Post Image

भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का दिन है बुद्ध पूर्णिमा

भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का दिन है बुद्ध पूर्णिमा

वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली बुद्ध पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन 563 ईसा पूर्व में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी दिन बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व में 80 साल की उम्र में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण, ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे।

चित्र सौजन्य: www.dhammatalks.net

भगवान बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। यह पर्व बुद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्त्व रखता है.बौद्ध धर्म को मानने वाले भगवान बुद्ध के उपदेशों का पालन करते हैं।

भगवान बुद्ध का पहला उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है। यह पहला उपदेश भगवान बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था।

चित्र सौजन्य: www.dhammatalks.net

बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से क्रांति का सूत्रपात किया था। उन्होंने तत्कालीन समाज में मौजूद घोर आडंबर, पशु और नरबलि, वैदिक कर्मकाण्डों का विरोध किया. बुद्ध ने मानव कल्याण का उपदेश दिया.

यह भी पढ़ें – बौद्ध धर्म : बुद्धं शरणं गच्छामि

माना जाता है कि वैशाख पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु ने अपने नौवें अवतार भगवान बुद्ध के रूप में जन्म लिया।

इसी दिन को सत्य विनायक पूर्णिमा के तौर पर भी मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा गरीबी के दिनों में उनसे मिलने पहुंचे इसी दौरान जब दोनों दोस्त साथ बैठे थे, तो कृष्ण ने सुदामा को सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था. सुदामा ने इस व्रत को विधिवत किया और उनकी गरीबी नष्ट हो गई.

श्रीलंकाई इस दिन को ‘वेसाक’ उत्सव के रूप में मनाते हैं जो ‘वैशाख’ शब्द का अपभ्रंश है। इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है।

दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएं करते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं. इस दिन मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।

@religionworldin

Post By Religion World