Post Image

आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत: वात, पित्त और कफ (प्रथम सीरीज)

आपने पुराने ज़माने के लोगों या अपने दादा-दादी और नाना-नानी को कहते सुना होगा कि पुराने ज़माने में लोग कम बीमार पड़ते थे. इसका मुख्य कारण है उनका संतुलती आहार.लेकिन आज भी कई लोग संतुलित आहार लेते हैं लेकिन फिर भी अक्सर बीमार हो जाते हैं. चलिए आज आपको लिए चलते हैं प्राचीन काल के स्वास्थ्य रहस्य की ओर. इस लेख के माध्यम से आज आपको जानकारी देंगे आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत के बारे में.



क्या है त्रिदोष सिद्धांत

त्रिदोष सिद्धान्त आयुर्वेद चिकित्सा-शास्त्र का आधारस्तंभ है।आयुर्वेद के ज्ञाता महर्षि वाग्भट्ट जी का त्रिदोष सिद्धांत स्वास्थ्य की रक्षा व रोगों का निर्मूलन करता है.

विसर्गादान विक्षेपैः सोमसूर्यऽनिलास्तथा।
धारयन्ति जगद् देहं कफपित्ताऽनिलास्तथा।।

जिस प्रकार चन्द्रमा अपने बलदायक, सूर्य परिवर्तक और वायु गतिदायक क्रियाओं के द्वारा समग्र संसार को धारण करते हैं, उसी प्रकार कफ, पित्त और वात – यह त्रिदोष समस्त शरीर को धारण करते हैं। संपूर्ण शरीर में व्याप्त त्रिदोष शरीर की स्थिति, परिवर्तन और गति के आधार हैं.

शरीर की सभी गतियाँ (क्रियाएँ) वात के कारण, परिवर्तन (रूपांतरण) पित्त के कारण व श्लेष्ण (गठन) कफ के कारण होता है. जब ये अपने स्वाभाविक रूप (सम अवस्था) में होते हैं, तब शरीर की वृद्धि, बल, वर्ण, प्रसन्नता उत्पन्न करते हैं परंतु जब इनमें से कोई विकृत (विषम) होता है तब शेष दोषों, धातुओं व मलों को दूषित कर रोगों को उत्पन्न होता है.

दूषयन्ति इति दोषाः।

शरीर के अन्य घटकों को दूषित कर रोग उत्पन्न करने के कारण इन्हें दोष कहा जाता है.

सम्पूर्ण शरीर में रहते हैं त्रिदोष

आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत: वात, पित्त और कफतीनों दोष संपूर्ण शरीर में व्याप्त रहते हैं फिर भी नाभि से निचले भाग में वायु का, नाभि से हृदय तक के मध्य भाग में पित्त का व हृदय के ऊपरी भाग में कफ का आश्रयस्थान है. उस ऋतु, दिन, रात्रि व भोजन के अनुसार इनकी स्वाभाविक ही वृद्धि का शमन होता है. बाल्यावस्था में कफ, युवावस्था में पित्त व वृद्धावस्था में वायु स्वयं ही बढ़ जाते हैं.

दिन के तीन भागों में से प्रथम भाग (प्रातः 6 से 10) में कफ, द्वितीय भाग (10 से 2) में पित्त व तृतिया भाग (2 से 6) में वायु की वृद्धि होती है. वैसे ही रात्रि के प्रथम भाग (शाम 6 से 10) में कफ, मध्यरात्रि (10 से 2) में पित्त व अंतिम भाग (2 से 6) में वायु की वृद्धि होती है.

भोजन के तुरंत बाद कफ की, पाचनकाल में पित्त की व पचने के बाद वायु की वृद्धि होती है.

वसंत ऋतु (फाल्गुन-चैत्र) में कफ का, शरद (भाद्रपद-आश्विन) में पित्त व वर्षा (आषाढ़-श्रावण) में वायु का प्रकोप काल के प्रभाव से हो जाता है.

वायु की अधिकता से जठराग्नि विषम (अनिश्चित समय पर कभी ज्यादा तो कभी कम भूख लगना), पित्त की अधिकता से तीव्र व कफ की अधिकता से मंद हो जाती है.

