हर धर्म शांति सिखाता है, फिर टकराव क्यों?

हर धर्म शांति सिखाता है, फिर टकराव क्यों?

हर धर्म शांति सिखाता है, फिर टकराव क्यों?

दुनिया का कोई भी धर्म खोलकर देखिए, उसकी मूल शिक्षा में शांति, प्रेम, करुणा और सह-अस्तित्व ही मिलेगा। फिर भी इतिहास से लेकर वर्तमान तक, हम बार-बार धर्म के नाम पर टकराव, हिंसा और विभाजन देखते हैं। यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है कि समस्या धर्म में है या हमारी धर्म को समझने की प्रक्रिया में?

धर्म का मूल संदेश: एक समान आधार

हिंदू धर्म “वसुधैव कुटुम्बकम्” की बात करता है — पूरी दुनिया एक परिवार है।
इस्लाम “सलाम” यानी शांति से शुरू होता है।
ईसाई धर्म प्रेम और क्षमा को सर्वोच्च मानता है।
बौद्ध और जैन परंपरा अहिंसा को जीवन का आधार मानती हैं।

जब सभी धर्म शांति सिखाते हैं, तो टकराव का कारण धर्म कैसे हो सकता है?

समस्या धर्म में नहीं, व्याख्या में है

असली समस्या तब शुरू होती है, जब धर्म को आत्मचिंतन का मार्ग नहीं, बल्कि पहचान का हथियार बना लिया जाता है।
धर्म का उद्देश्य व्यक्ति को भीतर से बेहतर बनाना था, लेकिन जब उसे “हम बनाम वे” की सोच से जोड़ा जाता है, तब वह विभाजन पैदा करता है।
ग्रंथों की गहराई में उतरने के बजाय, लोग चुनिंदा पंक्तियों को अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करने लगते हैं।

आस्था बनाम अहंकार

आस्था विनम्र बनाती है, जबकि अहंकार टकराव को जन्म देता है।
जब व्यक्ति यह मानने लगता है कि केवल मेरा रास्ता सही है, तब संवाद समाप्त हो जाता है।
धर्म हमें झुकना सिखाता है, लेकिन जब धर्म के नाम पर अकड़ आ जाए, तो वह धर्म नहीं, सत्ता की इच्छा बन जाती है।

राजनीति और स्वार्थ की भूमिका

कई बार टकराव का कारण धर्म नहीं, बल्कि धर्म का इस्तेमाल करने वाले लोग होते हैं।
राजनीतिक लाभ, सत्ता, भीड़ जुटाने की चाह — इन सबके लिए धर्म एक आसान माध्यम बन जाता है।
भावनाओं को भड़काना तर्क से आसान होता है, और जब भावनाएँ भड़कती हैं, तो विवेक पीछे छूट जाता है।

भीड़ की मानसिकता और अफ़वाहें

आज के डिजिटल युग में अफ़वाहें तेज़ी से फैलती हैं।
बिना पूरी जानकारी के प्रतिक्रिया देना, अधूरी बातों पर विश्वास करना — ये सब टकराव को बढ़ाते हैं।
धर्म व्यक्ति से संयम की अपेक्षा करता है, लेकिन भीड़ संयम नहीं जानती। वह केवल प्रतिक्रिया देती है।

सच्चा धार्मिक व्यक्ति कैसा होता है?

सच्चा धार्मिक व्यक्ति वह नहीं, जो ज़्यादा नारे लगाए, बल्कि वह है —

  • जो दूसरे के दर्द को समझे

  • जो भिन्न विचारों को सुन सके

  • जो हिंसा से पहले संवाद को चुने

  • जो अपने धर्म को आचरण में दिखाए, प्रदर्शन में नहीं

जब धर्म जीवन शैली बनता है, तब शांति आती है।
जब धर्म पहचान बनता है, तब टकराव पैदा होता है।

समाधान क्या है?

समाधान धर्म छोड़ना नहीं, बल्कि धर्म को सही अर्थ में जीना है।

  • शिक्षा में सहिष्णुता का स्थान हो

  • धार्मिक संवाद हों, धार्मिक टकराव नहीं

  • नेताओं से पहले आम नागरिक ज़िम्मेदार बनें

  • हम प्रतिक्रिया से पहले सोचें

धर्म हमें जोड़ने के लिए है, तोड़ने के लिए नहीं।

हर धर्म शांति सिखाता है, इसमें कोई संदेह नहीं।
टकराव तब पैदा होता है, जब धर्म से शांति निकाल दी जाती है और उसमें डर, अहंकार और स्वार्थ भर दिया जाता है।
यदि हम धर्म को बाहर नहीं, भीतर खोजें — तो शायद दुनिया को किसी टकराव की ज़रूरत ही न पड़े।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

Post By Religion World