Seeta Navami 2025– माता सीता के जन्मोत्सव का पर्व
सीता नवमी को जानकी नवमी भी कहा जाता है। यह पर्व माता सीता जी के प्राकट्य दिवस (जन्मदिवस) के रूप में मनाया जाता है। माता सीता, राजा जनक की पुत्री और भगवान श्रीराम की पत्नी थीं। यह दिन विशेष रूप से वैष्णव भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है।
तिथि और समय
पर्व का नाम: सीता नवमी (जानकी नवमी)
तारीख: शुक्रवार, 2 मई 2025
तिथि: वैशाख माह, शुक्ल पक्ष की नवमी
नवमी तिथि आरंभ: 1 मई 2025, दोपहर 01:49 बजे
नवमी तिथि समाप्त: 2 मई 2025, दोपहर 11:32 बजे
👉 पूजा करने का सर्वोत्तम समय: 2 मई को प्रातःकाल से नवमी समाप्ति तक (11:30 बजे तक)
माता सीता – धरती से प्रकट हुई पुण्य की प्रतिमा
माता सीता केवल एक देवी नहीं, बल्कि त्याग, सहनशीलता, नारी शक्ति और आदर्श गृहिणी की जीती-जागती प्रतिमा हैं। उनका जन्म धरती माता की कोख से हुआ — यह दर्शाता है कि वे पवित्रता और धैर्य की मूर्ति हैं।
राजा जनक ने जब मिथिला भूमि को हल से जोतते हुए उन्हें पाया, तब धरती फटी और एक दिव्य कन्या प्रकट हुई। वे बिना जन्म लिए पृथ्वी से उत्पन्न हुईं — इसलिए उनका नाम पड़ा सीता, और वे ‘भूदेवी’ की संतान मानी जाती हैं।
सीता नवमी व्रत का महत्व
विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र, सुखद वैवाहिक जीवन और संतान सुख के लिए यह व्रत करती हैं।
यह दिन नारी शक्ति, त्याग, आदर्श और मर्यादा का स्मरण कराता है।
भगवान राम और माता सीता के आदर्श जीवन से प्रेरणा लेकर परिवार में स्नेह, धैर्य और धर्म की भावना प्रबल होती है।
पूजन विधि – श्रद्धा से संपन्न करें माता सीता की आराधना
प्रातः काल की तैयारी:
सूर्योदय से पूर्व उठें, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
व्रत का संकल्प लें — मन, वचन और कर्म से पवित्र रहकर माता सीता की भक्ति करें।
पूजा व्यवस्था:
पूजा स्थल पर माता सीता और श्रीराम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पूजन सामग्री में रखें: फूल, अक्षत, चंदन, रोली, दीपक, धूपबत्ती, फल, मिठाई, तुलसी-दल, कलश आदि।
“ॐ श्री जानकी वल्लभाय नमः” मंत्र से पूजन करें।
व्रत कथा वाचन:
सीता माता के प्राकट्य की पौराणिक कथा पढ़ें या सुनें।
रामचरितमानस के बालकाण्ड से माता सीता के जन्म और विवाह प्रसंग का पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।
फलाहार और भक्ति:
व्रतधारी दिनभर फलाहार करते हैं या निर्जल व्रत रखते हैं।
दिनभर राम नाम जप, भजन-कीर्तन और कथा श्रवण करें।
संक्षिप्त व्रत कथा – पावन जन्म की गाथा
राजा जनक की भूमि पर भीषण अकाल पड़ा था। उन्होंने यज्ञ आरंभ किया और स्वयं हल चलाने लगे। तभी भूमि फटी और एक कन्या उत्पन्न हुई। उन्होंने उसे पालन-पोषण किया और नाम रखा – सीता।
सीता जी का विवाह शिवधनुष तोड़ने वाले भगवान श्रीराम से हुआ। उनका जीवन त्याग, तपस्या और मर्यादा की मिसाल है।
भक्ति भाव से जुड़ी बातें
माता सीता की पूजा में शालीनता, पवित्रता और विनम्रता का विशेष ध्यान रखें।
घर में यदि स्त्रियाँ यह व्रत करें, तो सौभाग्य और संतति सुख में वृद्धि होती है।
इस दिन कन्याओं को भोजन कराने से पुण्य और माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विशेष सुझाव
इस दिन ‘सीता राम विवाह’ का अभिनय या पाठ परिवार सहित करें।
घर में दीपमाला सजाएं और श्रीराम-सीता के भजन गाएं।
अपने मन को शांति, समर्पण और धर्म में स्थिर करें।
रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो