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नवरात्रि विशेष : माँ दुर्गा के बहुपयोगी मंत्र और उनके लाभकारी प्रयोग 

नवरात्रि विशेष : माँ दुर्गा के बहुपयोगी मंत्र और उनके लाभकारी प्रयोग

दुर्गा उपासना भक्ति के साथ ऐसी शक्ति देने वाली मानी गई है, जो दुर्गति करने वाले तमाम बुरे विचार, दुर्गुण या दोषों का शमन कर देती है। इसलिए दुर्गा को दुर्गतिनाशिनी भी पुकारा जाता है। हिन्दू धर्म की सबसे शक्तिशाली देवी माँ दुर्गा को उनके भक्त माँ की संज्ञा देकर और बड़े ही भक्ति भाव से उनकी पूजा–आराधना कर उनका आशीर्वाद पाते है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार देवी दुर्गा को आदि शक्ति भी कहा जाता है जिसकी तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। देवी दुर्गा अंधकार को दूर करने वाली व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली परम शक्ति का स्वरुप है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माँ दुर्गा ने समय -समय पर अलग -अलग अवतार लेकर अपने भक्तों का कल्याण किया है। सभी भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु इन अवतारों की पूजा व अनुष्ठान कर माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध एवं एकांत स्थान में आसन पर बैठ कर मातेश्वरी की उपासना की जाती है। स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके ही उपासना करें। तन-मन, स्थान और अन्य कोई भी मलिनता मां दुर्गा को पसंद नहीं, अत: उपासना स्थल पर गंगाजल के छींटे मार कर ही आप उपासना के लिए बैठेंगे तथा एकाग्र चित्त होकर भगवती के मंत्रों का स्तवन करेंगे। उपासना करते समय आप केवल मंद स्वर में अथवा मन ही मन मंत्र पढ़ेंगे।

सच्चे मन से कुछ दिनों तक नियमित रूप से भगवती की उपासना करने पर न केवल उपासना में पूर्ण आनंद आने लगेगा, बल्कि आपकी मानसिक शक्ति और हृदय की पवित्रता भी बढ़ जाएगी। भगवती के मंत्रों का शुद्ध लयबद्ध रूप में परन्तु मंद स्वर में पाठ आवश्यक है। इसके लिए आप मंत्रों को कंठस्थ तो कर ही लीजिए। पुस्तक सामने रख कर साधना तो क्या आराधना भी नहीं हो सकती क्योंकि तब हमारा ध्यान मां के चरणों में लग ही नहीं पाएगा, पुस्तकों के पृष्ठों में ही भटकता रहेगा।

उपासना करते समय किसी भी वस्तु का स्थूल रूप में प्रयोग नहीं किया जाता, अत: मंत्रों का उच्चारण करते समय व्यावहारिक रूप में न तो आचमन करेंगे, न सिर पर जल छिड़केंगे और न ही हाथ धोएंगे। आप मंत्रों का पाठ करते समय आलथी-पालथी मारकर बैठे रहेंगे और केवल मंत्रों का उच्चारण ही करेंगे, वह भी अत्यंत मंद स्वर में।

ॐ अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।

य: स्मरेत पुंडरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरे शुचि:।।

उक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए भावात्मक रूप में अपने सिर पर तीन बार जल छिड़क कर आचमन करें तथा हाथ धो लें। ‘पवित्रीकरण’ के  इस कार्य के उपरांत निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए भूत शुद्धि  की जाएगी।

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भुविसंस्थिता।

ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।

गणेश जी का ध्यान करते समय अपने दाएं हाथ में दूर्वा अर्थात दूब घास, अक्षत, पुष्प तथा जल लेकर ही स्तवन करेंगे। प्रथम पूजनीय गणेश जी के ध्यान में इन मंत्रों का और मंत्रों का पाठ पूरा होने पर इन्हें गणेश जी के सम्मुख रख देंगे।

ॐ सुमुखश्चैकदंत कपिलो गजकर्णक:।

लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशी विनायक:।।

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।

द्वादशैतानि नामानि य: पठेचगुयादपि।।

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निगमे तथा।

संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तंस्य न जायते।।

 शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्ण चतुर्भुज।

प्रसन्नवदनं ध्याये त्वर्स विघ्नोपशान्तये।

संकल्प वाक्य कोई मंत्र या मंत्रों का समूह नहीं है केवल परिचय है। आराधना करते समय दाएं हाथ में तिल, कुशा, घास, अक्षत, यज्ञोपवीत और जल लेकर निम्र संकल्प वाक्यों का उच्चारण करेंगे। उपासना करते समय तो कोई वस्तु आपके पास होती ही नहीं अत: केवल भावलोक में ही ये वस्तुएं आप अपने हाथ में लेंगे, स्थूल रूप में तो संकल्प के इन वाक्यों का उच्चारण ही करेंगे।

