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बौद्ध धर्म : बुद्धं शरणं गच्छामि

बौद्ध धर्म: बुद्धं शरणं गच्छामि


बौद्ध धर्म को हम मानवीय धर्म कह सकते हैं, क्योंकि बौद्ध धर्म ईश्वर को नहीं, मनुष्य को महत्व देता है. भगवान बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा के साथ ही अपने धर्म के अंग के तौर पर सामाजिक, बौद्धिक, आर्थिक,.राजनैतिक स्वतंत्रता एवं समानता की शिक्षा दी है.उनका मुख्य ध्येय इंसान को इसी धरती पर इसी जीवन में विमुक्ति दिलाना था, न कि मृत्यु के बाद स्वर्ग प्राप्ति का काल्पनिक वादा करना.बुद्ध ने साफ कहा था कि उनका उपदेश स्वयं उनके विचार पर आधारित है, उसे दूसरे तब स्वीकार करें, जब वे उसे अपने विचार और अनुभव से सही पाएं.जिस प्रकार एक सुनार सोने की परीक्षा करता है, उसी प्रकार मेरे उपदेशों की परीक्षा करनी चाहिए.दूसरे किसी भी धर्म संस्थापक ने कभी यह बात नहीं की.

बौद्ध धर्म की स्थापना

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण (भिक्षु) परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है.ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई. भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में  लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था. उनके महापरिनिर्वाण के अगले पांच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया.

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क्या है धर्म-चक्र-प्रवर्तन

जब सिद्धार्थ को सच्चे बोध की प्राप्ति हुई उसी वर्ष आषाढ़ की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध काशी के पास मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे. वहीं पर उन्होंने सबसे पहला धर्मोपदेश दिया. भगवान बुद्ध ने मध्यम मार्ग अपनाने के लिए लोगों से कहा. दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया.अहिंसा पर बड़ा जोर दिया. यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की.

80 वर्ष की उम्र तक भगवान बुद्ध ने अपने धर्म का सीधी सरल लोकभाषा में पाली में प्रचार किया. उनकी सच्ची सीधी बातें जनमानस को स्पर्श करती थीं. लोग आकर उनसे दीक्षा लेने लगे. बौद्ध धर्म सबके लिए खुला था. उसमें हर आदमी का स्वागत था. ब्राह्मण हो या चांडाल, पापी हो या पुण्यात्मा, गृहस्थ हो या ब्रह्मचारी सबके लिए उनका दरवाजा खुला था. जात-पाँत, ऊँच-नीच का कोई भेद-भाव नहीं था उनके यहां.

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बौद्ध संघ की स्थापना

बुद्ध के धर्म प्रचार से भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी.बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी उनके शिष्य बनने लगे.शुद्धोदन और राहुल ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली.जब भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी तो बौद्ध संघ की स्थापना की गई.बाद में लोगों के आग्रह पर बुद्ध ने स्त्रियों को भी संघ में ले लेने के लिए अनुमति दे दी.

बौद्ध धर्म का विदेशों में प्रचार 

भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोककल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर-उधर भेजा.अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम्‌ भूमिका निभाई.आज भी बौद्ध धर्म का भारत से अधिक विदेशों में प्रचार है.चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका आदि में बौद्ध धर्म आज भी जीवित धर्म है और विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं.

बुद्ध धर्म के प्रचारक

आनन्द : ये बुद्ध और देवदत्त के भाई थे और बुद्ध के दस सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक हैं.ये लगातार बीस वर्षों तक बुद्ध की संगत में रहे.इन्हें गुरु का सर्वप्रिय शिष्य माना जाता था.आनंद को बुद्ध के निर्वाण के पश्चात प्रबोधन प्राप्त हुआ.वे अपनी स्मरण शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे.

महाकश्यप : महाकश्यप मगध के ब्राह्मण थे, जो तथागत के नजदीकी शिष्य बन गए थे.इन्होंने प्रथम बौद्ध अधिवेशन की अध्यक्षता की थी.

रानी खेमा : रानी खेमा सिद्ध धर्मसंघिनी थीं.ये बीमबिसारा की रानी थीं और अति सुंदर थीं.आगे चलकर खेमा बौद्ध धर्म की अच्छी शिक्षिका बनीं.

