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श्री राम मन्दिर शिलान्यास के लिये 5 अगस्त उत्तम है : पण्डित गङ्गाधर पाठक

श्री राम मन्दिर शिलान्यास के लिये 5 अगस्त उत्तम है : पण्डित गङ्गाधर पाठक

कुछ लोगों ने श्रीराम मन्दिर के निमित्त 5.08.2020 को श्रीअयोध्या में होने वाले शिलान्यास मुहूर्त को अशुद्ध बता दिया और फलतः विश्व के लिये अनिष्ट की घोषणा कर दी, यह अशोभनीय है। शिलान्यास हेतु 5 अगस्त के मुहूर्त में कोई शास्त्रीय बाधा नहीं है। सम्पूर्ण विश्व के कपटरहित आस्तिक समाज 5 अगस्त को होने वाले शिलान्यासमुहूर्त से आह्लादित हैं। कुछ लोग किसी अदृश्य कारण से दुःखी हैं तो वे भी प्रसन्न हो जायँ।

जहाँ गृहाद्यारम्भ के लिये भाद्रपद को निषिद्ध बताया है, उसके समाधानार्थ ‘वाचस्पत्यम्’ ने गृह शब्द की व्याख्या में लिखा है कि- ‘‘यस्तुु गृहाद्यारम्भे भाद्रपदनिषेध उक्तः स कन्यार्कविषय:’’ अर्थात् गृहादि के आरम्भ में जो भाद्रपद का निषेध है, वह भाद्रपद में कन्या राशि में सूर्य के रहने पर ही है, न कि कर्क के सूर्य में। वहीं पर विषयान्तर से लिखा है- ‘‘खनेच्च सौरमानेन व्यत्यये चाशुभं भवेत्’’ सौरमान से ही नींव की खात खननी चाहिये; अन्यथा अशुभ होता है।

पुनः ‘‘कर्कटे शुभदं प्रोक्तम्’’ तो वास्त्वारम्भ के लिये प्रसिद्ध ही है।

मासग्रहण के लिये ‘वाचस्पत्यम्’ ने गृह शब्द के अन्तर्गत ही स्पष्ट शब्दों में लिखा है- ‘‘अत्र सौराणां चान्द्रमासानां च शुभाशुभफलभेदेन महान्विरोधः, तत्र चिकीर्षितगृहद्वारानुकूलरविसंक्रमसमीचीनविहितमासेष्वेव गृहारम्भः कार्य इति विरोधाभावः’’ यानी सौर तथा चान्द्रमास के शुभाशुभ फलभेद की प्राप्ति में गृहाद्यारम्भ हेतु सौरमास को ही ग्रहण करना चाहिये। ‘‘एकराशौ रविर्यावत्स मासः सौरमुच्यते।’’ (भविष्यपुराण) जबतक सूर्य एक राशि में हैं, उसे सौरमास कहा जाता है। 16 अगस्त के सायंकाल तक सौरक्रम से श्रावणमास रहेगा और 19 अगस्त की सुबह तक भी अमान्त पक्ष में श्रावणमास ही रहेगा। यहाँ पूर्णिमान्त भाद्रमास से कुछ भी प्रयोजन नहीं है।

सौरमास के कृत्य – ‘‘सौरमासो विवाहादौ यदाद्यैः सुप्रगृह्यते। यज्ञेष्वपि व्रते वापि विहिते स्नानकर्मणि।। चान्द्रस्तु पार्वणे ग्राह्यो वार्षिकेष्वष्टकासु च। श्राद्धेषु तिथिकार्येषु तिथ्युक्तेषु व्रतेषु च।। (भ.पु.) ऐसे वचन कई पुराण, कृत्यसारसमुच्चय, विविध स्मृति, वैखानसगृह्यसूत्र, कालमाधव, सत्यव्रत, बृहस्पति, सिद्धान्तशिरोमणि, ज्योतिषचन्द्रिका, पीयूषधारा, बृहज्ज्योतिषसार और ब्रह्मसिद्धान्त आदि में उपलब्ध हैं। इन सभी स्थलों में शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है कि सौरमास में देवकर्म और चान्द्रमास में तिथ्युक्तादि पितृकर्म करे।

इस सौरमासपक्ष में विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग और वैदेही पञ्चाङ्गकार आदि ने गृहारम्भ की मुहूर्ततालिका में स्पष्ट रूप से ‘‘सौरक्रमेण’’ लिख भी दिया है।

