दशामा व्रत क्यों रखती हैं महिलाएं? क्या है इसका रहस्य?
माँ दशामा एक लोकदेवी हैं जिनकी पूजा विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान, और पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्रों में की जाती है। उन्हें एक ऐसी देवी के रूप में माना जाता है जो दुख, रोग, संकट और दुर्भाग्य को हरने वाली हैं। “दशामा” शब्द का अर्थ है – दशा (स्थिति या हालत) को सुधारने वाली माता। मान्यता है कि वे विशेष रूप से रात के समय गृहों की रक्षा करती हैं और अपने भक्तों को हर तरह के भय और अनिष्ट से मुक्त करती हैं। माँ दशामा का स्वरूप करुणामयी है, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए अति पराक्रमी और संकटहरण करने वाली देवी हैं।
माँ दशामा की उत्पत्ति और लोककथा
माँ दशामा की उत्पत्ति को लेकर कोई विशिष्ट वेद-पुराणिक उल्लेख नहीं है, लेकिन उनके बारे में कई लोककथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक निर्धन परिवार में बहुत कष्ट चल रहा था। एक दिन उस परिवार की महिला को एक साध्वी मिली जिसने माँ दशामा का व्रत करने की सलाह दी। महिला ने पूरी श्रद्धा से व्रत किया और चमत्कारी ढंग से उसके घर में सुख-समृद्धि लौट आई। तभी से यह मान्यता बनी कि जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास से माँ दशामा की पूजा करता है, उसके जीवन की दशा बदल जाती है। एक अन्य कथा में माँ दशामा को राक्षसों और बुरे प्रभावों से बचाने वाली देवी बताया गया है जो समाज में न्याय और सुरक्षा का प्रतीक बनकर प्रकट हुई थीं।
दशामा व्रत और पूजा विधि
माँ दशामा की पूजा विशेष रूप से श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस दिन भक्तगण माँ दशामा का व्रत करते हैं और उनकी कथा सुनते हैं। पूजा विधि में सबसे पहले प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किया जाता है। फिर एक चौकी पर माँ दशामा की मूर्ति या चित्र को स्थापित कर पूजा की जाती है। उन्हें कुमकुम, चावल, फूल, नारियल, अगरबत्ती, दीपक और विशेष भोग अर्पित किया जाता है। व्रत के दौरान दिनभर उपवास रखा जाता है और संध्या समय माँ की आरती और व्रत कथा का पाठ किया जाता है। बहुत से लोग इस दिन “गरबा” और लोकगीतों द्वारा माँ की आराधना करते हैं।
माँ दशामा की महिमा और श्रद्धा
माँ दशामा को विशेष रूप से स्त्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। महिलाएं यह व्रत अपने संतान की लंबी उम्र, परिवार की समृद्धि, और वैवाहिक सुख-शांति के लिए करती हैं। यह भी मान्यता है कि माँ दशामा की पूजा करने से बुरे स्वप्न, ग्रह दोष, रोग और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। माँ दशामा की लोकभक्ति इतनी मजबूत है कि आज भी गुजरात और राजस्थान में गाँव-गाँव में उनके मंदिर और थान स्थापित हैं, जहाँ लोग मनोकामनाओं के लिए दर्शन व पूजन करने जाते हैं। माँ की कृपा से लोगों की “दशा” बदल जाती है, इसी कारण उन्हें दशामा कहा जाता है।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो