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उत्पन्ना एकादशी – व्रत कथा, पूजा विधि और मुहूर्त

उत्पन्ना एकादशी – व्रत कथा, पूजा विधि और मुहूर्त

हम सभी एकादशी व्रत कथा व महत्व के बारे में जानते हैं। हर मास की कृष्ण व शुक्ल पक्ष को मिलाकर दो एकादशियां आती हैं। यह भी सभी जानते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन यह बहुत कम जानते हैं कि एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। एकादशी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा। इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व माना जाता है इसलिये यह जानकारी होना जरूरी है कि एकादशी का जन्म कैसे और क्यों हुआ??
उत्पन्ना एकादशी
एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व माना गया है। इन सभी में उत्पन्ना एकादशी का अपना अलग ही महत्व है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस दिन उनकी पूजा विधि विधान से की जाती है। इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन देवी एकादशी उत्पन्न हुई थी। यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं लेकिन यह देवी भगवान विष्णु द्वारा उत्पन्न हुई थीं, इसलिए उनका नाम उत्पन्ना पड़ा था। तभी से एकादशी व्रत शुरु हुआ था। इस एकादशी के पीछे एक पौराणिक कथा बताई गई है, जिसे व्रत के बाद पढ़ने से ही व्रत पूर्ण माना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

वैसे तो प्रत्येक वर्ष के बारह महीनों में 24 एकादशियां आती हैं लेकिन मलमास या कहें अधिकमास को मिलाकर इनकी संख्या 26 भी हो जाती है। सबसे पहली एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को माना जाता हैं। चूंकि इस दिन एकादशी प्रकट हुई थी इसलिये यह दिन उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। एकादशी के जन्म लेने की कथा कुछ इस प्रकार है।

उतपन्ना एकादशी की कथा

सूतजी कहने लगे- हे ऋषियों! इस व्रत का वृत्तांत और उत्पत्ति प्राचीन काल में भगवान कृष्ण ने अपने परम भक्त युधिष्ठिर से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूं।

एक समय यु‍धिष्ठिर ने भगवान से पूछा था कि एकादशी व्रत किस विधि से किया जाता है और उसका क्या फल प्राप्त होता है? उपवास के दिन जो क्रिया की जाती है, आप कृपा करके मुझसे कहिए। यह वचन सुनकर श्री कृष्ण कहने लगे- हे युधिष्ठिर! मैं तुमसे एकादशी के व्रत का माहात्म्य कहता हूं। सुनो।

सर्वप्रथम हेमंत ऋ‍तु में मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से इस व्रत को प्रारंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दातून करें ताकि अन्न का अंश मुंह में रह न जाए। रात्रि को भोजन कदापि न करें, न अधिक बोलें।

एकादशी के दिन प्रात: 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। व्रत करने वाला चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, निंदक, मिथ्याभाषी तथा किसी भी प्रकार के पापी से बात न करें।

स्नान के पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि 16 चीजों से भगवान का पूजन करें और रात को दीप दान करें। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा मांगनी चाहिए। धर्मात्मा पुरुषों को कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की एकादशियों को समान समझना चाहिए।

जो मनुष्य ऊपर लिखी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी व्रत के 16वें भाग के भी समान नहीं है। व्यतिपात के दिन दान देने का लाख गुना फल होता है। संक्रांति से 4 लाख गुना तथा सूर्य-चंद्र ग्रहण में स्नान-दान से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य एकादशी के दिन व्रत करने से मिलता है।

अश्वमेध यज्ञ करने से 100 गुना तथा 1 लाख तपस्वियों को 60 वर्ष तक भोजन कराने से 10 गुना, 10 ब्राह्मणों अथवा 100 ब्रह्मचारियों को भोजन कराने से हजार गुना पुण्य भूमि दान करने से होता है। उससे हजार गुना पुण्य कन्या दान से प्राप्त होता है। इससे भी 10 गुना पुण्य विद्या दान करने से होता है। विद्या दान से 10 गुना पुण्य भूखे को भोजन कराने से होता है। अन्न दान के समान इस संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं जिससे देवता और पितर दोनों तृप्त होते हों, परंतु एकादशी के व्रत का पुण्य सबसे अधिक होता है।

हजार यज्ञों से भी अधिक इसका फल होता है। इस व्रत का प्रभाव देवताओं को भी दुर्लभ है। रात्रि को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल मिलता है और दिन में एक बार भोजन करने वाले को भी आधा ही फल प्राप्त होता है जबकि निर्जल व्रत रखने वाले का महात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते।