भगवती और शिवजी के अवतार भैरव में बड़ा ही अद्भुत संबंध है। मातेश्वरी का कहना है कि उनकी कोई भी पूजा-आराधना तब तक अधूरी रहेगी, जब तक मातेश्वरी के पश्चात भैरव देव का दर्शन और पूजन भी न कर लिया जाए।

मंदिर में जाकर पूजा करते समय पहले तो मां भगवती की और फिर भैरवदेव की पूजा की जाती है, परन्तु उपासना और तंत्र साधना करते समय पहले किया जाता है, भैरव का ध्यान और आह्वान।

भैरव के ध्यान के पश्चात प्रारंभ की जाती है, भवानी की उपासना। सर्वप्रथम दुर्गा की मूर्ति स्थापित कीजिए। मातेश्वरी के रूप का ध्यान करते हुए उन्हें अपने निकट अनुभव करते हुए नीचे दिए गए मंत्रों का स्तवन कीजिए…

सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।

ब्रह्मरूपे सदानंदे परमानंद स्वरूपिणि।

दुत सिद्धिप्रदे देवि, नारायणि नमोऽस्तुते।।

शरणागतदीनां तप रित्राणपरायणे

सर्वस्याहितरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।

देवी थोड़ी ही उपासना और मंत्र जप से ही परम प्रसन्न होकर भक्तों की सभी कामनाओं की तत्काल पूर्ति कर देती हैं। 

ज़िन्दगी में आई हर रुकावट पर दुर्गा बीज मंत्र के उच्चारण से विजय हासिल करने में मदद मिलती हैं. इस मंत्र का जाप करने के लिए, सबसे पहले सुबह स्नान करें, लाल कपड़े पहनें और मां दुर्गा प्रतिमा या फोटो के सामने ऊनी आस्नंदन पर बैठें। अब देवी को धूप, ताजा लाल फूल, मिठाई और लाल चूनरी प्रदान करें। अब इस मंत्र को पूर्ण भक्ति के साथ पढ़ना शुरू करें. मंत्र शक्ति के उच्चारण से बुरी से बुरी समस्या का हल निकाला जा सकता है. साधना के दौरान हमेशा सावधान रहना चाहिए क्योंकि पूजा और मंत्र जाप में कोई गलती आपको परेशानी में ला सकती है। दुर्गा बीज मंत्र को जाप करने का सबसे अच्छा समय नवरात्री है। 

देवी दुर्गा हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं। देवी दुर्गा के लिए यह कहा जाता है कि वे उन राक्षसी शक्तियों का विनाश करती हैं जो शांति, धर्म और समृद्धि के ऊपर आघात करने की कोशिश करते हैं।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार अक्सर आपने लोगों को देवी दुर्गा बीज मंत्र का जाप करते सुना होगा। माँ दुर्गा की आराधना चामुंडा मंत्र के द्वारा भी की जाती है। जब व्यक्ति परेशान होता है और उसे अपनी समस्या का कोई समाधान नही मिल रहा होता तो उसके पास बस एक ही चीज होती है, वह है आशा, एक उम्मीद की जैसा भी समय है भगवन सब ठीक कर देंगे. इन उमीदों की वजह से वह पूजा-पाठ में ज्यादा ध्यान देने लगता है. मंत्रो-उच्चारण करने लगता है. जो लोग देवी माता में आस्था रखते हैं वो दुर्गा बीज मंत्र को काफी महत्व देते हैं।

यहाँ आप कई प्रकार के माँ दुर्गा के मंत्र प्राप्त कर सकते हैं/पढ़ सकते हैं जिसकी सहायता द्वारा आप कई मुसीबतों से बाहर आ सकते है अपने जीवन में। उपयुक्त इच्छा को पूरा करने के लिए…

मंत्र – ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:

माँ दुर्गा के चमत्कारी महामंत्र यह मंत्र सभी प्रकार की सिद्धिः को पाने में मदद करता है, यह मंत्र सबसे प्रभावी और गुप्त मंत्र माना जाता है और सभी उपयुक्त इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति इस मंत्र में होती है। 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।

