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एक सूफी संत से जुड़ा है स्वर्ण मंदिर का रोमांचक इतिहास

स्वर्ण मंदिर जिसे दरबार साहिब या श्री हरमंदिर साहिब भी कहा जाता है पंजाब के अमृतसर में स्थित गुरुद्वारा है। यह पवित्र गुरुद्वारा और सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।



स्वर्ण मंदिर का इतिहास
अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु राम दास ने स्वय़ं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरूद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर अथवा गोल्डन टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है।

यूँ तो यह गुरुद्वारा है, लेकिन इसके नाम में मंदिर शब्द का जुड़ना यह स्पष्ट करता है कि भारत में सभी धर्मों को एक समान माना जाता है। इतना ही नहीं,श्री हरमिंदर साहिब की नींव एक मुसलमान ने ही रखी थी।

किसने बनाया श्री हरमिंदर साहिब
इतिहास के मुताबिक सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी ने लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से दिसंबर, 1588 में गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी।

गोल्डन टेम्पल से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

भगवान बुद्ध ने पवित्र स्थल पर ध्यान लगाया

कहा जाता हैं कि भगवान बुद्ध काफी समय तक स्वर्ण मंदिर के पवित्र स्थल पर रहे। उस समय में, यह स्थान घने जंगलों से घिरी झील थी। बुद्ध ने इस स्थल को साधुओं और संतों के लिए एक आदर्श ध्यान स्थल घोषित किया।

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महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पुनर्निर्माण

इस गुरूद्वारे का नाम स्वर्ण मंदिर इस पर लगी हुयी सोने बाहरी परत के नाम पर रखा गया था जो पूरे मंदिर को कवर करती है। गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद, इस गुरुद्वारे पर इस्लामी बादशाहों द्वारा लगातार हमला किया गया और नष्ट कर दिया गया।

वर्ष 1762 में, यह धार्मिक विरासत बारूद से पूरी तरह से उड़ा दी गई थी। इसके बाद, महाराजा रणजीत सिंह, ने संगमरमर के साथ समृद्ध विरासत का पुनर्निर्माण किया और इसे सोने से सजाया। उन्होंने पूरे परिसर को संभाला और इसके संचालन और रखरखाव की देखभाल के लिए देसा सिंह को नियुक्त किया।

बाबा दीप सिंह ने स्वर्ण मंदिर के लिए शहीद हुए
बाबा दीप सिंह भारत के इतिहास में सबसे सम्मानित शहीदों में से एक हैं। उन्होंने श्री हरमंदिर साहिब में अपनी अंतिम सांस लेने की कसम खाई। 1757 में, जब अमृतसर पर जहान खान द्वारा आक्रमण किया गया था, तो बाबा दीप सिंह ने पांच हजार लोगों के साथ लड़ाई लड़ी थी, और शहीद हुए।



पुनर्निर्माण में लगे 4 साल
1990 के दशक में प्रतिष्ठित स्वर्ण मंदिर को पांच सौ किलोग्राम शुद्ध सोने के साथ पुनर्निर्मित किया गया था। 24 कैरट सोने का उपयोग उस प्रक्रिया के दौरान किया गया था। सोने का मूल्य आज के समय में 130 करोड़ रुपये से अधिक है।

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Post By Shweta