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Lohiri 2019 : क्या है लोहड़ी का इतिहास, परंपरा और उसका महत्त्व

Lohiri 2019 : क्या है लोहड़ी का इतिहास, परंपरा और उसका महत्त्व

लोहड़ी पौष माह की आखिरी रात में मनाया जाता है। सिखों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है। त्यौहार के कुछ दिन पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार को मनाने का प्रचलन है। लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं, यानी माघ मास शुरू हो जाता है। यह त्योहार पूरे विश्व में मनाया जाता है।

लोहड़ी का महत्व

पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है. जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चे का जन्म हुआ हो, उन्हें विशेष तौर पर लोहड़ी की बधाई दी जाती है. घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी का काफी महत्व होता है. इस दिन विवाहित बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है. ये त्योहार बहन और बेटियों की रक्षा और सम्मान के लिए मनाया जाता है.

लोहड़ी पर क्या है अग्नि का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह अग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है. एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया. इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास पहुंची और पूछा कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ का निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया. इस बात पर अहंकारी राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की. इससे सती बहुत आहत हुईं और क्रोधित होकर खूब रोईं. उनसे अपने पति का अपमान नहीं देखा गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर लिया. सती के मृत्यु का समाचार सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया. तब से माता सती की याद में लोहड़ी पर आग जलाने की परंपरा है.

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लोहड़ी की अन्य कथाएं

दुल्ला भट्टी की कहानी

मुगल राजा अकबर के काल में दुल्ला भट्टी नामक एक लुटेरा पंजाब में रहता था जो न केवल धनी लोगों को लूटता था, बल्कि बाजार में बेची जाने वाली ग़रीब लड़कियों को बचाने के साथ ही उनकी शादी भी करवाता था. लोहड़ी के त्यौहार को दूल्ला भट्टी से जोड़ा जाता है. लोहड़ी के कई गीतों में भी इनके नाम का ज़िक्र होता है.

कृष्ण ने क‍िया था लोहिता का वध 

एक अन्य कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था. उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है.

क्या है लोहड़ी मनाने की परंपरा

लोहड़ी पर घर-घर जाकर दुल्ला भट्टी के और अन्य तरह के गीत गाने की परंपरा है, लेकिन आजकल ऐसा कम ही होता है. बच्चे घर-घर लोहड़ी लेने जाते हैं और उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाया जाता है. इसलिए उन्हें गुड़, मूंगफली, तिल, गजक या रेवड़ी दी जाती है.

दिनभर घर-घर से लकड़ियां लेकर इकट्ठा की जाती है. आजकल लकड़ी की जगह पैसे भी दिए जाने लगे हैं जिनसे लकड़ियां खरीदकर लाई जाती है और शाम को चौराहे या घरों के आसपास खुली जगह पर जलाई जाती हैं. उस अग्नि में तिल, गुड़ और मक्का को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है.

आग जलाकर लोहड़ी को सभी में वितरित किया जाता है. नृत्य-संगीत का दौर भी चलता है. पुरुष भांगड़ा तो महिलाएं गिद्दा नृत्य करती हैं।

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