यह देवी माँ का बहुत लोकप्रिय मंत्र है। यह मंत्र देवी प्रदर्शन के समारोहों में आवश्यक है।

दुर्गासप्तशा प्रदर्शन से पहले इस मंत्र को सुनाना आवश्यक है।

इस मंत्र की शक्ति : यह मंत्र दोहराने से हमें सुंदरता ,बुद्धि और समृद्धि मिलती है। यह आत्म की प्राप्ति में मदद करता है।

गौरी मंत्र लायक पति मिलने के लिए

” हे गौरी शंकरधंगी ! यथा तवं शंकरप्रिया,

तथा मां कुरु कल्याणी ! कान्तकान्तम् सुदुर्लभं “

दुर्गाशप्तशती के अद्भुत मंत्र

सब प्रकार के कल्याण के लिये…

“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”

धन प्राप्ति के लिए मंत्र

“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: 

स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या 

सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥”

प्रसन्नता प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि |

त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ||

आकर्षण के लिए मंत्र

“ॐ क्लींग ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती ही सा,

बलादाकृष्य मोहय महामाया प्रयच्छति “

विपत्ति नाश के लिए मंत्र

“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। 

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”

शक्ति प्राप्ति के लिए मंत्र

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। 

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

रक्षा पाने के लिए मंत्र

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। 

घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥

स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की स्तुति इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए

सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी |

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ||

आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मंत्र

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। 

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की स्तुति इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए

सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी |

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ||

भय नाश के लिए मंत्र

“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। 

भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥

महामारी नाश के लिए मंत्र

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

सामूहिक कल्याण के लिए मां दुर्गा की वंदना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए

देव्या यया ततमिदं जग्दात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या |

तामम्बिकामखिलदेव महर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ||

सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिए मंत्र

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। 

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

पाप नाश के लिए मंत्र

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्। 

सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिए मंत्र

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

महामारी नाश के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए

जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी |

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते || 

विविध उपद्रवों से बचने के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र का जाप करते हुए करना चाहिए

रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र |

दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ||

शास्त्रों में बदहाली से बचने के लिए ही माता दुर्गा की उपासना के लिए आठ अक्षरों का 1 अद्भुत मंत्र बताया गया है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस मंत्र की अचूक शक्ति से रोग, कर्ज, शत्रु बाधा खत्म होकर सिद्धि, संतान, सफलता पाने की सारी इच्छाएं भी पूरी हो जाती है। जानिए, यह मंत्र और सरल पूजा उपाय…

शुक्रवार या नियमित रूप से माता दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को लाल पूजा सामग्री खासतौर पर लाल फूल व प्रसाद चढ़ाकर स्फटिक की माला से नीचे लिखा दुर्गा मंत्र कम से कम एक माला यानी 108 बार या यथाशक्ति जरूर बोलें। 

मंत्र है-  ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:

विद्यार्थी परीक्षा में सफलता के लिए अपनी स्टडी टेबल पर माँ दुर्गा की तस्वीर लगाये और  “ ॐ दुमं दुर्गाय नमः ” इस मंत्र का 5 बार जाप करें  2 मिनट के लिए माँ दुर्गा का ध्यान करें। 

ऐसा करने से माँ दुर्गा की कृपा से विद्यार्थी परीक्षा में सफल होते है। 

इसी प्रकार से नौकरी करने वाले  पुरुष और महिलाये भी इस प्रयोग को करें और पायें शीघ्र पद उन्नति के अवसर।

नौ देवियों के सिद्ध मन्त्र

नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपो की पूजा की जाती है। नवदुर्गा के हर रूप के मंत्र भी अलग-अलग होते हैं। इन मंत्रों का जाप करके माता रानी खुश हो जाएंगी और भक्तों को विशेष कृपा मिलेगी। 

1-देवी शैलपुत्री 

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्घतशेखराम। 

वृषारुढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ।।

2-देवी ब्रह्मचारिणी 

करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

3-देवी चंद्रघंटा 

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता । 

प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

4-देवी कूष्माण्डा 

रूधिराप्लुतमेव च । 

दधानां हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ।। 

5-देवी स्कन्दमाता 

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया । 

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।।

6-देवी कात्यायनी 

चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना । 

कात्यायनी शुभं दघाद्देवी दानवघातिनी ।। 

7-देवी कालरात्रि 

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। 

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी । 

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी ।। 

8-देवी महागौरी 

समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि: । 

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया ।। 

9-देवी सिद्धिदात्री 

सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि । 

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ।।

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पंडित दयानन्द शास्त्री,

(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)

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