तो चलिए आज के इस लेख की पहली सीरीज में त्रिदोष सिद्धांत के पहले दोष वात के कारण,लक्षण और उपाय के बारे में जानते हैं-

यह भी पढ़ें-गीता और आहार: गीता के अनुसार कैसा होना चाहिए मनुष्य का भोजन

वात दोष क्या है

“वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है वात दोष . वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है. वात की शुष्क, शीत, प्रकाश के गुणों की विशेषता है. यह आपके आंतों के माध्यम से आपके दिमाग, श्वास, रक्त प्रवाह, दिल के कार्य और विषाक्त के बनने की क्षमता को भी नियंत्रित करता है.

वात दोष संतुलन से बाहर होने पर, भय, चिंता, अकेलापन और थकावट का कारण बनता है. यह शारीरिक और ऊर्जावान कमी दोनों को जन्म दे सकता है, उचित संचार को बाधित कर सकता है, और शरीर में सभी प्रकार के असामान्य गतिविधियों का कारण बन सकता है.

वात दोष बढ़ने के कारण

यह हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से बिगड़ जाता है.तो चलिए जानते है, वात के बढ़ने के प्रमुख कारण क्या है-
अति परिश्रम करना
ज़्यादा व्यायाम करना
अधिक बोलना
अधिक पैदल चलना अथवा वाहनों में घूमना
दिन में सोना और रात्रि में देर तक जगना
भार उठाना
अति उपवास करना

वात दोष के मुख्य लक्षण

अगर आपको वात के सही लक्षणों के बारे में पता हो तो आप आसानी से इसका पता लगा सकते हैं और समय पर इससे छुटकारा पा सकते हैं. नीचे लिखे वात दोष के मुख्य लक्षण है-

क़ब्ज़ की समस्या
पानी की कमी
सूखी रूखी त्वचा होना
शरीर में दर्द रहना
मुख में खट्टे व कसैला स्वाद आना
कमज़ोरी, थकान महसूस करना
अंगो का कंपन होना
ज़्यादा ठण्ड लगना/ गर्माहट की चाह
मांसपेशियों में थकान रहना
वजन कम होना
मरोड़ का एहसास होना
ऐठन

 कैसे रखें संतुलित

आइये जानते हैं किस तरह से आप वात दोष को संतुलित रख सकते है। वात को संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे. आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है. वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं.

वात दोष को संतुलित रखने के उपाय

सभी डेयरी उत्पाद वात को शांत करते हैं. दूध को हमेशा पीने से पहले उबाल लें और इसे गर्म करके पीएं. पूर्ण भोजन के साथ दूध ना पिएं.

वात दोष को ठीक करने के लिए त्रिफला भी आपकी मदद कर सकता है और इसे काफी प्रभावी उपचार माना गया है. त्रिफला पेट की अन्य बीमारियों को ठीक करने में सहायक है.

आप त्रिफला चाय या फिर सुबह- सुबह खाली पेट ताजे पानी के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन कर सकते हैं.

वात को संतुलित करने के लिए आपको वसा लेना चाहिए. अपने भोजन में घी, तेल और फैट वाली चीजों को शामिल करें.

वात को संतुलित करने के लिए चावल और गेहूं का सेवन करे. जौ, मक्का, बाजरा, एक प्रकार का अनाज, राई और जई का सेवन कम करें.

फलों में आप संतरे, केला, एवोकाडो, अंगूर, चेरी, आड़ू, खरबूजे, जामुन, आलूबुखारा, अनानास, आम और पपीते का सेवन कर सकते है. कुछ फल जैसे सेब, नाशपाती, अनार, क्रैनबेरी, और सूखे मेवे कम खाएं.

चुकंदर, खीरे, गाजर, और शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें.

कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी,ग्रीन टी,फलों के जूस आदि ना पियें।

सुबह एक चुटकी जायफल पाउडर को शहद में मिलाकर खाएं. वात को संतुलित करने के लिए यह सबसे अच्छा उपाय है.

अपने रोज़मर्रा के खाने में लहसुन, अदरक और जायफल को शामिल करने से आप अपने वात दोष को संतुलित कर सकते हैं.



वात को संतुलित करने के लिए रोज़ाना गुड़ का सेवन करें.

[video_ads]
[video_ads2]
You can send your stories/happenings here:info@religionworld.in

Post By Shweta