पुनः कई मान्य पञ्चाङ्गों ने ५ अगस्त २०२० को गृहादि के आरम्भ का शुभ मुहूर्त स्पष्ट शब्दों में लिखा है। मेरे द्वारा देखे गये उन पञ्चाङ्गों में- १. वैदेही पञ्चाङ्ग, २. मैथिली पञ्चाङ्ग, ३. व्रजभूमि पञ्चाङ्ग, ४. महावीर पञ्चाङ्ग, ५. भुवनविजय पञ्चाङ्ग, ६. राजधानी पञ्चाङ्ग, ७. विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग, ८. चण्डू पञ्चाङ्ग, ९. दिवाकर पञ्चाङ्ग (६को), १०. निर्णयसागर चण्डमार्तण्ड पञ्चाङ्ग, ११. श्रीधरी चण्डांशु पञ्चाङ्ग, १२. त्रिकालज्योति पञ्चाङ्ग और १३. बाबा वैद्यनाथ पञ्चाङ्ग में स्पष्टतः ५ अगस्त २०२० को गृहारम्भ का मुहूर्त लिखा हुआ है । पुनः देश के कई मान्य विद्वानों ने भी ५ अगस्त को सही बताया है ।

कोशों में मन्दिर, आलय आदि शब्द गृह के ही पर्यायवाची हैं- ‘‘निशान्तवस्त्यसदनं भवनागारमन्दिरम्। गृहाः पुंसि च भूम्न्येव निकाय्यनिलयालयाः।।’’ (अमरकोश) अतः गृहारम्भ शब्द से ही मन्दिर या देवालयारम्भ भी ग्राह्य होते हैं।

५ अगस्त के शिलान्याससमय में अवश्य ही मतभेद हैं, जिनमें विद्वज्जनशोधित स्थिरसंज्ञक वृश्चिक लग्न में १४:०५ से १५:२० बजे तक का मुहूर्त उत्तम दीखता है।

सूक्ष्मता से ज्योतिषीय विचार करने पर दशाब्दियों में भी किसी सर्वमान्य निर्दुष्ट शुभ मुहूर्त का निकालना अत्यन्त कठिन है। सर्वतोभावेन निर्दुष्ट शुभ मुहूर्त के अभाव में प्राचीनकाल के अनेक ज्योतिषी अविवाहित ही रह गये थे।

५.०८.२०२० को देवालयारम्भ के लिये और भी कई अच्छे संयोग हैं, जैसे-

१. कर्कराशिस्थ सूर्य होने से सौरक्रमेण श्रावणमास प्रशस्त एवं फलतः द्रव्यवृद्धि,

२. अमान्त श्रावणमास होने से भी उत्तम,

३. कर्कस्थ सूर्य में पूर्वमुख का देवालयारम्भ प्रशस्त,

४. द्वितीया तिथि और बुधवार भी प्रशस्त,

५. सुबह ९:३० बजे तक धनिष्ठा और पुनः शतभिषा भी प्रशस्त,

६. पृथ्वीशयनरहित नक्षत्र,

७. वृषचक्र दक्षोदर में शुद्ध- फलतः लाभ,

८. आनन्दादि योग में भी बुध को धनिष्ठा से पुष्टि एवं शतभिषा से सुख,

९. बुधवार को द्वितीया होने से सिद्धि योग आदि सब अच्छे हैं।

पञ्चाङ्गभेद से कुछ मिनट्स का अन्तर हो सकता है। उत्तर भारत में ‘अर्द्धप्रहरदोष’ का ही त्याग अपेक्षित है, जिसपर विचार कर लिया गया है। चौघड़िया दक्षिण भारत की परम्परा रही है, यद्यपि आजकल सब देखना प्रारम्भ कर दिये हैं। प्रायः अर्द्धप्रहर के त्याग में ही अशुभ चौघड़िया व्यतीत हो जाया करती हैं। सम्प्रति मैंने अर्द्धप्रहर का विचार कर लिया है। तात्कालिक लग्नकुण्डली से सामान्येन अनुकूल प्रतिक्रिया ही प्राप्त हुई। सश्रम इस महत्त्वपूर्ण समय का निर्धारण किया गया है ।

किसी को मेरी पंक्तियों से कदाचित् कुछ कष्ट हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ, “नभ: पतन्त्यात्मसमं पतत्रिण:”। मेरे सभी पूज्य हैं। वन्दनीय महापुरुषों के शुभ संकल्प से अशुभों का शमन और त्रिकाल में सबका मङ्गल ही होता है। पुनश्च- “तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव। विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि।।”

भगवान् श्रीसीताराम सबका मङ्गल करें ।

  • पण्डित गङ्गाधर पाठक
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