कब करें एकादशी उपवास की शुरुआत

जो व्रती एकादशी के उपवास को नहीं रखते हैं और इस उपवास को लगातार रखने का मन बना रहे हैं तो उन्हें मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी से इसका आरंभ करना चाहिये क्योंकि सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में इसी एकादशी से इस व्रत का प्रारंभ हुआ माना जाता है। 2018 में उत्पन्ना एकादशी का व्रत 03 दिसंबर को है।

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उत्पन्ना एकादशी व्रत व पूजा विधि

एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि को ही आरंभ हो जाती है। उपवास का आरंभ दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है। इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात अच्छे से दातुन कुल्ला करना चाहिये ताकि अन्न का अंश मुंह में शेष न रहे। इसके बाद रात्रि को बिल्कुल भी भोजन न करें। अधिक बोलकर अपनी ऊर्जा को भी व्यर्थ न करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि कर स्वच्छ हो लें। भगवान का पूजन करें, व्रत कथा सुनें। दिन भर व्रती को बुरे कर्म करने वाले पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। रात्रि में भजन-कीर्तन करें। जाने-अंजाने हुई गलतियों के लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगे। द्वादशी के दिन प्रात:काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये। इस विधि से किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।

उत्पन्ना एकादशी तिथि व मुहूर्त

एकादशी व्रत तिथि – 03 दिसंबर 2018 (सोमवार)

पारण का समय  – 07:02 से 09:06 बजे तक (4 दिसंबर 2018)

पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त 

12:19 बजे (4 दिसंबर 2018)

एकादशी तिथि प्रारंभ – 14:00 बजे से (2 दिसंबर 2018))

एकादशी तिथि समाप्त – 12:59 बजे (3 दिसंबर 2018))

विशेष ध्यान रखें

चूंकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार तिथि सूर्योदय के पश्चात मानी जाती है इसलिये एकादशी तिथि का उपवास 3 दिसंबर को रखा जायेगा जिसका पारण 4 दिसंबर को होगा।

एकादशी की कथा

सतयुग में एक चंद्रावती नगरी थी। इस नगर में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज किया करते थे। उनका एक पुत्र था, जिसका नाम था मुर। वह बलशाली दैत्य था और अपनी ताकत से देवताओं को परेशान कर रखा था। मुर से परेशान होकर सभी देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे। सभी देवता गण ने अपनी व्यथा सुनाई और भगवान शंकर से मदद करने की गुहार लगाई। भगवान शंकर ने कहा कि इस समस्या का हल भगवान विष्णु के पास है। यह सुनकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। देवताओं ने अपनी व्यथा सुनाई। सारी कहानी सुनने के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि मुर की हार जरूर होगी। इसके बाद हजारों वर्षों तक मुर और भगवान विष्णु के बीच युद्ध होता रहा। लेकिन मुर ने हार नहीं मानी।

भगवान विष्णु को युद्ध के बीच में ही निद्रा आने लगी तो वे बद्रीकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में शयन के लिए चले गए। उनके पीछे-पीछे मुर भी गुफा में चला गया। भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर वार करने के लिये मुर ने जैसे ही हथियार उठाये श्री हरि से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई जिसने मुर के साथ युद्ध किया। सुंदरी के प्रहार से मुर मूर्छित हो गया, जिसके बाद उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया। इस प्रकार मुर का अंत हुआ। जब भगवान विष्णु नींद से जागे तो सुंदरी को देखकर वे हैरान हो गए। जिस दिन वह प्रकट हुई वह दिन मार्गशीर्ष मास की एकादशी का दिन था इसलिये भगवान विष्णु ने इनका नाम एकादशी रखा और उससे वरदान मांगने को कहा।

इस पर एकादशी ने कहा कि हे श्री हरि, आपकी माया अपरंपार है। मैं आपसे यही मांगना चाहती हूं कि एकादशी के दिन जो भी जातक व्रत रखें, उसके समस्त पापों का नाश हो जाए। इस पर भगवान विष्णु ने एकादशी को वरदान दिया कि आज से प्रत्येक मास की एकादशी का जो भी उपवास रखेगा उसके समस्त पापों का नाश होगा और विष्णुलोक में स्थान मिलेगा। भगवान श्री हरि ने कहा कि सभी व्रतों में एकादशी का व्रत मुझे सबसे प्रिय होगा। तब से आज तक एकादशी व्रत किया जाता रहा है।

  • पं. विशाल दयानंद शास्त्री
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