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उपनिषद: परिचय उत्पत्ति, परिभाषा और विद्वानों का दृष्टिकोण

उपनिषद भारत का सर्वोच्च मान्यता प्राप्त विभिन्न दर्शनों का संग्रह है. इसे वेदांत भी कहा जाता है. इसका रचनाकाल 1000 से 300 ई.पू.के लगभग है.



भारत के अनेक दार्शनिकों के अनेक वर्षों के गम्भीर चिंतन-मनन का परिणाम है उपनिषद . इनको आधार मानकर और इनके दर्शन को अपनी भाषा में रूपांतरित कर विश्व के अनेक धर्मों और विचारधाराओं का जन्म हुआ.

उपलब्ध उपनिषद-ग्रन्थों की संख्या में से ईशादि 10 उपनिषद सर्वमान्य हैं. उपनिषदों की कुल संख्या 108 है. प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि. आदि शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है.

उपनिषद परिचय

उपनिषद: परिचय उत्पत्ति, परिभाषा और विद्वानों का दृष्टिकोण

भारतीय-संस्कृति की प्राचीनतम धरोहर के रूप में वेदों का नाम आता है. ‘ॠग्वेद’ विश्व-साहित्य की प्राचीनतम पुस्तक है. मनीषियों ने ‘वेद’ को ईश्वरीय ‘बोध’ अथवा ‘ज्ञान’ के रूप में पहचाना है. विद्वानों ने उपनिषदों को वेदों का अन्तिम भाष्य ‘वेदान्त’ का नाम दिया है. इससे पूर्व वेदों के लिए ‘संहिता’ ‘ब्राह्मण’ और ‘आरण्यक’ नाम भी इस्तेमाल किये जाते हैं. उपनिषद ब्रह्मज्ञान के ग्रन्थ हैं.

शाब्दिक अर्थ

इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘समीप बैठना’ अर्थात् ब्रह्म विद्या को प्राप्त करने के लिए गुरु के समीप बैठना. इस प्रकार उपनिषद एक ऐसा रहस्य ज्ञान है जिसे हम गुरु के सहयोग से ही समझ सकते हैं. ब्रह्म विषयक होने के कारण इन्हें ‘ब्रह्मविद्या’ भी कहा जाता है. उपनिषदों में आत्मा-परमात्मा एवं संसार के सन्दर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह मिलता है. उपनिषद वैदिक साहित्य के अन्तिम भाग तथा सारभूत सिद्धान्तों के प्रतिपादक हैं, अतः इन्हें ‘वेदान्त’ भी कहा जाता है. इनका रचना काल 800 से 500 ई.पू. के मध्य है. उपनिषदों ने जिस निष्काम कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग का दर्शन दिया उसका विकास श्रीमद्भागवतगीता में हुआ.

उपनिषद शब्द की व्युत्पत्ति

विद्वानों ने ‘उपनिषद’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘उप’+’नि’+’षद’ के रूप में मानी है. इनका अर्थ यही है कि जो ज्ञान व्यवधान-रहित होकर निकट आये, जो ज्ञान विशिष्ट और सम्पूर्ण हो तथा जो ज्ञान सच्चा हो, वह निश्चित रूप से उपनिषद ज्ञान कहलाता है. मूल भाव यही है कि जिस ज्ञान के द्वारा ‘ब्रह्म’ से साक्षात्कार किया जा सके, वही ‘उपनिषद’ है. इसे अध्यात्म-विद्या भी कहा जाता है.