महाप्रजापति : महाप्रजापति बुद्ध की माता महामाया की बहन थीं.इन दोनों ने राजा शुद्धोदन से शादी की थी.गौतम बुद्ध के जन्म के सात वर्ष पश्चात महामाया की मृत्यु हो गई.तत्पश्चात महा- प्रजापति ने उनका अपने पुत्र जैसे पालन-पोषण किया.राजा शुद्धोदन की मृत्यु के बाद बौद्ध मठ में पहली महिला सदस्य के रूप में महाप्रजापिता को स्थान मिला था.

मिलिंद : मिलिंदा यूनानी राजा थे.ईसा की दूसरी सदी में इनका अफगानिस्तान और उत्तरी भारत पर राज था.बौद्ध भिक्षु नागसेना ने इन्हें बौद्ध धर्म की दीक्षा दी और इन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया.

सम्राट अशोक : सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के अनुयायी और अखंड भारत के पहले सम्राट थे.इन्होंने ईसा पूर्व 207 ईस्वी में मौर्य वंश की शुरुआत की.अशोक ने कई वर्षों की लड़ाई के बाद बौद्ध धर्म अपनाया था.इसके बाद उन्होंने युद्ध का बहिष्कार किया और शिकार करने पर पाबंदी लगाई.बौद्ध धर्म का तीसरा अधिवेशन अशोक के राज्यकाल के 17वें साल में संपन्न हुआ.सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महिंद और पुत्री संघमित्रा को धर्मप्रचार के लिए श्रीलंका भेजा.इनके द्वारा श्रीलंका के राजा देवनामपिया तीस्सा ने बौद्ध धर्म अपनाया और वहां ‘महाविहार’ नामक बौद्ध मठ की स्थापना की.यह देश आधुनिक युग में भी थेरावदा बौद्ध धर्म का गढ़ है.

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बुद्ध की शिक्षाएं – 

गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं. तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को चार आर्यसत्य (दुःख, दुःख कारण, दुःख निरोध, दुःख निरोध का मार्ग), अष्टांगिक मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प,सम्यक वक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास,सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि), दस पारमिता (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा), पंचशील (अहिंसा,अस्तेय, अपरिग्रह,सत्य, सभी नशा से विरत)  आदि शिक्षाओं को प्रदान किए हैं.

बौद्ध धर्म के दर्शन एवं सिद्धांत –

 
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं. सभी बौद्ध सम्प्रदाय तथागत बुद्ध के मूल सिद्धांत ही मानते हैं.

प्रतीत्यसमुत्पाद – प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है. प्राणियों के लिये, इसका अर्थ है कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र. क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्मं (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है. हर घटना मूलतः शुन्य होती है. परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते हैं.

क्षणिकवाद – इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है और नश्वर है. कुछ भी स्थायी नहीं. परन्तु वेदिक मत से विरोध है.

अनात्मवाद – आत्मा का अर्थ ‘मै’ होता है. किन्तु, प्राणी शरीर और मन से बने है, जिसमे स्थायित्व नही है.
क्षण-क्षण बदलाव होता है. इसलिए, ‘मै’अर्थात आत्मा नाम की कोई स्थायी चीज़ नहीं. जिसे लोग आत्मासमझते हैं, वो चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है. आत्मा का स्थान मन ने लिया है.

अनीश्वरवाद – बुद्ध ने ब्रह्म-जाल सूत् में सृष्टि का निर्माण कैसा हुआ, ये बताया है. सृष्टि का निर्माण होना और नष्ट होना बार-बार होता है. ईश्वर या महाब्रह्मा सृष्टि का निर्माण नही करते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद अर्थात कार्यकरण-भाव के नियम पर चलती है. भगवान बुद्ध के अनुसार, मनुष्यों के दू:ख और सुख के लिए कर्म जिम्मेदार है, ईश्वर या महाब्रह्मा नही. पर अन्य जगह बुद्ध ने सर्वोच्च सत्य को अवर्णनीय कहा है.

शून्यतावाद – शून्यता महायान बौद्ध संप्रदाय का प्रधान दर्शन है. वह अपने ही संप्रदाय के लोगों को महत्व देते हैं.

