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शैव संप्रदाय क्या है, इसका इतिहास क्या है

शैव संप्रदाय क्या है, इसका इतिहास क्या है

शैव संप्रदाय हिंदू धर्म की एक प्रमुख शाखा है, जिसमें भगवान शिव को सर्वोच्च ईश्वर माना जाता है। इस संप्रदाय के अनुयायी शिव को सृष्टि के रचयिता, संहारक और पुनः निर्माण करने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं। शैव संप्रदाय के लोग शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में करते हैं, जो उनके निराकार और अखंड रूप का प्रतीक है। इस परंपरा में ध्यान, योग, तपस्या और भक्ति को विशेष स्थान प्राप्त है, क्योंकि शिव को ‘आदियोगी’ और ‘महातपस्वी’ माना जाता है। सोमवार का दिन शिव भक्ति के लिए विशेष होता है और महाशिवरात्रि शैव संप्रदाय का प्रमुख पर्व है। शैव परंपरा में कई शाखाएँ हैं जैसे कश्मीर शैवदर्शन, लिंगायत, नाथ संप्रदाय, और तमिल शैव सिद्धांत, जो शिव को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझाते हैं। शैव संप्रदाय न केवल एक पूजा पद्धति है, बल्कि यह एक गहन आध्यात्मिक जीवनदर्शन भी है, जो शिव को सच्चिदानंद स्वरूप – अर्थात् सत्य, चैतन्य और आनंद – के रूप में स्वीकार करता है।

शैव संप्रदाय का इतिहास (History of Shaiva Sampradaya)

वैदिक युग (1500–500 ई.पू.)

  • शिव की उपासना के प्रारंभिक प्रमाण रुद्र के रूप में ऋग्वेद में मिलते हैं।

  • रुद्र को एक भयावह लेकिन सहायक देवता के रूप में वर्णित किया गया है। बाद में यह रूप विकसित होकर शिव के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

उपनिषद और पुराण काल (500 ई.पू.–500 ई.)

  • श्वेताश्वतर उपनिषद में शिव को ब्रह्म (परम सत्ता) के रूप में दर्शाया गया है।

  • शैव आगम और पुराणों (विशेषकर शिव पुराण, लिंग पुराण) में भगवान शिव की लीलाओं, स्वरूपों, भक्ति मार्ग, और तांत्रिक विधियों का वर्णन मिलता है।

गुप्त काल और मध्यकाल (400–1200 ई.)

  • यह काल शैव संप्रदाय के उत्कर्ष का समय था।

  • कश्मीर शैवदर्शन, नाथ संप्रदाय, लिंगायत, और तमिल शैव भक्ति आंदोलन (नायनार संतों के माध्यम से) का उदय हुआ।

  • इस समय शैव मंदिर वास्तुकला, मूर्तिकला और तांत्रिक साहित्य ने भी खूब प्रगति की।

भक्ति आंदोलन काल (1200–1700 ई.)

  • दक्षिण भारत में नायनार संतों और उत्तर भारत में गोरखनाथ, मत्स्येंद्रनाथ जैसे संतों ने शैव भक्ति को जन-जन तक पहुँचाया।

  • इस काल में शैव संतों ने सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध आवाज़ उठाई और भक्ति को सर्वसुलभ बनाया।

आधुनिक काल (1700–वर्तमान)

  • वर्तमान में शैव संप्रदाय भारत सहित नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया (बालीनिज़ हिंदू धर्म), और पश्चिमी देशों में भी लोकप्रिय है।

  • कई योग गुरु और आध्यात्मिक संस्थाएँ (जैसे ईशा फाउंडेशन, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट आदि) इसके प्रचार-प्रसार में लगे हैं।

मुख्य शाखाएँ (Major Branches of Shaivism)

कश्मीर शैवदर्शन (Kashmir Shaivism)

  • अद्वैत पर आधारित यह दर्शन शिव को चेतना का परम स्वरूप मानता है।

  • प्रमुख ग्रंथ: स्पंदकारिका, शिव सूत्र, तंत्रालोक

  • प्रमुख आचार्य: आचार्य अभिनवगुप्त

लिंगायत या वीरशैव संप्रदाय (Lingayat / Veerashaiva)

  • कर्नाटक में उत्पन्न; शिव को ईश्वर लिंग के रूप में पूजते हैं।

  • सामाजिक सुधार और जाति-विरोधी आंदोलन से जुड़ा संप्रदाय।

  • संस्थापक: बसवेश्वर

नाथ संप्रदाय

  • योग और तंत्र पर आधारित।

  • गुरु गोरखनाथ इसके प्रमुख गुरु हैं।

  • हठयोग की परंपरा यहीं से विकसित हुई।

तमिल शैव परंपरा (Shaiva Siddhanta)

  • तमिलनाडु में प्रचलित; नायनार संतों द्वारा प्रचारित।

  • भक्ति और कर्म को विशेष महत्व।

  • प्रमुख ग्रंथ: तिरुमुरई

पाशुपत संप्रदाय

  • शैव संप्रदाय की सबसे प्राचीन शाखा।

  • पाशुपत व्रत, तप और योग पर आधारित।

शैव संप्रदाय की विशेषताएँ (Key Features)

विशेषताविवरण
ईश्वरभगवान शिव – संहारक और पुनर्निर्माता
मुख्य प्रतीकशिवलिंग, त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष
प्रमुख साधनाएँध्यान, तंत्र, योग, भक्ति
मुख्य त्योहारमहाशिवरात्रि, श्रावण मास, सोमवार व्रत
प्रमुख तीर्थकाशी, केदारनाथ, सोमनाथ, अमरनाथ, चिदंबरम

शैव संप्रदाय केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह योग, दर्शन, तंत्र, और भक्ति का एक समन्वय है। इसकी विविध शाखाएँ इसे अत्यंत समृद्ध और जीवंत बनाती हैं। यह आज भी लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

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