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पुरूषोत्तम मास या अधिकमास क्या होता है ? वैज्ञानिक व्याख्या – पुण्डरीकजी महाराज

पुरूषोत्तम मास या अधिकमास क्या होता है ?

पुरूषोत्तम मास या अधिकमास हिंदू धर्म की एक पावन महीना है। हिंदू महीनों में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह आता है है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। पुरुषोत्तम मास 2020 में 18 September से 16 October तक है। हमारी हिंदू संस्कृति में इस अधिक मास की बड़ी महिमा है। और इसके पीछे एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक कैलकुलेशन भी है।

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कैलेंडर का इतिहास और अधिकमास

दो प्रकार का कैलेंडर होता है। एक है सूर्य कैलेंडर या सोलर कैलेंडर। सोलर कैलेंडर बनता है, पृथ्वी जितने दिन में सूर्य के चारों तरफ घूम जाती है। जो कि प्रसिद्ध है 365 days का लगभग माना जाता है। पर एक है ल्युनर कैलेंडर क्योंकि चंद्रमा भी तो पृथ्वी की चारों तरफ उपस्थित रहता है। वो पृथ्वी के चारों तरफ घूमता है और उसके साथ साथ वो सूर्य का भी चक्कर लगाता है। तो जैसे सोलर कैलेंडर में 30 या 31 दिन होते है। हालांकि इसमें february के leap year को छोड़ दिया जाए, तो 29 दिन है। दुनिया मे इस समय जो कैलेंडर प्रयोग होता है वो रोमन कैलेंडर है। और वो पहले पुराने रोमन्स ने बनाया, फिर उसमें जूलियस सीजर ने थोड़ा अमेंडमेंट किया। जिसका नाम जुलियस कैलेंडर हुआ।



Lunar Calendar का गणित

जो ल्युनर कैलेंडर (Lunar Calendar ) है, ल्युनर ईयर (Lunar Year) जिसको बोलते है। वो 365 दिन का नहीं होता। बल्कि 354.3 दिन का होता है। 354.3 days का। उसका कारण ये है कि एक महीने में 29.5 days लगते है। चंद्रमा को सम्पूर्ण पृथ्वी का राउंड घूमने में 29.5 दिन लगते है। वैसे प्रसिद्ध है 27.3 दिन । पर अगर आप नासा की साइट पर जाकर देखेंगे तो न्यू मून से न्यू मून तक कैलकुलेशन जो होता है वो 29.5 दिन का माना जाता है। इस प्रकार से 354.3 दिन का फर्क पड़ता है।

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हर साल 11 दिन 1 घंटा 31 सेकंड और 31 मिनट 12 सेकेंड इतना फर्क प्रत्येक साल में आकर पर पड़ता है। तो वो ल्युनर कैलेंडर और सोलर कैलेंडर के gap को पूरा करने के लिए 3 वर्ष के बाद 32 महीने 16 दिन और 8 घंटे, 1 घड़ी 24 मिनट की होती है। तो 3 घंटा 20 मिनट। मतलब 32 महीना 16 दिन 3 घंटा 20 मिनट में अधिक मास को उसमें जोड़ा जाता है। जो कि 11 दिन हर वर्ष का अंतराल पर तैयार होता है।

पितृ पक्ष और नवरात्रि के बीच अधिकमास

इस बार का अधिकमास पितृ पक्ष और नवरात्रि के ठीक बीच में आया है। जो की ऐसा सुना गया कि 165 वर्ष के बाद में ऐसी परिस्थिति आती है जब पितृ पक्ष और नवरात्रि के बीच मे अधिक मास आता है। तो इसके पीछे बहुत बड़ा विज्ञान उपस्थित है। और भी इसके पीछे लंबी व्याख्या होंगी। तो ऐसे ल्युनेर month बनता है। Lunar Calendar के हिसा से 29.53059 दिन का का एक महीना होता है। इस प्रकार जो साल है वो 354.36708 दिन का होता है। तो इस प्रकार से अधिक मास आता है।



सनातन संस्कृति का ज्ञान

सनातन संस्कृति जब पूरी दुनिया ये तक नहीं जानती थी कि धरती गोल है, जब बहुत सारे लोग केवल व्हील बनाने में लग रहे थे और पत्थरों को घिसकर आग निकालने में लग रहे थे। आज हजारों लाखों साल की सभ्यता से इस देश मे इस astronomical phenomena को समझा गया। हजारों साल से पुरुषोत्तम मास की परंपरा को प्रारंभ किया गया। इसका नाम मल मास भी है। पर भगवान श्री हरि ने इसे स्वीकार कर लिया, इसलिए इसका नाम पुरुषोत्तम मास हुआ।

अधिकमास या पुरूषोत्तम मास की पौराणिक कथा

ऐसी भी कथा आती है हिरण्यकशपु ने वरदान मांगा था कि मैं 12 महीनों में कभी भी नहीं मरूँ। तो श्री ब्रह्मा जी ने एक और नए मास की रचना कर दी हिरण्यकशपु के लिए। इसलिए कई लोग इसको मल मास कहते है। जिस मास में श्री नरसिंह भगवान पुरुषोत्तम भगवान प्रगट हुए। और उसका संहार किया। इसलिए इसका नाम पुरुषोत्तम पड़ गया।

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तो कर्म कांड की दृष्टि से मल मास है जिसमे शुभ कृत्य नहीं होते। पर भक्ति की दृष्टि से पुरुषोत्तम मास है जिसमें प्रह्लाद के द्वारा वर्णित नवधा भक्ति का अगर प्रयोग किया जाए। तो हम सबकी भी जड़ता रूपी स्तम्भ को विदर्न करके नरहरि प्रगट होंगे और हम सबकी भक्ति का संचार करेंगे।

सनातन धर्म का आधार

सनातन धर्म में परंपरा से चली आ रही प्रत्येक वस्तु का आधार विश्वास भर नहीं होता है। There always a science behind it. Even for this whole calculation of adhik maas, there is a whole lunar calender. कितना महीना लेता है चंद्रमा, आज से लाखों साल पहले हमारे ऋषियों ने ये खोज लिया था। इसलिए इस देश मे बहुत जान है। यहाँ का धर्म ही यहाँ का आधार है। उसके इस वैज्ञानिक तत्वों को आप समझिए। बल्कि मैं देश के युवा से प्रार्थना करूँगा।

मेरा सहयोग करे और हम सब आप मिलकर इस भारतीय संस्कृति में विद्यमान यहाँ की वैज्ञानिक चेतना को समझे। सारा विश्व हमारी धार्मिक चेतना के सामने झुक सकता है। आज हर परिस्थिति में हम developing है, पर अगर इस देश से प्रभु पाद जैसा, स्वामी विवेकानंद जैसा बड़े बड़े आदर्श धर्म गुरु जाते है। तो पूरी दुनिया उनके चरणों मे बैठ जाती है। ये यहाँ की आध्यात्मिक ऊर्जा है।

लेख – श्री पुण्डरीक जी महाराज, मन्माध्यगौड़ेश्वर आचार्य 

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