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भानु सप्तमी: जानिए पूजा का महत्व, व्रत और पूजा विधि

किसी भी रविवार को जब सप्तमी तिथि पड़ती है तो वह भानु सप्तमी कहलाती है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आज 12 जुलाई को भानु सप्तमी है.



इस दिन अगर कोई सूर्य भगवान की पूजा करे, तो उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं. सूर्य भगवन को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है, ब्राह्मांड में सूर्य के चारों तरफ सभी ग्रह चक्कर काटते हैं.

इस दिन सूर्य देव को खुश करने के लिए आदित्य ह्रदयं और अन्य सूर्य स्त्रोत पढ़ना और सुनना शुभ माना जाता है. इससे आप निरोगी रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि रोजाना सूर्य को जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है.

इस मौके पर स्नान और अर्घ्यदान करने से आयु, आरोग्य व संपत्ति की प्राप्ति‍ होती है. इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है.

भानु सप्तमी पूजा का महत्त्व

पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रों में भानु सप्तमी के पर्व को सूर्य ग्रहण के समान प्रभावकारी बताया गया है. इसमें जप, होम, दान आदि करने पर उसका सूर्य ग्रहण की तरह अनन्त गुना फल प्राप्त होता है. सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं. इनकी अर्चना से मनुष्य को सब रोगों से छुटकारा मिलता है. जो नित्य भक्ति और भाव से सूर्यनारायण को अर्ध्य देकर नमस्कार करता है, वह कभी भी अंधा, दरिद्र, दु:खी और शोकग्रस्त नहीं रहता है. इस दिन भगवान सूर्यनारायण के निमित्त व्रत करते हुए उनकी उपासना करने से अत्यधिक पुण्य प्राप्त होता है.

रोज भगवान सूर्य को जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता हैं. मानसिक शांति मिलती हैं.

भानु सप्तमी के दिन सूर्य की पूजा करने से स्मरण शक्ति बढ़ती हैं.

इस एक दिन की पजूा से ब्राह्मण सेवा का फल मिलता है.

सूर्य देव की अर्चना करने से सदैव स्वस्थ रहते हैं.

इस दिन दान का भी महत्व होता है ऐसा करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है.

अच्छे स्वास्थ के लिए, लम्बी आयु के लिए, अपना यश बढ़ाने के लिए अकाल मृत्यु पर विजय पाने के लिए आज करें भगवान् सूर्य देव का व्रत.

प्रातः काल स्नान करके एक लोटे में शुद्ध जल ले उसमे थोडा गंगाजल, थोडा गाय का कच्चा दूध, कुछ साबुत चावल, फूल, थोडा शहद मिला कर सूर्य देव को अर्घ दे.

सूर्य के किसी भी मंत्र का जाप करें “ऊँ घृणि सूर्याय नम:” , “ऊँ सूर्याय नम:” , नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:. वरुणाय नमस्तेस्तु.’

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भानु सप्तमी व्रत विधि 

11 हज़ार रश्मियों के साथ तपने वाले सूर्य ‘भग’ रक्तवर्ण हैं. यह सूर्यनारायण के सातवें विग्रह हैं और ऐश्वर्य रूप से पूरी सृष्टि में निवास करते हैं.

सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य, ये छह भग कहे जाते हैं. इन सबसे सम्पन्न को ही भगवान माना जाता है.

अस्तु श्रीहरि भगवान विष्णु के नाम से जाने जाते हैं. रविवार को ‘विष्णवे नम:’ मंत्र से सूर्य की पूजा की जानी चाहिए.

ताम्र के पात्र में शुद्ध जल भरकर तथा उसमें लाल चंदन, अक्षत, लाल रंग के फूल आदि डालकर सूर्यनारायण को अर्ध्य देना चाहिए.



रविवार के दिन एक समय बिना नमक का भोजन सूर्यास्त से करना चाहिए. सूर्य देव को पौष में तिल और चावल की खिचड़ी का भोग लगाने के साथ बिजौरा नींबू समर्पित करना चाहिए.

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Post By Shweta