उपनिषद की परिभाषा

उपनिषद: परिचय उत्पत्ति, परिभाषा और विद्वानों का दृष्टिकोण

उपनिषद शब्द ‘उप’ और ‘ति’ उपसर्ग तथा ‘सद’ धातु के संयोग से बना है. ‘सद’ धातु का प्रयोग ‘गति’,अर्थात् गमन,ज्ञान और प्राप्त के सन्दर्भ में होता है. इसका अर्थ यह है कि जिस विद्या से परब्रह्म, अर्थात् ईश्वर का सामीप्य प्राप्त हो, उसके साथ तादात्म्य स्थापित हो,वह विद्या ‘उपनिषद’ कहलाती है.
उपनिषद में ‘सद’ धातु के तीन अर्थ और भी हैं – विनाश, गति, अर्थात् ज्ञान -प्राप्ति और शिथिल करना. इस प्रकार उपनिषद का अर्थ हुआ-‘जो ज्ञान पाप का नाश करे, सच्चा ज्ञान प्राप्त कराये, आत्मा के रहस्य को समझाये तथा अज्ञान को शिथिल करे, वह उपनिषद है.’
अष्टाध्यायी में उपनिषद शब्द को परोक्ष या रहस्य के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है.

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में युद्ध के गुप्त संकेतों की चर्चा में ‘औपनिषद‘ शब्द का प्रयोग किया गया है. इससे यह भाव प्रकट होता है कि उपनिषद का तात्पर्य रहस्यमय ज्ञान से है.

अमरकोष उपनिषद के विषय में कहा गया है-उपनिषद शब्द धर्म के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए प्रयुक्त होता है.

विभिन्न मतानुसार उपनिषद की परिभाषा

ब्राह्मणों की रचना ब्राह्मण पुरोहितों ने की थी, लेकिन उपनिषदों की दार्शनिक परिकल्पनाओं के सृजन में क्षत्रियों का भी महत्त्वपूर्ण भाग था. उपनिषद उस काल के द्योतक हैं जब विभिन्न वर्णों का उदय हो रहा था और क़बीलों को संगठित करके राज्यों का निर्माण किया जा रहा था. राज्यों के निर्माण में क्षत्रियों ने प्रमुख भूमिका अदा की थी, हालांकि उन्हें इस काम में ब्राह्मणों का भी समर्थन प्राप्त था.

डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार उपनिषद शब्द की व्युत्पत्ति उप (निकट), नि (नीचे), और षद (बैठो) से है. इस संसार के बारे में सत्य को जानने के लिए शिष्यों के दल अपने गुरु के निकट बैठते थे. उपनिषदों का दर्शन वेदान्त भी कहलाता है, जिसका अर्थ है वेदों का अन्त, उनकी परिपूर्ति। इनमें मुख्यत: ज्ञान से सम्बन्धित समस्याऔं पर विचार किया गया है.

इन ग्रन्थों में परमतत्व के लिए सामान्य रूप से जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है ब्रह्मन्. यद्यपि ऐसा माना जाता है कि ‘यह’ अथवा ‘वह’ जैसी अभिव्यंजनाओं वाली शब्दावली में इसके वर्णन है और इसीलिए इसे बहुधा अनिर्वचनीय कहा गया है. उपनिषदों में इसके लिए आत्मन् शब्द का प्रयोग किया गया है. अत: औपनिषदिक आदर्शवाद को, संक्षेप में, ब्रह्मन् से आत्मन् का समीकरण कहा जाता है.
औपनिषदिक आदर्शवादियों ने इस आत्मन् को कभी ‘चेतना-पुंज मात्र’ (विज्ञान-घन) और कभी ‘परम चेतना’ (चित्) के रूप में स्वीकार किया है. इसे आनंद और सत के रूप में भी स्वीकार किया गया है.

पश्चिमी देशों के व्याख्याकारों ने भी एक न एक भाष्यकार का अनुसरण किया. गफ़ शंकर की व्याख्या का अनुसरण करता है. अपनी पुस्तक “फ़िलासफ़ी ऑफ़ उपनिषद्स” की प्रस्तावना में वह लिखता है, ‘उपनिषदों के दार्शनिक तत्त्व का सबसे बड़ा भाष्यकार शंकर, अर्थात् शंकराचार्य है. शंकर का अपना उपदेश भी स्वाभाविक और उपनिषदों के दार्शनिक तत्त्व की युक्तियुक्त व्याख्या है.’