यथार्थवाद – बौद्ध धर्म का मतलब निराशावाद नहीं है. दुख का मतलब निराशावाद नहीं है, लेकिन सापेक्षवाद और यथार्थवाद है. बुद्ध, धम्म और संघ बौद्ध धर्म के तीन त्रिरत्न हैं. भिक्षु, भिक्षुणी, उपसका और उपसिका संघ के चार अवयव हैं.

बौद्ध धर्म के संप्रदाय

बौद्ध धर्म में संघ का बडा स्थान है. इस धर्म में बुद्ध, धम्म और संघ को ‘त्रिरत्न’ कहा जाता है. संघ के नियम के बारे में गौतम बुद्ध ने कहा था कि छोटे नियम भिक्षुगण परिवर्तन कर सकते है. उन के महापरिनिर्वाण पश्चात संघ का आकार में व्यापक वृद्धि हुआ.
इस वृद्धि के पश्चात विभिन्न क्षेत्र, संस्कृति, सामाजिक अवस्था, दीक्षा, आदि के आधार पर भिन्न लोग बुद्ध धर्म से आबद्ध हुए और संघ का नियम धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा. साथ ही में अंगुत्तर निकाय के कालाम सुत्त में बुद्ध ने अपने अनुभव के आधार पर धर्म पालन करने की स्वतन्त्रता दी है. अतः, विनय के नियम में परिमार्जन/परिवर्तन, स्थानीय सांस्कृतिक/भाषिक पक्ष, व्यक्तिगत धर्म का स्वतन्त्रता, धर्म के निश्चित पक्ष में ज्यादा वा कम जोड आदि कारण से बुद्ध धर्म में विभिन्न सम्प्रदाय वा संघ में परिमार्जित हुए.

वर्तमान में, इन संघ में प्रमुख सम्प्रदाय या पंथ थेरवाद, महायान और वज्रयान है. भारत में बौद्ध धर्म का नवयान संप्रदाय है जो पुर्णत शुद्ध, मानवतावादी और विज्ञानवादी है.

थेरवाद
थेरवाद बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है. श्रीलंका, थाईलैंड, म्यान्मार, कम्बोडिया, लाओस, बांग्लादेश, नेपाल आदि देशों में थेरवाद बौद्ध धर्म का प्रभाव हैं.

महायान
महायान बुद्ध की पूजा करता है. चीन, जापान, उत्तर कोरिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया आदि देशों में प्रभाव हैं.

वज्रयान
वज्रयान को तांत्रिक बौध धर्म भी कहा जाता है. यह भूटान का राष्ट्र धर्म है. भूटान, मंगोलिया और तिब्बत्में इसका प्रभाव देखने को मिलता है.

नवयान
नवयान में बुद्ध के मूल सिद्धांतों का अनुसरण किया जाता है. इसमें महायान, वज्रयान, थेरवाद के कई शुद्ध सिद्धांत हैं. यह अन्धविश्वास नहीं मानता बल्कि विज्ञानवाद पर ज्यादा जोर देता है. भारत में मुख्यतः महाराष्ट्र में इसका प्रभाव देखने को मिलता है.

गौतम बुद्ध के बाद बौद्ध धर्म में बहुत कुछ बदला
आज, हालांकि बौद्ध धर्म में तीन सम्प्रदाय हैं परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है. सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धांत ही मानते है. आज पुरी दुनिया में करीब ५४ करोड़ से अधिक लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७ हिस्सा है और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है. बौद्ध लोग बहुत ही कर्मशील होते हैं.

Photo Courtesy: www.samaybuddha.wordpress.com
Photo Courtesy: www.samaybuddha.wordpress.com

भारत से कई सौ साल बाहर विकसित होता रहा बौद्ध धर्म
आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म ‘प्रमुख धर्म’ धर्म है. भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रशिया, ब्रुनेई, मलेशिया आदी देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध है.

आधुनिक भारत में भारतीय संविधान के पिता डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर को बोधिसत्व कहते है. कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं – उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे. उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को प्राप्त करे. बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत. “मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ – दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के निरोध का मार्ग है” (बुद्ध). बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर न के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं.
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Post By Shweta