Post Image

योग की शरण में दुनिया – भारत की सॉफ्ट योगनीति

योग की शरण में दुनिया – भारत की सॉफ्ट योगनीति

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की तीसरी वर्षगांठ को संपन्न हुए एक हफ्ता हो चुका है, पर सोशल मीडिया पर योग की तस्वीरों ने हर किसी को जग रखा है। योग मानो अचानक विश्व पटल पर ध्रुव तारे की तरह चमकने लगा है। जैसे हर देश की एक पीढ़ी ने ठान लिया है कि भारत की इस विरासत को अपनाकर बहुत कुछ पाना है। संयुक्त राष्ट्र की बहुत ऊंची इमारत के सीने पर योग लिखा देख हर भारतीय का सीना चौड़ा हो गया है। दिल्ली से दमस्क तक, कोलकाता से कैलिफोर्निया तक और चेन्नई से चीन तक, योग ऐसी ताकत की तरह उभरा है जिसने टाइम्स स्कवायर से लेकर चीन की दीवार पर कब्जा कर लिया है। किसी ने कभी सोचा नहीं था कि शरीर और मन को साधने की इस कला से पूरी दुनिया एक सुर में गाने लगेगी। भारत की कूटनीति में नॉन एलायंग्ड मूवमेंट के बाद योग सबसे बड़ी सफलता है।

देश के हर कोने कोने में 21 जून को अनुशासन और कलाओं की ऐसी नुमाइश लगना एक प्रतीक है। दशकों से किसी भी एक सेतु पर इतने सवार नहीं थे, पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक योग के आसनों की ऐसी बयार लग गई है कि एकता में अनेकता यथार्थ रूप ले रही है। ऐसा केवल एक दिन की वजह से नहीं हुआ है, पिछले सालों में निर्यात की योग परंपरा और देसी योगियों की साधना ने करोड़ों लोगों को सहज ही जोड़ा है। जरूरतें जो भी, स्वस्थ होना या पतला होना, मन को साधना या तन का संगठन, योग एक रोजाना की जरूरत हो चला है। देश में योग की क्रांति के लिए हमारे योग साधकों की कठिन कोशिशें आज रंग ला रही हैं। स्वामी शिवानंद से लेकर स्वामी रामदेव तक, हर किसी ने इसे संगठित करके पेश किया है। धर्म, आध्यात्म, ज्योतिष और समाज भले ही आज संगठित न दिखता हो, पर योग की कलाएं हर किसी को एक ही भेष में पेश करती है।

क्या भारत के लिए योग केवल एक ज्ञान और विद्या है, ये सवाल अब कई मायनों में जरूरी हो चला है। देश से दूर अमेरिका में जहां योग की ताकत अरबों डॉलर की है, वहां रहने वाले लोग इसे जीवनशैली के तौर पर देखने लगे हैं। विख्यात दीपक चोपड़ा और बिक्रम चौधरी के योग स्टूडियो के आगे जाकर गली गली ये नए आकार ले रहा है, कहीं हॉट योगा के तौर पर तो नहीं स्वेट योगा की तरह। इसपर किसी की नियंत्रण नहीं दिखता। शायद इसीलिए भारत सरकार जाग गई है, और भारतीय योग गुरुओं का संगठन, इंडियन योग एसोशिएसन का पुनर्निमाण किया है। कहा जा रहा है कि ये सिंथेटिक योग पर शिकंजा कसेगी। दूसरी ओर स्वामी रामदेव ने पूरी दुनिया में 10,000 योग स्कूल खोलने की घोषणा कर दी है। जाहिर है इन सारे प्रयासों के जरिए योग को नया आकाश मिलेगा, पर योग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सरकारों को अभी बहुत कुछ करना है। योग आज भी शहर के जिम कल्चर की तरह पैर पसार रही है और शार्टकट जरियों से अनापशनाप बढ़ोतरी पा रही है। भारत में सात लाख गांवों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कमजोर है, वहां योग की ताकत को अभी पहुंचाना है। योग शिविर जैसे आयोजन शहरों में नहीं गांवों में होने चाहिए। साधनहीन का मन और तन मजबूत करने की ओर बहुत काम करना होगा।

दुनिया में योग से आई एकता को कैसे देखा जाए, क्या ये भारत के साफ्टपावर होने की शुरुआत है, जो अब साफ्टवेयर क्रांति के बाद एक पहचान बना चुकी है। देश के बैकरुम ब्वायज की तरह हमारी युवा पीढी आज हर कंप्यूटर में चलने वाले साफ्टवेयर से कहीं न कहीं जुड़ा है। गूगल से लेकर माइक्रोसॉफ्ट में हम हावी है और अब अमेरिका और यूके जैसे देशों में हमारी आवाज सुनाई दे रही है। संयुक्त राष्ट्र की एक समिति से जुड़े दिलीप म्हस्के का मानना है कि, “ योग दुनिया को जोड़ने का पहला कदम है, और ये अगली पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ और सुंदर दुनिया का निर्माण कर रही है”।

योग का बाजार आज हजारों करोड़ का है। इसे कंपनियों से लेकर योग संस्थानों ने अपने अपने तरीके से तैयार किया है। जाहिर है ये और बढ़ेगा और आगे चलकर तकनीक के इस्तेमाल से दूर-दूर तक पहुंचेगा। तन और मन के बीच के इस सेतु ने युवाओं के लिए नई ऊर्जा तो बेरोजगारों के लिए नए अवसर प्रदान किए हैं। आज देश के ज्यादातर योग प्रशिक्षक युवा है। ऋषिकेश में मौजूद सैकड़ों योग सेंटरों में विदेशियों की लाइन लगी हुई है। कुछ महीने के कोर्स को करके वे खुद योगी बनते जा रहे हैं, जाहिर है प्रैक्टिस और ललक से आगे इनमें से कुछ मेधावी बन जाते हैं, बाकी खुद के लिए एक नए अनुभव पैदा करते हैं। भारत की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है, हमें जल्द ही योग के सभी शोधों, जानकारियों को संग्रहित करके विश्व के सामने लाना होगा। योग की भारतीय विरासत को साझा बनाने के लिए इसके ऊपर बहुत काम करने की जरूरत है। सरकार को देखना होगा कि हम अपनी इस पूंजी को यूंही नहीं बहने दें, इससे वसुधैव कुंटुबंकम की हमारी सास्कृतिक सोच को बल मिले, ये भारतीयता के विकास और दूसरे देशों से संबंधों के बीच पुल का काम करे। अगर हम आज से इसे अपनी कूटनीति की हिस्सा बनाएंगे, तो एक दशक में ये हमें सबसे जोड़ देगी।

Post By Religion World