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

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वीरवती अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश वीरवती से अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण वीरवती के पति मृत्यु हो गई।

वीरवती को जब यह समाचार मिला तो वो रोने लगी और भागती हुई अपने घर जा रही थी। रास्ते में, वह भगवान शिव और देवी पार्वती से मिलीं। उन्होंने उसे सूचित किया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है।

क्योंकि तुम ने चंद्रोदय से पहले अपना उपवास तोड़ा है। वीरवती ने माफ़ी मांगी। यह देखकर देवी ने उसे वरदान दिया कि उसका पति जीवित रहेगा लेकिन बीमार रहेगा।

जब रानी अपने महल में पहुंची तो उसने अपने पति को देखा, उसके पति के शरीर पर कई सुईयां थी और वह बेहोश पड़ा था। प्रत्येक दिन, वीरवती ने राजा के शरीर से एक सुई निकाली। अगले साल, करवा चौथ के दिन, पति के शरीर में केवल एक सुई बची थी।

वीरवती ने करवा चौथ व्रत का कठोर पालन किया। वीरवती बाजार से करवा खरीदने गई थी और एक दासी को राजा का ध्यान रखने को कह गई।

पीछे से दासी ने राजा के शरीर से आखिरी सुई निकाल दी। राजा को होश आया तो उसने दासी को ही रानी समझ लिया।

जब रानी वीरवती वापस आई तो उसे दासी बना दिया गया। तब भी रानी ने चौथ के व्रत का पालन पूरे विश्वास से किया।

एक दिन राजा किसी दूसरे राज्य जाने के लिए रवाना हो रहा था। उसने दासी वीरवती से भी पूछ लिया कि उसे कुछ मंगवाना है क्या?

वीरवती ने राजा को एक जैसी दो गुड़िया लाने के लिए कहा। राजा एक जैसी दो गुड़िया ले आया। वीरवती हमेशा गीत गाने लगी,

“रोली की गोली हो गई …..गोली की रोली हो गई” ( रानी दासी बन गई , दासी रानी बन गई )।

राजा ने इसका मतलब पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी सुना दी। राजा समझ गया और उसे बहुत पछतावा हुआ। उसने वीरवती को वापस रानी बना लिया और उसे वही शाही मान सम्मान लौटाया।

माता पार्वती के आशीर्वाद से और रानी के विश्वास और भक्ति पूर्ण निष्ठा के कारण उसे अपना पति और मान सम्मान वापस मिला।

कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

 व्रत विधि

ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही पूजा करती हैं। लेकिन कुछ रीति-रिवाज एक जैसे ही है तो चलिए देखते है।

सूर्योदय से पहले स्‍नान कर के व्रत रखने का संकल्‍प लें और सास दृारा भेजी गई सरगी खाएं। सरगी में, मिठाई, फल, सेंवई, पूड़ी और साज-श्रंगार का समान दिया जाता है। सरगी में प्‍याज और लहसुन से बना भोजन न खाएं।

सरगी खाने के बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरु हो जाता है। मां पार्वती, महादेव शिव व गणेश जी का ध्‍यान पूरे दिन अपने मन में करती रहें।

दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इस चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है जो कि बड़ी पुरानी परंपरा है।

गौरी गणेश के स्‍वरूपों की पूजा करें। इस मंत्र का जाप करें –

‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌।

प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’

शाम के समय करवा चौथ की कथा सुने। कथा सुनने के बाद आपको अपने घर के सभी वरिष्‍ठ लोगों का चरण स्‍पर्श कर लेना चाहिये।

रात्रि के समय छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें उसे अर्घ्य प्रदान करें। फिर पति के पैरों को छूते हुए उनका आर्शिवाद लें। फिर पति देव को प्रसाद दे कर भोजन करवाएं और बाद में खुद भी करें।



पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन बिना चन्द्रमा को अर्घ्य दिए व्रत तोड़ना अशुभ माना जाता है।

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Post By Shweta