प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों की दृष्टि में उपनिषद

उपनिषद: परिचय उत्पत्ति, परिभाषा और विद्वानों का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानन्द

‘मैं उपनिषदों को पढ़ता हूँ, तो मेरे आंसू बहने लगते हैं. यह कितना महान ज्ञान है? हमारे लिए यह आवश्यक है कि उपनिषदों में सन्निहित तेजस्विता को अपने जीवन में विशेष रूप से धारण करें. हमें शक्ति चाहिए. शक्ति के बिना काम नहीं चलेगा. यह शक्ति कहां से प्राप्त हो? उपनिषदें ही शक्ति की खानें हैं. उनमें ऐसी शक्ति भरी पड़ी है, जो सम्पूर्ण विश्व को बल, शौर्य एवं नवजीवन प्रदान कर सकें.  उपनिषद किसी भी देश, जाति, मत व सम्प्रदाय का भेद किये बिना हर दीन, दुर्बल, दुखी और दलित प्राणी को पुकार-पुकार कर कहती हैं- उठो, अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और बन्धनों को काट डालो. शारीरिक स्वाधीनता, मानसिक स्वाधीनता, अध्यात्मिक स्वाधीनता- यही उपनिषदों का मूल मन्त्र है.’

कवि रविन्द्रनाथ टैगोर

‘चक्षु-सम्पन्न व्यक्ति देखेगें कि भारत का ब्रह्मज्ञान समस्त पृथिवी का धर्म बनने लगा है. प्रातः कालीन सूर्य की अरुणिम किरणों से पूर्व दिशा आलोकित होने लगी है. परन्तु जब वह सूर्य मध्याह्र गगन में प्रकाशित होगा, तब उस समय उसकी दीप्ति से समग्र भू-मण्डल दीप्तिमय हो उठेगा.’

डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

‘उपनिषदों को जो भी मूल संस्कृत में पढ़ता है, वह मानव आत्मा और परम सत्य के गुह्य और पवित्र सम्बन्धों को उजागर करने वाले उनके बहुत से उद्गारों के उत्कर्ष, काव्य और प्रबल सम्मोहन से मुग्ध हो जाता है और उसमें बहने लगता है.’

सन्त विनोवा भावे

‘उपनिषदों की महिमा अनेकों ने गायी है. हिमालय जैसा पर्वत और उपनिषदों- जैसी कोई पुस्तक नहीं है, परन्तु उपनिषद कोई साधारण पुस्तक नहीं है, वह एक दर्शन है. यद्यपि उस दर्शन को शब्दों में अंकित करने का प्रयत्न किया गया है, तथापि शब्दों के क़दम लड़खड़ा गये हैं. केवल निष्ठा के चिह्न उभरे है. उस निष्ठा के शब्दों की सहायता से हृदय में भरकर, शब्दों को दूर हटाकर अनुभव किया जाये, तभी उपनिषदों का बोध हो सकता है. मेरे जीवन में ‘गीता’ ने ‘मां का स्थान लिया है. वह स्थान तो उसी का है. लेकिन मैं जानता हूं कि उपनिषद मेरी माँ की भी है. उसी श्रद्धा से मेरा उपनिषदों का मनन, निदिध्यासन पिछले बत्तीस वर्षों से चल रहा है.

गोविन्दबल्लभ

‘उपनिषद सनातन दार्शनिक ज्ञान के मूल स्रोत है. वे केवल प्रखरतम बुद्धि का ही परिणाम नहीं है, अपितु प्राचीन ॠषियों की अनुभूतियों के फल हैं.’
भारतीय मनीषियों द्वारा जितने भी दर्शनों का उल्लेख मिलता है, उन सभी में वैदिक मन्त्रों में निहित ज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ है. सांख्य तथा वेदान्त (उपनिषद) में ही नहीं, जैन और बौद्ध-दर्शनों में भी इसे देखा जा सकता है. भारतीय संस्कृति से उपनिषदों का अविच्छिन्न सम्बन्ध है. इनके अध्ययन से भारतीय संस्कृति के अध्यात्मिक स्वरूप का सच्चा ज्ञान हमें प्राप्त होता है.

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पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में उपनिषद

उपनिषद: परिचय उत्पत्ति, परिभाषा और विद्वानों का दृष्टिकोण

केवल भारतीय जिज्ञासुओं की ध्यान ही उपनिषदों की ओर नहीं गया है, अनेक पाश्चात्य विद्वानों को भी उपनिषदों को पढ़ने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ है. तभी वे इन उपनिषदों में छिपे ज्ञान के उदात्त स्वरूप से प्रभावित हुए है। इन उपनिषदों की समुन्नत विचारधारा, उदात्त चिन्तन, धार्मिक अनुभूति तथा अध्यात्मिक जगत् की रहस्यमयी गूढ़ अभिव्य्क्तियों से वे चमत्कृत होते रहे हैं और मुक्त कण्ठ से इनकी प्रशंसा करते आये हैं.

अरबदेशीय विद्वान् अलबरुनी

‘उपनिषदों की सार-स्वरूपा ‘गीता’ भारतीय ज्ञान की महानतम रचना है.’

दारा शिकोह

‘मैने क़ुरान, तौरेत, इञ्जील, जुबर आदि ग्रन्थ पढ़े. उनमें ईश्वर सम्बन्धी जो वर्णन है, उनसे मन की प्यास नहीं बुझी. तब हिन्दुओं की ईश्वरीय पुस्तकें पढ़ीं. इनमें से उपनिषदों का ज्ञान ऐसा है, जिससे आत्मा को शाश्वत शान्ति तथा आनन्द की प्राप्ति होती है. हज़रत नबी ने भी एक आयत में इन्हीं प्राचीन रहस्यमय पुस्तकों के सम्बन्ध में संकेत किया है.

जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेन हॉवर

‘मेरा दार्शनिक मत उपनिषदों के मूल तत्त्वों के द्वारा विशेष रूप से प्रभावित है. मैं समझता हूं कि उपनिषदों के द्वारा वैदिक-साहित्य के साथ परिचय होना, वर्तमान शताब्दी का सनसे बड़ा लाभ है, जो इससे पहले किसी भी शताब्दी को प्राप्त नहीं हुआ. मुझे आशा है कि चौदहवीं शताब्दी में ग्रीक-साहित्य के पुनर्जागरण से यूरोपीय-साहित्य की जो उन्नति हुई थी, उसमें संस्कृत-साहित्य का प्रभाव, उसकी अपेक्षा कम फल देने वाला नहीं था. यदि पाठक प्राचीन भारतीय ज्ञान में दीक्षित हो सकें और गम्भीर उदारता के साथ उसे ग्रहण कर सकें, तो मैं जो कुछ भी कहना चाहता हूं, उसे वे अच्छी तरह से समझ सकेंगे उपनिषदों में सर्वत्र कितनी सुन्दरता के साथ वेदों के भाव प्रकाशित हैं.

जो कोई भी उपनिषदों के फ़ारसी, लैटिन अनुवाद का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेगा, वह उपनिषदों की अनुपम भाव-धारा से निश्चित रूप से परिचित होगा. उसकी एक-एक पंक्ति कितनी सुदृढ़, सुनिर्दिष्ट और सुसमञ्जस अर्थ प्रकट करती है, इसे देखकर आंखें खुली रह जाती है. प्रत्येक वाक्य से अत्यन्त गम्भीर भावों का समूह और विचारों का आवेग प्रकट होता चला जाता है.

सम्पूर्ण ग्रन्थ अत्यन्त उच्च, पवित्र और एकान्तिक अनुभूतियों से ओतप्रोत हैं. सम्पूर्ण भू-मण्डल पर मूल उपनिषदों के समान इतना अधिक फलोत्पादक और उच्च भावोद्दीपक ग्रन्थ कही नहीं हैं। इन्होंने मुझे जीवन में शान्ति प्रदान की है और मरते समय भी यह मुझे शान्ति प्रदान करेंगे.’

शोपेन हॉवर ने आगे भी कहा— ‘भारत में हमारे धर्म की जड़े कभी नहीं गड़ेंगी। मानव-जाति की ‘पौराणिक प्रज्ञा’ गैलीलियो की घटनाओं से कभी निराकृत नहीं होगी, वरन भारतीय ज्ञान की धारा यूरोप में प्रवाहित होगी तथा हमारे ज्ञान और विचारों में आमूल परिवर्तन ला देगी. उपनिषदों के प्रत्येक वाक्य से गहन मौलिक और उदात्त विचार प्रस्फुटित होते हैं और सभी कुछ एक विचित्र, उच्च, पवित्र और एकाग्र भावना से अनुप्राणित हो जाता है. समस्त संसार में उपनिषदों-जैसा कल्याणकारी व आत्मा को उन्नत करने वाला कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है. ये सर्वोच्च प्रतिभा के पुष्प हैं. देर-सवेर ये लोगों की आस्था के आधार बनकर रहेंगे.’ शोपेन हॉवर के उपरान्त अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने उपनिषदों पर गहन विचार किया और उनकी महिमा को गाया.

इमर्सन

‘पाश्चात्य विचार निश्चय ही वेदान्त के द्वारा अनुप्राणित हैं.’

मैक्समूलर

‘मृत्यु के भय से बचने, मृत्यु के लिए पूरी तैयारी करने और सत्य को जानने के इच्छुक जिज्ञासुओं के लिए, उपनिषदों के अतिरिक्त कोई अन्य-मार्ग मेरी दृष्टि में नहीं है. उपनिषदों के ज्ञान से मुझे अपने जीवन के उत्कर्ष में भारी सहायता मिली है. मै उनका ॠणी हूं. ये उपनिषदें, आत्मिक उन्नति के लिए विश्व के समस्त धार्मिक साहित्य में अत्यन्त सम्मानीय रहे हैं और आगे भी सदा रहेंगे. यह ज्ञान, महान, मनीषियों की महान् प्रज्ञा का परिणाम है. एक-न-एक दिन भारत का यह श्रेष्ठ ज्ञान यूरोप में प्रकाशित होगा और तब हमारे ज्ञान एवं विचारों में महान परिवर्तन उपस्थित होगा.’

प्रो. ह्यूम

‘सुकरात, अरस्तु, अफ़लातून आदि कितने ही दार्शनिक के ग्रन्थ मैंने ध्यानपूर्वक पढ़े है, परन्तु जैसी शान्तिमयी आत्मविद्या मैंने उपनिषदों में पायी, वैसी और कहीं देखने को नहीं मिली.

प्रो. जी. आर्क

‘मनुष्य की आत्मिक, मानसिक और सामाजिक गुत्थियां किस प्रकार सुलझ सकती है, इसका ज्ञान उपनिषदों से ही मिल सकता है. यह शिक्षा इतनी सत्य, शिव और सुन्दर है कि अन्तरात्मा की गहराई तक उसका प्रवेश हो जाता है. जब मनुष्य सांसरिक दुःखो और चिन्ताओं से घिरा हो, तो उसे शान्ति और सहारा देने के अमोघ साधन के रूप में उपनिषद ही सहायक हो सकते हैं.

पॉल डायसन

‘वेदान्त (उपनिषद-दर्शन) अपने अविकृत रूप में शुद्ध नैतिकता का सशक्ततम आधार है. जीवन और मृत्यु कि पीड़ाओं में सबसे बड़ी सान्तवना है.

डा. एनीबेसेंट

‘भारतीय उपनिषद ज्ञान मानव चेतना की सर्वोच्च देन है.’



बेबर

‘भारतीय उपनिषद ईश्वरीय ज्ञान के महानतम ग्रन्थ हैं. इनसे सच्ची आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है.विश्व-साहित्य की ये अमूल्य धरोहर है.

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सोर्स: पंचास्तिकायसमयसार, सैक्रेड बुक्स ऑफ़ द ईस्ट,  Paul Deussen’s The Philosophy of the Upanishads,भारतीय दर्शन. लेखक डॉ. राधाकृष्णन ,Dogmas of Budhism

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Post By Shweta